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Showing posts from November, 2017

हनुमान चालीसा का रहस्य

हनुमान चालीसा का रहस्य आइये आज गोस्वामी तुलसीदास कृत  "हनुमान चालीसा " के मूल रहस्य की बात करते हैं । क्योंकि इसको ( किसी साधारण कवि ने नहीं ) तुलसीदास ने लिखा है । और इसका योग साधना से गहरा सम्बन्ध है । इसमें जो मुख्य पात्र हनुमान है । उसका अर्थ ही ऐसे साधक या भक्त से है - जो पूर्णतया मान रहित होकर भक्त हो गया हो । मैंने कल के ( शंकर का धनुष तोङने वाले ) लेख में कहा था । आपको आध्यात्म में प्रत्येक पात्र का नाम विशेष अर्थ लिये मिलेगा । यही बात हनुमान पवन सुत आदि नाम में भी है । एक और बात भी है । ये विशेष प्रकार के भक्ति पद 40 दोहों में क्यों होते हैं ? मेरे विचार से - 5  तत्वों का शरीर + 5 ज्ञानेन्द्रियां + 5 कर्मेन्द्रियां + शरीर की 25 प्रकृतियां = 40 इसलिये ये इसी मनुष्य शरीर की ज्ञान अज्ञान भक्ति आदि का वर्णन है । तब आईये । हनुमान चालीसा का सही अर्थ समझने की कोशिश करें । श्री गुरु चरण सरोज रज । निज मनु मुकुर सुधारि । बरनऊँ रघुबर बिमल जसु । जो दायकु फल चारि । ( श्री ) का अर्थ सम्पदा या ऐश्वर्य से है । ये जिसके भी आगे लगा है । उसके ऐश्वर्य का प्रतीक है । ये जिस अस्तित्

संसद में हिन्दी ,कल आज और कल

राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान एवं : संसद में हिंदी - कल आज और कल। हिंदी केवल एक भाषा ही नहीं है। हिंदी है प्रत्येक हिंदुस्तानी का गर्व , हिंदी है प्रत्येक हिंदुस्तानी की पहचान, हिंदी है हिंदुस्तान का ताज। हिंदी भाषा का इतना परिचय यद्यपि काफी है ,परंतु हिंदी के ज्ञान ,उसकी अभिव्यक्ति, उसका इतिहास, उसकी सरलता , उसकी सहजता, उसकी परिपक्वता, उसकी मिठास और गहराई और भी न जाने क्या - क्या जिन्हें शब्दों में वर्णित करना आसान कृत्य नहीं है। इन सब के बारे में हम विस्तार से जानने का प्रयत्न करेंगे क्योंकि "पूर्णता" किसी भी विषय पर प्राप्त करना अपने आप में एक लक्ष्य है । हम केवल अपने सार्थक प्रयास करेंगे। हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में 14 सितंबर 1949 को स्वीकार किया गया था। इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा के संबंध में व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुच्छेद 120 के अनुसार यह स्पष्ट कर दिया गया है कि किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए केवल हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है ,तथा किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग

सोशल मीडिया एक अदृश्य परिपक्व बंधन

सोशल मीडिया और एक अदृश्य  परिपक्व बंधन आज मैं बात करती हूं सोशल मीडिया के सबसे सशक्त और वर्तमान साधन Facebook और WhatsApp की  ।आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब सब अपने आप में मस्त है। रोजमर्रा की जिंदगी में अपने कार्य स्थान पर पहुंचने के रास्ते को आसान बनाने के लिए लोग सोशल मीडिया का अत्यधिक आश्रय ले रहे हैं। इसके बारे में लगभग सभी जानते हैं ।इससे होने वाले प्रत्यक्ष लाभ और हानियों के बारे में भी हम जान चुके हैं। हर सिक्के के दो पहलू की तरह  हम दूर से पास हुए हैं ,वही पास होकर भी दूर होते जा रहे हैं । मैं आज इसके एक दूसरे पहलू के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करना चाहती हूँ। उम्र के इस दौर में जब हम  30  या 35 प्लस  या इससे भी अधिक  है।  जब हम  सब यहां अपने घर -गृहस्थी का बोझ  कर्तव्य परायणता के साथ निभा रहे हैं । उम्र के इस दौर में अनजाने लोगों में शुरुआती बातचीत के बाद कई लोगों से इतना आत्मीय  और एक अजीब सा अदृश्य  बंधन सा महसूस होने लगा है। हम सब उम्र के इस दौर में है जब शारीरिक आकर्षण हम पर हावी नहीं हो सकता। हम सब अपने घर परिवार में सुखी हैं एवं एक दूसरे की पूरी फिक्र करते हुए पूर