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Showing posts from January, 2021

अद्भुत

गणित में कोई भी संख्या.. 1 से 10 तक के सभी अंकों से.. नहीं कट सकती, *लेकिन इस.. विचित्र संख्या को देखियेगा  ..!* *संख्या 2520* अन्य संख्याओं की तरह.. वास्तव में एक सामान्य संख्या नही है, यह वो संख्या है जिसने विश्व के गणितज्ञों को.. अभी भी आश्चर्य में किया हुआ है  .. !! यह विचित्र संख्या 1 से 10 तक प्रत्येक अंक से भाज्य है , चाहे वो अंक सम हो या विषम हो।   ऐसी संख्या जिसे इकाई तक के किसी भी अंक से भाग देने के उपरांत शेष शून्य रहे, *बहुत ही असम्भव/ दुर्लभ* है- ऐसा प्रतीत होता है .. !! *अब निम्न सत्य को देखें* :  2520 ÷ 1 = 2520 2520 ÷ 2 = 1260 2520 ÷ 3 = 840 2520 ÷ 4 = 630 2520 ÷ 5 = 504 2520 ÷ 6 = 420 2520 ÷ 7 = 360 2520 ÷ 8 = 315 2520 ÷ 9 = 280 2520 ÷ 10 = 252 महान गणितज्ञ अभी भी आश्चर्यचकित है  : *2520 वास्तव में एक गुणनफल है 《7 x 30 x 12》का*   उन्हे और भी आश्चर्य हुआ जब प्रमुख गणितज्ञ द्वारा यह संज्ञान में लाया गया कि संख्या 2520 *हिन्दू संवत्सर* के अनुसार.. *एकमात्र यही संख्या है, जो वास्तव में उचित* बैठ रही है:  *जो इस गुणनफल* से प्राप्त है :: *सप्ताह के दिन (7) x माह के दिन (30)

वेद

वेदों का कुछ प्रारम्भिक ज्ञान  अवश्य पढ़ें 🙏🏻 प्र.1-  वेद किसे कहते है ? उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है। प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ? उत्तर-  ईश्वर ने दिया। प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ? उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया। प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ? उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए। प्र.5-  वेद कितने है ? उत्तर- चार ।                                                   1-ऋग्वेद  2-यजुर्वेद   3-सामवेद 4-अथर्ववेद प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।         वेद              ब्राह्मण 1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय 2 - यजुर्वेद      -     शतपथ 3 - सामवेद     -    तांड्य 4 - अथर्ववेद   -   गोपथ प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है। उत्तर -  चार।       वेद                     उपवेद     1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद     2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद     3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद     4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद प्र 8-  वेदों के अंग हैं । उत्तर -  छः । 1 - शिक्षा 2 - कल्प 3 - निरूक्त 4 - व्याकरण 5 - छंद 6 - ज्योतिष प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने

धन और धर्म

*धन* और *धर्म* में कौन *महान* है ? *धन* की *रक्षा करनी* पड़ती है । *धर्म* हमारी *रक्षा* करता है । *धन दुर्गति* में ले जाता है । *धर्म सद्गति* में ले जाता है । *धन* के लिए *पाप करना* पड़ता है । *धर्म* में *पाप का त्याग* होता है । *धन* से *धर्म* नहीं होता । *धर्म* *आत्मा* से होता है । *धन* मित्रों को भी *दुश्मन* बना देता है । *धर्म* दुश्मन को भी *मित्र* बना देता है । *धन* भय को *उत्त्पन्न* करता है । *धर्म* भय को *समाप्त* करता है । *धन* रहते हुए भी *व्यक्ति दुःखी* है । *धर्म* से व्यक्ति *दुःख में भी सुखी* है । *धन* से *संकीर्णता* आती है । *धर्म* से *विशालता* आती है । *धन* इच्छा को *बढ़ाता* है । *धर्म* इच्छाओं को *घटाता* है । *धन* में *लाभ-हानी* चलती रहती है । *धर्म* से हर समय *फायदा ही फायदा* है । *धन* से कषाय *बढ़ती* है । *धर्म* से कषाय *शांत* होती है । *धन* चार गति में *भटकाता* है । *धर्म* चार गति को *पार* कराता है । *धन* से *रोग* बढ़ता है । *धर्म* से *जीवन स्वस्थ* बनता है । *धन अशाश्वत* है । *धर्म शाश्वत* है । *धन* का साथ *इसी भव* तक है । *धर्म परभव* में भी साथ रहता है ।

रामचरित मानस और रामायण में अंतर

*अत्यंत ज्ञानवर्धक* तुलसी दास जी ने जब राम चरित मानस की रचना की,तब उनसे किसी ने पूंछा कि बाबा! आप ने इसका नाम रामायण क्यों नहीं रखा? क्योकि इसका नाम रामायण ही है.बस आगे पीछे नाम लगा देते है, वाल्मीकि रामायण,आध्यात्मिक रामायण.आपने राम चरित मानस ही क्यों नाम रखा? बाबा ने कहा - क्योकि रामायण और राम चरित मानस में एक बहुत बड़ा अंतर है.रामायण का अर्थ है राम का मंदिर, राम का घर,जब हम मंदिर जाते है तो एक समय पर जाना होता है, मंदिर जाने के लिए नहाना पडता है,जब मंदिर जाते है तो खाली हाथ नहीं जाते कुछ फूल,फल साथ लेकर जाना होता है.मंदिर जाने कि शर्त होती है,मंदिर साफ सुथरा होकर जाया जाता है. और मानस अर्थात सरोवर, सरोवर में ऐसी कोई शर्त नहीं होती,समय की पाबंधी नहीं होती,जाती का भेद नहीं होता कि केवल हिंदू ही सरोवर में स्नान कर सकता है,कोई भी हो ,कैसा भी हो? और व्यक्ति जब मैला होता है, गन्दा होता है तभी सरोवर में स्नान करने जाता है.माँ की गोद में कभी भी कैसे भी बैठा जा सकता है. रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है। इन मंत

साला शब्द की उत्पत्ति

धर्मपत्नी के भाई को साला क्यो कहते है ,कितना श्रेष्ठ और सम्मानित होता है  "साला" शब्द की रोचक जानकारी हम प्रचलन की बोलचाल में साला शब्द को एक "गाली" के रूप में देखते हैं साथ ही "धर्मपत्नी" के भाई/भाइयों को भी "साला", "सालेसाहब" के नाम से इंगित करते हैं।  "पौराणिक कथाओं" में से एक "समुद्र मंथन" में हमें एक जिक्र मिलता है, मंथन से जो 14 दिव्य रत्न प्राप्त हुए थे वो : कालकूट (हलाहल), ऐरावत, कामधेनु, उच्चैःश्रवा, कौस्तुभमणि, कल्पवृक्ष, रंभा (अप्सरा), महालक्ष्मी, शंख (जिसका नाम साला था!), वारुणी, चन्द्रमा, शारंग धनुष, गंधर्व, और अंत में अमृत।  "लक्ष्मीजी" मंथन से "स्वर्ण" के रूप में निकली थी, इसके बाद जब "साला शंख" निकला, तो उसे लक्ष्मीजी का भाई कहा गया*! दैत्य और दानवों ने कहा कि अब देखो लक्ष्मीजी का भाई साला (शंख) आया है .. तभी से ये प्रचलन में आया कि नव विवाहिता "बहु" या धर्मपत्नी जिसे हम "गृहलक्ष्मी" भी कहते है, उसके भाई को बहुत ही पवित्र नाम साला"कह कर पुकारा जात