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Showing posts from November, 2018

भारतीय काल गणना और इसके मात्रक

कालगणना और इसके मात्रक : (Chronology and its Units) एक बार पलक झपकने का समय ×२ = एक मात्रा = एक प्राण (एक बार स्वास लेना या छोड़ना) ×२ = एक महाप्राण  ×३ = ६ प्राण (Breath) = १ पल (विनाडी) ×६ = ६ पल = 24 Seconds = 60 पल (विनाडी) = 1 नाडी = घटी = 24 Minutes 2 घटी = 1 मुहूर्त्त = 1 क्षण = 48 Minutes 60 नाडी (घटी) = 30 मुहुर्त्त = 1 अहोरात्र = 24 Hours 7 अहोरात्र = 1 सप्ताह (Week) 2 सप्ताह = 1 पक्ष (fortnight) 2 पक्ष = 1 मास (Month) 2 मास = 1 ऋतु (Season) 3 ऋतु = 1 अयन 2 अयन = 1 सम्वत् = 1 वर्ष (Year) 360 वर्ष = 1 दिव्य वर्ष सतयुग = 4800 दिव्य-वर्ष = 17,28,000 वर्ष  त्रेता = 3600 दिव्य-वर्ष = 12,96,000 वर्ष  द्वापर = 2400 दिव्य-वर्ष = 8,64,000 वर्ष कलियुग = 1200 दिव्य-वर्ष = 4,32,000 वर्ष चतुर्युग = महायुग = दिव्ययुग = देवयुग = (सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग) 1 चतुर्युग = 43,20,000 वर्ष 71 चतुर्युग = 1 मन्वन्तर = 30,67,20,000 वर्ष 1 सन्धिकाल = 3 चतुर्युग = 1,29,60,000 वर्ष 14 मन्वन्तर + 2 सन्धिकाल = 1000 चतुर्युग 1000 चतुर्युग = 1 सृष्टि = 1 कल्प =

भारतीय काव्यशास्त्र

भारतीय काव्यशास्त्र के बारे में कुछ विशेष जानकारी जो हमेशा ही प्रासंगिक है। इसीलिए आप सबके साथ साझा कर रही हूं।यह उन लोगों के बारे में है जो काव्यशास्त्र के स्तंभ माने जा सकते हैं। इसीलिए यह जानकारी सभी के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है। प्रमुख काव्यशास्त्री संस्कृत काव्यशास्त्र की जो परंपरा भरतमुनि से शुरू होती है वह आचार्य पंडितराज जगन्नाथ तक चलती है. लगभग डेढ़-दो सहस्रा वर्षो का यह शास्त्रीय साहित्य अपनी व्यापक विषय- सामग्री, अपूर्व एवं तर्क-सम्मत विवेचन-पद्दति और अधिकांशतः प्रौढ़ एवं गंभीर शैली के कारण, तथा विशेषतः नूतन मान्यताओं के प्रस्तुत करने के बल पर भारतीय वाङ्मय में अपना विशिष्ट स्थान रचता है.  कतिपय प्रख्यात एवं उत्पादक आचार्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है: 1. भरत मुनि भरत मुनि की ख्याति नाट्यशास्त्र के प्रणेता के रूप में है,  पर उनके जीवन और व्यक्तित्व के विषय में इतिहास अभी तक मौन है। इस संबंध में विद्वानों का एक मत यह भी है कि भरतमुनि वस्तुतः एक काल्पनिक मुनि का नाम है। इन कतिपय मतों को छोड़ दे तो भरत मुनि को संस्कृत काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य माना जाता है। आचार्य

संस्कृत के बारे में कुछ सत्य

संस्कृत के बारे में कुछ सत्य..... कई वर्ष पहले संस्कृत को वैकल्पिक विषय के रूप में थोपे जाने के केस में सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय पढ़ रहा था। जो अरुणा राय बनाम भारत संघ नामक वाद में दिया गया था। निर्णय अपनी जगह परंतु जो वाद दाखिल हुआ था , उसका वाद कारण बड़ा रोचक था ! याचिका कर्ता , अन्य कारण के अतिरिक्त माध्यमिक शिक्षा के केन्द्रीय बोर्ड में संस्कृत को वैकल्पिक विषय बनाया जाने से पीड़ित था ! याचिकाकर्ता का तर्क था कि संस्कृत थोपी जा रही हैं। यद्यपि संस्कृत वैकल्पिक विषय के रुप में शामिल किया गया था। परंतु फिर याचिकाकर्ता इसे थोपना मानता था ! माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के तर्को को ठुकरा दिया था ! और माननीय न्यायाधीशों ने ध्यान दिलाया कि संस्कृत भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल एक भाषा है ! प्राचीन भारतीय ज्ञान इसी भाषा में है। -------------------------------------- देश में एक ऐसा वर्ग बन गया है ..जो कि संस्कृत भाषा से तो शून्य हैं ,परंतु उनकी छद्म धारणा यह बन गयी है कि .. संस्कृत भाषा में  जो कुछ भी लिखा है वे सब पूजा पाठ के मंत्र ही होंगे ! वर्ना याचिका का वा