डोर
माता-पिता और गुरुजन सदैव हमारा भला ही चाहते हैं। छोटी-छोटी घटनाओं और कहानियों के माध्यम से वह हमें जीवन की बहुत बड़ी शिक्षा प्रदान कर जाते हैं। ये शिक्षाएं प्रत्यक्ष और परोक्ष भी होती है। कभी-कभी उस विशिष्ट समय में हमें उस ज्ञान का, उस शिक्षा का महत्व नहीं समझ में आता ।परंतु उचित समय आने पर हमें उस सही शिक्षा का ज्ञान हो पाता है, क्योंकि परिपक्वता समय के साथ ही आती है। हमारे साहित्य में इस तरह की शिक्षाओं का भरपूर खजाना है जिसमें कहानियों के माध्यम से बहुत सी शिक्षाओं को प्रचारित- प्रसारित किया गया है । ऐसी ही एक प्रस्तुति.... एक बेटे ने पिता से पूछा-* *पापा.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ? *पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए।* *बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था... *थोड़ी देर बाद बेटा बोला-* *पापा.. ये धागे की *वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की और नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें !! ये और ऊपर चली जाएगी... *पिता ने धागा तोड़ दिया ..* *पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई... *तब पिता ने बेटे को जीवन का दर