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सत्य सनातन धर्म

सत्य सनातन धर्म   हिन्दू सनातन धर्म ही ब्रह्मांड के सर्जन से सनातन है । प्राचीन परंपरा के वटवृक्ष पर हजारों लताएं उग आई हैं, लेकिन वे सभी वटवृक्ष का ही हिस्सा हों, ऐसा नहीं है। उक्त लताओं को देखकर यह नहीं मानना चाहिए कि ये जंगली लताएं ही हिन्दू धर्म हैं।   हजारों वर्षों की परंपरा में वैदिक, वैष्णव, शैव, शाक्त, नाथ, संत, स्मार्त आदि कई संप्रदायों के मठ, मंदिर, सिद्धपीठ, ज्योतिर्लिंग और गुफाएं निर्मित होती गईं। सभी में ध्यान, तप, भक्ति और क्रिया योग को महत्व दिया जाता रहा है। इस दौरान लाखों चमत्कारिक और सिद्ध संत हुए। भारत अध्यात्म की एक राजधानी बन गया और बौद्ध काल में यहीं से धर्म, दर्शन, ज्ञान, विज्ञान आदि का निर्यात हुआ। हिन्दू धर्म उपासना , स्थान और साधक साधिकाओं , सिद्ध संतों की संगत मे आज भी अनेक चमत्कार हो रहे है । मंत्र और तंत्र शक्तियां भी विज्ञान सम्मत है ।  हिंदू धर्म विश्व के सबसे प्राचीनतम धर्मो में से एक हैं। हिंदू धर्म के चमत्कार व ज्ञान के कारण ही भारत विश्वगुरु बना था। आज हिंदू धर्म को विज्ञान भी स्वीकारने लगा। हिंदू धर्म के संस्कारों से लेकर अनेक क्रिया-कलापों में विज्ञ

हवन में बांस निषेध: कारण

🕉️ *बांस की लकड़ी को क्यों नहीं जलाया जाता है ?* *जानिए इसके पीछे धार्मिक कारण है या वैज्ञानिक कारण ?* हम अक्सर शुभ (जैसे हवन अथवा पूजन) और अशुभ (दाह संस्कार) कामों के लिए विभिन्न प्रकार के लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बांस की लकड़ी को जलता हुआ देखा है। नहीं ना ? भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार, *'हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। यहां तक की हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं।'* हिन्दू धर्मानुसार बांस जलाने से पितृदोष लगता है वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे। *जानिए इसका वैज्ञानिक कारण।* बांस में सीसा (लेड) व भारी धातु प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। लेड जलने पर लेड ऑक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है।  हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं। लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता मे भी नही जला सकते, उस

पिप्पलाद की उत्पत्ति कथा

श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।   एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा- नारद- बालक तुम कौन हो ? बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ । नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ? बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।    तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि  हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी

छठ पर्व

*छठ : वनस्पति विज्ञान का भी पर्व*  कार्तिक मास पूरा ही प्रकृति में वनस्पति, औषध, कृषि और उसके उत्पाद के ज्ञान की धारा लिए है। अन्नकूट के मूल में जो धारणा रही, वह इस ऋतु में उत्पादित धान्य और शाक के सेवन आरंभ करने की भी है। अन्न बलि दिए बिना खाया नहीं जाता, इसी में भूतबलि से लेकर देव बलि तक जुड़े और फिर गोवर्धन पूजा का दिन देवालय देवालय अन्नकूट हो गया।  छठ पर्व इस प्रसंग में विशिष्ट है कि कुछ फल इसी दिन दिखते है। डलिए भर भर कर फल निवेदित किए जाते हैं, सूर्य को निवेदित करने के पीछे वही भाव है जो कभी मिस्र और यूनान में भी रहा। छठ तिथि का ध्यान ही फल मय हुआ क्योंकि छह की संख्या छह रस की मानक है। भोजन, स्वाद और रस सब षट् रस हैं। इस समय जो फल होते हैं, वो बिना चढ़ाए महिलाएं खाती नहीं है।  बांस के डलिए भरे फलों में शाक सहित रसदार फल भी होते हैं : केला, अनार, संतरा, नाशपाती, नारियल, टाभा, शकर कंदी, अदरक, हल्दी और काला धान जिसे साठी कहते हैं और जिसका चावल लाल होता है, अक्षत के रूप में प्रयोग होता है। श्रीफल, सिंघाड़ा, नींबू, मूली, पानी फल अन्नानास... सबके सब ऋतु उत्पाद। ईख का तोरण द्वार और बांस

सूर्य षष्टी

*छठ : वनस्पति विज्ञान का भी पर्व*  कार्तिक मास पूरा ही प्रकृति में वनस्पति, औषध, कृषि और उसके उत्पाद के ज्ञान की धारा लिए है। अन्नकूट के मूल में जो धारणा रही, वह इस ऋतु में उत्पादित धान्य और शाक के सेवन आरंभ करने की भी है। अन्न बलि दिए बिना खाया नहीं जाता, इसी में भूतबलि से लेकर देव बलि तक जुड़े और फिर गोवर्धन पूजा का दिन देवालय देवालय अन्नकूट हो गया।  छठ पर्व इस प्रसंग में विशिष्ट है कि कुछ फल इसी दिन दिखते है। डलिए भर भर कर फल निवेदित किए जाते हैं, सूर्य को निवेदित करने के पीछे वही भाव है जो कभी मिस्र और यूनान में भी रहा। छठ तिथि का ध्यान ही फल मय हुआ क्योंकि छह की संख्या छह रस की मानक है। भोजन, स्वाद और रस सब षट् रस हैं। इस समय जो फल होते हैं, वो बिना चढ़ाए महिलाएं खाती नहीं है।  बांस के डलिए भरे फलों में शाक सहित रसदार फल भी होते हैं : केला, अनार, संतरा, नाशपाती, नारियल, टाभा, शकर कंदी, अदरक, हल्दी और काला धान जिसे साठी कहते हैं और जिसका चावल लाल होता है, अक्षत के रूप में प्रयोग होता है। श्रीफल, सिंघाड़ा, नींबू, मूली, पानी फल अन्नानास... सबके सब ऋतु उत्पाद। ईख का तोरण द्वार और बांस

धनतेरस का मूल

*धनतेरस:--* *धनतेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है।* *धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था।*  *भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है।* *इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं।*  *दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।* *धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है।*  *संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है।* *भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा को

माँ का आँचल

माँ का पल्लू      इसके साथ ही ... यह गरम बर्तन को     चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को        पकड़ने के काम भी आता था.         पल्लू की बात ही निराली थी.            पल्लू पर तो बहुत कुछ               लिखा जा सकता है.  पल्लू ... बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने,     गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी            इस्तेमाल किया जाता था.    माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए             तौलिया के रूप में भी            इस्तेमाल कर लेती थी.          खाना खाने के बाद       पल्लू से  मुँह साफ करने का        अपना ही आनंद होता था.       कभी आँख मे दर्द होने पर ...     माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर,        फूँक मारकर, गरम करके          आँख में लगा देतीं थी,    दर्द उसी समय गायब हो जाता था. माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए     उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू         चादर का काम करता था.      जब भी कोई अंजान घर पर आता,            तो बच्चा उसको    माँ के पल्लू की ओट ले कर देखता था.    जब भी बच्चे को किसी बात पर      शर्म आती, वो पल्लू से अपना       मुँह ढक कर छुप जाता था.     जब बच्चों को बाहर जाना होता,    

सत्य सनातन धर्म

*एक माँ* अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने *विदेश में रहने वाले बेटे* से विडियो चैट करते वक्त *पूछ बैठी-* *"बेटा! कुछ पूजा-पाठ भी करते हो या नहीं?"* *बेटा बोला-* *"माँ, मैं एक जीव वैज्ञानिक हूँ। मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम* कर रहा हूँ। *विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन.. क्या आपने उसके बारे में सुना भी है?"* *उसकी माँ मुस्कुराई* और *बोली.....* *"मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ बेटा.. उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में सनातन-धर्म के लिए बहुत पुरानी खबर है।"* “हो सकता है माँ!” बेटे ने भी *व्यंग्यपूर्वक* कहा। *“यदि तुम कुछ समझदार हो, तो इसे सुनो..” उसकी माँ ने प्रतिकार किया।* *“क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है?* *विष्णु के दस अवतार ?”* बेटे ने सहमति में कहा... *"हाँ! पर दशावतार का मेरी रिसर्च से क्या लेना-देना?"* *माँ फिर बोली-* *"लेना-देना है..* *मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हो ?"* *“पहला अवतार था 'मत्स्य', यानि मछली।* ऐसा इसलिए कि *जीवन पानी में आरम्भ हुआ। यह बात सही है या नहीं?”* ब

वर्ण कर्म से अथवा जन्म से?

वर्ण कर्म से अथवा जन्म से? जब से धर्म का राजनीतिकरण हुआ है तब से यह बड़ा ही ज्वलंत प्रश्न बना हुआ है। आर्यसमाज आदि मत की बात ही क्या करें सनातनी भी इस पर एकमत नहीं होते। धर्म सम्राट स्वामी करपात्रीजी का विचार था कि कर्मणा वर्ण मानने पर दिनभर में ही अनेकबार वर्ण बदलते रहेंगे।  फिर व्यवस्था क्या होगी? वे जन्म के आधार पर ही वर्ण को मानने के पक्षधर थे। दूसरी ओर कुछ विद्वानों के विचारों में वर्ण कर्म के आधार पर हैं। उनके विचारों के आधार भी शास्त्र ही हैं। यथा, वज्रसूचिकोपनिषद के अनुसार देखने पर ब्राह्मण वर्ण ही कर्म के आधार पर प्रतीत होता है। इस लेख में हम इसी विषय पर विचार करेंगे। तत्रैतदात्मनो मनोऽवच्छेदेन ज्ञानानामुत्थानप्रतिबन्धका धर्मा उपसन्ना ज्ञानव्याघातः पाप्मा। क्रियोत्थानप्रतिबन्धका धर्माः प्राणावच्छेदेनोपसन्नाः क्रियाव्याघातः पाप्मा। अर्थोपलब्धिप्रतिबन्धका धर्मा वागवच्छेदेनोपासन्ना अर्थव्याघातः पाप्मा। तेषां चायमप्रतिबन्धो वीर्यम्। तत् त्रिविधम्-ब्रह्म, क्षत्रम्, विडिति। मन सम्पूर्ण ज्ञानों का, प्राण सब क्रियाओं का और वाक् रूप सब पदार्थों का उत्पादक है। बल के अनंत भेद हैं, उनमें

हरिद्वार कुंभ 2021

हरिद्वार कुंभ 2021 कुंभ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है। कुंभ का पर्याय पवित्र कलश से होता है। इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्व है। कलश के मुख को भगवान विष्णु, गर्दन को रुद्र, आधार को ब्रह्मा, बीच के भाग को समस्त देवियों और अंदर के जल को संपूर्ण सागर का प्रतीक माना जाता है। यह चारों वेदों का संगम है। इस तरह कुंभ का अर्थ पूर्णतः औचित्य पूर्ण है। वास्तव में कुंभ हमारी सभ्यता का संगम है। यह आत्म जागृति का प्रतीक है। यह मानवता का अनंत प्रवाह है। यह प्रकृति और मानवता का संगम है। कुंभ ऊर्जा का स्त्रोत है। कुंभ मानव-जाति को पाप, पुण्य और प्रकाश, अंधकार का एहसास कराता है। नदी जीवन रूपी जल के अनंत प्रवाह को दर्शाती है। मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है यह तत्व हैं-अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश। इसलिए कुंभ अपने आप में एक पूर्ण सार्थकता लिए हुए है। कुंभ भगवान विष्णु का नाम है। कुंभ शब्द चुरादि-गणीय। (विष्णु सहस्त्रनाम-श्लोक 87)  कुभि (कुंभ) आच्छादन धातु से विपन्न होता है। जो आच्छान करता है, ढकता है, आवृत किए रहता है। इसलिए वह भी कुंभ है। इसे कमु कान्तै धातु से जोड़ने पर अमृत प्राप्ति की कामना

रावण का परिवार

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रावण का परिवार रावण के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं, किन्तु रावण के परिवार के विषय में बहुत लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। आज इस लेख में हम संक्षेप में रावण के परिवार के विषय में जानेंगे। ध्यान दें कि यहाँ केवल रावण के व्यक्तिगत परिवार का विवरण दिया जा रहा है। सम्पूर्ण  राक्षस वंश  के विषय में एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित किया है जिसे आप  यहाँ  पढ़ सकते हैं। रावण के पिता  सप्तर्षियों  में से एक  महर्षि पुलत्स्य  के पुत्र महर्षि  विश्रवा  थे। महर्षि विश्रवा की पहली पत्नी का नाम इलविदा था जिनसे उन्हें कुबेर नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। कुबेर यक्षों के अधिपति बनें। विश्रवा ने दूसरा विवाह सुमाली नामक राक्षस की पुत्री  कैकसी  से किया। विश्रवा और कैकसी के तीन पुत्र हुए -  रावण ,  कुम्भकर्ण  एवं  विभीषण । इसके अतिरिक्त दोनों की एक कन्या भी थी -  शूर्पणखा । वैसे तो रावण की कई पत्नियां थी किन्तु रामायण में रावण की दो प्रमुख पत्नियों और छः पुत्रों का वर्णन मिलता है: मंदोदरी :  ये मयासुर और हेमा की बड़ी पुत्री थी और रावण की पटरानी। मायावी और दुदुम्भी इसके भाई थे जिनका वध वानर राज बाली ने किया। इन

ढाई की महिमा

*मैंने कभी पढा था* *"पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय,* *ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।। "* *बहुत अथक प्रयास के बाद अब पता लगा ये ढाई अक्षर क्या है-* *देखिये ढाई अक्षर👇* ✍️✍️ ढाई अक्षर के ब्रह्मा और ढाई अक्षर की सृष्टि। ढाई अक्षर के विष्णु और ढाई अक्षर की लक्ष्मी।  ढाई अक्षर के कृष्ण और  ढाई अक्षर की दुर्गा और ढाई अक्षर की शक्ति। ढाई अक्षर की श्रद्धा और ढाई अक्षर की भक्ति। ढाई अक्षर का त्याग और ढाई अक्षर का ध्यान। ढाई अक्षर की तुष्टि और ढाई अक्षर की इच्छा। ढाई अक्षर का धर्म और ढाई अक्षर का कर्म। ढाई अक्षर का भाग्य और ढाई अक्षर की व्यथा। ढाई अक्षर का ग्रन्थ और ढाई अक्षर का सन्त। ढाई अक्षर का शब्द और ढाई अक्षर का अर्थ। ढाई अक्षर का सत्य और ढाई अक्षर की मिथ्या। ढाई अक्षर की श्रुति और ढाई अक्षर की ध्वनि। ढाई अक्षर की अग्नि और ढाई अक्षर का कुण्ड। ढाई अक्षर का मन्त्र और ढाई अक्षर का यन्त्र। ढाई अक्षर की श्वांस और ढाई अक्षर के प्राण। ढाई अक्षर का जन्म ढाई अक्षर की मृत्यु। ढाई अक्षर की अस्थि और ढाई अक्षर की अर्थी। ढाई अक्षर का प्यार और ढाई अक्षर का युद्ध। ढाई अक्षर का मित्

रामचरित मानस : एक विशिष्ट जानकारी

*🏹रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य🏹* 1:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे। 2:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं। 3:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है। 4:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है। 5:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है। 6:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है। 7:~मानस में छन्द संख्या = 86 है। 8:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का। 9:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में। 10:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी। 11:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी। 12:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला। 13:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला। 14:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ। 15:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं। 16:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं। 17:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए। 18:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में। 19:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर। श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था? नहीं तो जानिये- 1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए, 2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए, 3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे, 4 - विवस्वान के वैवस्वत मन

अक्षय तृतीया

आइए जानें अक्षय तृतीया का महत्व......!!!  शास्त्रों में अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य जैसे-विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार अथवा उद्योग का आरंभ करना अति शुभ फलदायक होता है। सही मायने में अक्षय तृतीया अपने नाम के अनुरूप शुभ फल प्रदान करती है। अक्षय तृतीया पर सूर्य व चंद्रमा अपनी उच्च राशि में रहते हैं। इस वर्ष 2021 में अक्षय तृतीया 14 मई 2021 दिन शुक्रवार को होगी। तो आइए जानें 25 बातों से अक्षय तृतीया का महत्व... 1.“न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गंगयां समम्।।” वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। उसी तरह अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं है। 2 .अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा। 3. धरती पर भगवान विष्णु ने 24 रूपों में अ

महत्वपूर्ण

*एक पठनीय आलेख* *अगर आपको पढ़ने से एलर्जी न हो तो समय निकालकर जरूर पढे़ं।*   *विद्वान* और *विद्यावान* में अन्तर *What is the difference between higly qualified & well qualified person?*       *विद्वान* व *विद्यावान* में अंतर समझना हो तो *हनुमान जी व रावण के चरित्र के अंतर को समझना पडे़गा।* आइए शुरू करते हैं श्री हनुमान चालीसा से। *तुलसी दास जी ने हनुमान को विद्यावान कहा , विद्वान नहीं।* *विद्यावान गुनी अति चातुर।* *राम काज करिबे को आतुर*॥ अब प्रश्न उठता है कि *क्या हनुमान जी विद्वान नहीं थे* ? जब वे विद्वान नहीं थे तो *वे विद्यावान कैसे हुए* ?? दोस्तों , विद्वान और विद्यावान में वही अंतर है जो *हाइली क्वालिफाइड ( उच्च शिक्षित ) और वेल क्वालिफाइड* ( सुशिक्षित ) लोगों में है। इन दोनों में *बहुत ही बारीक लेकिन महत्वपूर्ण अन्तर है।* उदाहरणार्थ *रावण विद्वान है और हनुमानजी विद्यावान हैं।* रावण के बारे में कहा जाता है कि उसके दस सिर थे। दरअसल यह एक प्रतीतात्मक वर्णन है। *चार वेद और छह: शास्त्र दोनों मिलाकर दस होते हैं। इन्हीं को दस सिर कहा गया है। जिसके सिर में ये दसों भरे हों , वही दसशी