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Showing posts from April, 2021

नरक के द्वार

: कौन जाता है नरक :  ज्ञानी से ज्ञानी, आस्तिक से आस्तिक, नास्तिक से नास्तिक और बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति को भी नरक का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ज्ञान, विचार आदि से तय नहीं होता है कि आप अच्छे हैं या बुरे। आपकी अच्छाई आपके नैतिक बल में छिपी होती है। आपकी अच्छाई यम और नियम का पालन करने में निहित है। अच्छे लोगों में ही होश का स्तर बढ़ता है और वे देवताओं की नजर में श्रेष्ठ बन जाते हैं। लाखों लोगों के सामने अच्छे होने से भी अच्छा है स्वयं के सामने अच्छा बनना। मूलत: जैसी गति, वैसी मति। अच्छा कार्य करने और अच्छा भाव एवं विचार करने से अच्छी गति मिलती है। निरंतर बुरी भावना में रहने वाला व्यक्ति कैसे स्वर्ग जा सकता है?   ये लोग जाते हैं नरक में : धर्म, देवता और पितरों का अपमान करने वाले, तामसिक भोजन करने वाले, पापी, मूर्छित, क्रोधी, कामी और अधोगा‍मी गति के व्यक्ति नरकों में जाते हैं। पापी आत्मा जीते जी तो नरक झेलती ही है, मरने के बाद भी उसके पाप अनुसार उसे अलग-अलग नरक में कुछ काल तक रहना पड़ता है।   निरंतर क्रोध में रहना, कलह करना, सदा दूसरों को धोखा देने का सोचते रहना, शराब पीना, मां

धन और धर्म

*धन* और *धर्म* में कौन *महान* है? ☆○☆○☆○☆○☆○☆○☆○☆○ *धन* की *रक्षा करनी* पड़ती है । *धर्म* हमारी *रक्षा* करता है । *धन का दुरुपयोग, या गलत मार्ग से अर्जित धन हमें दुर्गति* में ले जा सकता है । *धर्म निश्चित तौर पर हमें सद्गति* में ले जाता है । *धन* के लिए कभी-कभी/ जाने-अनजाने में हमसे *पाप कर्म* भी होता है । *धर्म* में *पाप का त्याग* होता है । *धन* से *धर्म* मिलने की  Guarantee नहीं है । *धर्म पालन* से सबकुछ (मुक्ति/ निर्वाण के लिए आवश्यक) प्राप्त होता है । *धन* मित्रों को भी *दुश्मन* बना देता है । *धर्म* दुश्मन को भी *मित्र* बना देता है । *धन* भय को *उत्त्पन्न* करता है । *धर्म* भय को *समाप्त* करता है । *धन* रहते हुए भी *व्यक्ति दुःखी* है । *धर्म* से व्यक्ति *दुःख मुक्त* होता हैं । *धन* से *संकीर्णता* आती है । *धर्म* से *विशालता* आती है । *धन* इच्छा को *बढ़ाता* है । *धर्म* इच्छाओं को *घटाते हुए नष्ट करता* हैं । *धन* में *लाभ-हानी* चलती रहती है । *धर्म* से हर समय *फायदा ही फायदा* है । *धन* से राग, द्वेष, अहंकार, व अन्य अनेक दुर्गुण *बढ़ सकते* हैं । *धर्म* से राग, द्वेष, अहंकार, व अन्य अनेक द

अलग दृष्टिकोण

*एक दृष्टिकोण ये भी,* *=राम राज्य का स्वरूप*= एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे :- *"कहो राम !  सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ  ?"* राम मुस्कुराए :-   *"यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य ?"* *"जानते हो राम !   तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्में भी नहीं थे|*    यह भी नहीं जानती थी,  कि तुम कौन हो ?  कैसे दिखते हो ?  क्यों आओगे मेरे पास ?    *बस इतना ज्ञात था, कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा|* राम ने कहा :-  *"तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था, कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है”|* "एक बात बताऊँ प्रभु !    *भक्ति के दो भाव होते हैं |   पहला  ‘मर्कट भाव’,   और दूसरा  ‘मार्जार भाव’*| *”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है,   और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है|  दिन र

श्री राम

🕉️🙏भगवान श्री राम का विराट व्यक्तित्व🙏🕉️ 👉🕉️आदिकाव्य रामायण के बालकांड के १८वें सर्ग में महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है- ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ... अर्थात् चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौशल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवंदित जगदीश्वर श्री राम को जन्म दिया।  👉🕉️रामायण में राम को सत्य, सनातन, अनादि, आराध्य, आदर्श, प्रेरणा, प्रतीक, मर्यादा पुरुषोत्तम, दया, क्षमा, सदाचार, श्रद्धा,विश्वास, जीवन, जिजीविषा, धर्म, नीति, सामाजिक चेतना, धार्मिक चेतना, सांस्कृतिक चेतना, भारतीयता का उद्घोष, शासन की आदर्श संकल्पना, आदर्श पिता, पुत्र, राजा, शिष्य, मित्र, तारक, पालक, संहारक, नेतृत्वकर्ता, शौर्यवान, लोक भावना की संजीवनी, अलौकिक ज्योतिपुंज आदि अनेक रूपों में व्याख्यायित किया गया है।  👉🕉️रामायण में लिखा है कि सर्वप्रथम आदि कवि वाल्मीकि ने इस अनंत सत्ता के प्रति विद्या विशारद नारद मुनि के समक्ष जिज्ञासा व्यक्त कि - को न्वस्मिन्... अर्थात् हे मुने! इस समय इस संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्य वक्ता, दृढ़ प्रतिज्

रहस्य

*दुर्गा सप्तशती  श्री दुर्गा सप्तशती के सात सौ मन्त्र ब्रह्म की शक्ति चण्डी के मंदिर की सात सौ सीढियाँ है, जिन्हें पारकर साधक मंदिर में पहुँचता है।  मार्कण्डेय पुराणोक्त 700 श्लोकी श्री दुर्गा सप्तशती मुख्यतः 3 चरित्रों में विभाजित है :-             1. प्रथम चरित्र ( मधु-कैटभ-वध)              2. मध्यम चरित्र ( महिषासुर वध)              3. उत्तम चरित्र (शुम्भ-निशुम्भ-वध) तीनों चरित :- 3 प्रकार के कर्म संस्कारो या वासनाओं :-                    1.सञ्चित                     2.प्रारब्ध                     3.भविष्यत् तीन गुणों :-                     1.सत्व                      2.रज                      3.तम  तीन ग्रंथियों  :-                    1.ब्रह्म ग्रन्थि                     2.विष्णु ग्रन्थि                      3.रुद्र ग्रन्थि के प्रति न केवल हमारा ध्यान आकर्षित करते है अपितु एक सुंदर कथा के माध्यम से इनके मूल में हमारा प्रवेश भी करा देते हैं। जैसे ही मनुष्य उक्त तीनो के मूल में पहुँचता है, वैसे ही वह ब्रह्म की शक्ति भगवती चण्डिका के मन्दिर अर्थात सान्निध्य में पहुँच जाता है।  सप्तशती

भगवान का प्रसाद

अद्भुत  १.विश्व साहित्य का सबसे बडा़ ग्रंथ कौनसा हैं? --------महाभारत २.महाभारत के रचनाकार कौन हैं? ----वेदव्यास ३.वेदव्यास के पिता का नाम? ------पाराशर ४.वेदव्यास की माता का नाम? ----सत्यवती ५.यमुनाद्वीप में जन्म के कारण वेदव्यास को कहा जाता हैं?  ----द्वैपायन  ६.महाभारत में श्लोक हैं?  ----१ लाख ७.शतसाहस्त्री संहिता कहा जाता हैं?  ----महाभारत   ८.आर्ष काव्य किसे कहा जाता? -----महाभारत ९.वेदव्यास ने सर्वप्रथम महाभारत की कथा किसे सुनाई थी?  ----वैशम्पायन को  १० वैशम्पायन ने यह कथा किसे सुनाई थीं?  ---जन्मजेय ११.जन्मेजय ने कौनसा यज्ञ किया था? ----नागयज्ञ १३.तीसरी बार महाभारत की कथा उग्रस्रवा ने किसे सुनाई थी? -------शौनकादि ऋषियों को  १४.महाभारत का मूलरूप किसके नाम से प्रसिद्ध हैं.  ------जय १४.महाभारत का मूलरूप किसके नाम से प्रसिद्ध हैं.  ---जय १५."जय"में कुल श्लोक हैं? -----८८०० १६.भारत मे कूल श्लोक हैं? -----२४००० १७.महाभारत विभक्त हैं? -----पर्वों में १८. भारत का प्रवचन किसने किया था? ------वैशम्पायन १९. महाभारत में कुल पर्व है? -------१८ २०. महाभारत का सबसे बड़ा पर्व हैं?

विशिष्ट

अद्भुत  १.विश्व साहित्य का सबसे बडा़ ग्रंथ कौनसा हैं? --------महाभारत २.महाभारत के रचनाकार कौन हैं? ----वेदव्यास ३.वेदव्यास के पिता का नाम? ------पाराशर ४.वेदव्यास की माता का नाम? ----सत्यवती ५.यमुनाद्वीप में जन्म के कारण वेदव्यास को कहा जाता हैं?  ----द्वैपायन  ६.महाभारत में श्लोक हैं?  ----१ लाख ७.शतसाहस्त्री संहिता कहा जाता हैं?  ----महाभारत   ८.आर्ष काव्य किसे कहा जाता? -----महाभारत ९.वेदव्यास ने सर्वप्रथम महाभारत की कथा किसे सुनाई थी?  ----वैशम्पायन को  १० वैशम्पायन ने यह कथा किसे सुनाई थीं?  ---जन्मजेय ११.जन्मेजय ने कौनसा यज्ञ किया था? ----नागयज्ञ १३.तीसरी बार महाभारत की कथा उग्रस्रवा ने किसे सुनाई थी? -------शौनकादि ऋषियों को  १४.महाभारत का मूलरूप किसके नाम से प्रसिद्ध हैं.  ------जय १४.महाभारत का मूलरूप किसके नाम से प्रसिद्ध हैं.  ---जय १५."जय"में कुल श्लोक हैं? -----८८०० १६.भारत मे कूल श्लोक हैं? -----२४००० १७.महाभारत विभक्त हैं? -----पर्वों में १८. भारत का प्रवचन किसने किया था? ------वैशम्पायन १९. महाभारत में कुल पर्व है? -------१८ २०. महाभारत का सबसे बड़ा पर्व हैं?

सनातन वैदिक नववर्ष*

*#सनातन वैदिक नववर्ष* स्वागतम्                          स्वागतम् नववर्ष का प्राचीन एवं *ऐतिहासिक महत्व -* (आओ जानें कैसे मनायें नववर्ष) *चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,* विक्रमी संवत् २०७८ सृष्टि संवत् १९६०८५३१२३ वर्ष दिनांक - *१३ अप्रैल मंगलवार २०२१ ई.* #कैसे मनायें नववर्ष - १) प्रातःकाल उठ सूर्य दर्शन करें  २) सन्ध्या करें ईश्वर को पीछले वर्ष का धन्यवाद करें नववर्ष अच्छा जाये यह प्रार्थना करें। ३) घर पर ओ३म् पताका फहरायें। ३) यज्ञ करें नव संवत्सर के मन्त्रों से आहुति दें। ५) बालकों को नववर्ष का महत्व बतायें ६) अपने दुकान प्रतिष्ठान को सजायें ६) विगत वर्ष का आय-व्यय को देखें ७) नये खाते पर ओ३म् और गायत्री मन्त्र लिखें  ८) शोभा यात्रा निकालें, लोगों को जागरुक करें। ९) राहगीरों में मीठा शर्बत वितरित करें  ८) अपने चाहने वालों को नववर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित करें। ९) वेद एवं संस्कृत पढने वाले विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करें। *#सनातन प्रकल्प -*        *१.सृष्टि संवत्*        *२.मनुष्य उत्पत्ति संवत्*        *३.वेद संवत्*        *४.देववाणी भाषा संवत्*         *५.सम्पूर्ण प्राणी उत्पत्ति संवत्*    

नूतनसंवत्सरस्य(२०७८) शुभाशयाः।

नूतनसंवत्सरस्य(२०७८) शुभाशयाः। नववर्षोऽयं शुभमस्तु! नववर्षम्, शुभं भवतु नववर्षम्, सौख्यमयं निरामयं वितरतु परमं हर्षम्। शुभं भवतु नववर्षम्, नववर्षम्, नववर्षम्।। भारतीय नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ । भारतीय नववर्ष (नवसंवत्सर) -  यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है । इस दिवस का बहुत महत्त्व है । ऐतिहासिक एवं सामाजिक महत्त्व-  (१)भारत में प्रचलित सभी संवत्सरों  का प्रथम दिवस  । (२)  मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक इसी दिन हुआ । (३) उज्जयिनी के सम्राट् विक्रमादित्य ने इसी दिन शकों को पूर्ण रूप से परास्त कर विक्रमी संवत् प्रारंभ किया ।(४)गुरु अंगददेव जी का जन्म इसी दिन हुआ । (५) महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना इसी दिन की।  (६)  मां दुर्गा की उपासना नवरात्र इसी  दिन से प्रारंभ ।(७)सिंध प्रांत के प्रसिद्ध समाजरक्षक वरुणावतार संत झूलेलाल का जन्मदिन भी वर्ष प्रतिपदा ही है । (८) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक प.पू. डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार जी का जन्म इसी दिन हुआ (१८८९ ई.।) (९). शालिवाहन शकसंवत्  (भारत का राष्ट्रीयसंवत्)  का प्रथम दिन ।   चैत्र शुक्ल १ न

दान और दक्षिणा मे अंतर

दान और दक्षिणा मे अंतर  🌹 🌿 अक्सर देखा.गया है कि लोग पूजा करवाने के बाद दक्षिणा देने की बारी आने पर पंडित से बहस और चिक -चिक करने लग जाते है... लोग तर्क देेने लगते है कि दक्षिणा श्रद्धा से दिया जाता है;  पंडित को "लोभी हो, लालची हो",इस तरह की कई सारी बाते लोग बोलने लगते है और अनावश्यक ही पंडित को असंतुष्ट कर अपने द्वारा की गई पूजा के पूर्ण फल से वंचित रह जाते है....क्योकि ब्राह्मणों की संतुष्टि महत्वपूर्ण है  यहाँ एक और बात ब्राह्मणो के लिये भी कहना चाहूंगा कि ब्राह्मणों को संतोषी स्वभाव का होना चाहिये.. अब हम दान और दक्षिणा पर बात करते है..दान श्रद्धानुसार किया जाता है जबकि दक्षिणा शक्ति के अनुसार. जब हम मन मे किसी के प्रति श्रद्धा या दया के भाव से युक्त होकर बदले मे उस व्यक्ति से कोई सेवा लिये बिना,अपने मन की संतुष्टि के लिये उसे कुछ देते हैं उसे दान कहते है... जबकि दक्षिणा पंडित को उसके द्वारा पूजा - पाठ करवाने के बाद उसे पारिश्रमिक के तौर पर दिया जाता है, अर्थात् चूंकि यह पंडित का पारिश्रमिक है अतः उसे पूरा अधिकार है कि वो आपकी दी गई दक्षिणा से संतुष्ट न होने पर और देने