धारणा : चारों वेदों के ज्ञाता ,महापंडित लंकापति रावण
हम कभी कभी किसी के भी बारे में सुनकर अपनी एक धारणा बना लेते हैं ।उसके बाद चाहे हमें कुछ भी कहा जाए वह धारणा सदा ही कायम रहती है, उसे परिवर्तित होने में बहुत समय लगता है, और उसके लिए हमें बहुत से तर्क और प्रमाण देने पड़ते हैं। लंकापति रावण के बारे में हम लोग सब जानते हैं लेकिन उन के जितने विद्वान ,चारों वेदों के ज्ञाता, अपनी मर्यादा का पालन करने वाले, अपने वचन को निभाने वाले रावण एक बहुत ही सज्जन व्यक्ति थे। वे परोपकार करना चाहते थे और उनके तीन स्वप्न थे प्रथम कि वह स्वर्ग तक सीढ़ी बनाना चाहते थे। दूसरा वह समुद्र के पानी को मीठा करना चाहते थे और तीसरा वह सोने में सुगंध पैदा करना चाहते थे। इनमें से प्रथम दो प्रत्यक्ष रूप से जगत कल्याण के उदाहरण माने जा सकते हैं । हम आज अमृतसर में (19/10/2018) हुए हादसे में सब लोग यह कह रहे हैं कि "रावणी रेल" ने बहुत से लोंगो की जान ले ली। इस बात को लेकर मुझे आपत्ति है कि हम सब अपनी गलतियों को दूसरे के सिर पर मढ़ देते हैं। रावण ने बिना किसी कारण कभी किसी का बुरा नहीं चाहा और रामचरितमानस में यह प्रमाण है कि उन्होंने राम जी के साथ युद्ध