बाली का वध और तारा विलाप

बाली का वध  और  तारा विलाप
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ऐसी मान्यता है कि राम ने बाली पर जो तीर चलाया था वह एक साधारण तीर था, अर्थात् राम के तरकश में अनेकों अस्त्र थे जिनसे पल भर में जीव तो क्या पूरी की पूरी सभ्यता का विनाश हो सकता था, जैसे ब्रह्मास्त्र इत्यादि। लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम — जो कि विष्णु का अवतार थे और सर्वज्ञाता थे — ने एक साधारण सा ही तीर इसलिए चलाया क्योंकि वालि की तुरन्त मृत्यु न हो और मरने से पहले उसे अपने प्रश्नों का उत्तर भली भांति प्राप्त हो जाये ताकि वह शांति से प्राण त्याग सके और मरने से पहले वह स्वजनों से भली भांति मिल सके। ।

तारा हिन्दू महाकाव्य रामायण में वानरराज बाली की पत्नी है। तारा की बुद्धिमता, प्रत्युत्पन्नमतित्वता, साहस तथा अपने पति के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को सभी पौराणिक ग्रन्थों में सराहा गया है। तारा को हिन्दू धर्म ने पंचकन्याओं में से एक माना गया है।पौराणिक ग्रन्थों में पंचकन्याओं के विषय में कहा गया है:-

अहिल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा।
पंचकन्या स्मरणित्यं महापातक नाशक॥

अर्थात् : अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं का प्रतिदिन स्मरण करने से सारे पाप धुल जाते हैं

जब तारा को बाली की मृत्यु का समाचार मिला तो वह अत्यन्त उद्विग्न हो गई और रोती हुई उस स्थान पर आई जहाँ बाली का शव पड़ा था। तारा और अंगद बाली के शव से लिपट कर बिलख-बिलख कर रोने लगे। उन दोनों दोनों को इस प्रकार रोते देख सुग्रीव को अत्यन्त दुःख हुआ। उसके नेत्रों से अश्रु बहने लगे।

तारा बाली से लिपट कर विलाप कर रही थी, “हे आर्यपुत्र! आप जैसे पराक्रमी वीर की राम ने छिप कर हत्या कर के अत्यन्त निंदनीय कर्म किया है। हे नाथ! आप मौन हो कर क्यों पड़े हैं? आप अपने पुत्र अंगद को किसके सहारे छोड़ गये? देखिये वह किस प्रकार से बिलख-बिलख कर रो रहा है। हे आर्यपुत्र! आज आप ऐसे निर्मोही कैसे हो गये? हे स्वामी! आप मुझे और अंगद को किसके भरोसे छोड़े जा रहे हैं? सुग्रीव! आज तुम्हारा मनोरथ सफल हो गया। अब आनन्द से राज्य का सुख भोगो। आज मेरे पास पुत्र, ऐश्वर्य सब कुछ होते हुये भी मैं विधवा के नाम से पुकारी जाकर संसार में तिरस्कृत जीवन व्यतीत करूँगी। पुत्र अंगद! अपने धर्मप्रेमी पिता का अन्तिम दर्शन कर लो। यमलोक को जाते हुये अपने पिता का हाथ जोड़ कर अभिवादन करो। देखो स्वामी! आपका पुत्र हाथ जोड़ कर आपके सामने खड़ा है। उसे आशीर्वाद क्यों नहीं देते? आज आपने इस युद्धरूपी यज्ञ में मेरे बिना कैसे भाग लिया। बिना अर्द्धांगिनी के तो कोई यज्ञ पूरा नहीं होता।”

इस प्रकार तारा नाना प्रकार से से विलाप करने लगी। बाली के वानर सरदारों ने बड़ी कठिनाई से उसे शव से अलग किया।

धनुष धारण किये राम को देख कर तारा उनके पास आकर बोली, “हे अमलकमलदललोचन राम! आप वीर, तेजस्वी, धर्मात्मा और महान दानवीर हैं। मैं आपसे एक दान माँगती हूँ। जिस बाण से आपने मेरे पति के प्राण लिये हैं उसी बाण से मेरे प्राण भी हर लीजिये ताकि मैं मर कर अपने पति के पास पहुँच जाऊँ। मेरे पतिदेव स्वर्ग में मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे।”

रामचरित मानस के अनुसार :-

तारा बिकल देखि रघुराया। दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया॥
छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा॥

तारा को व्याकुल देखकर श्री रघुनाथजी ने उसे ज्ञान दिया और उसकी माया (अज्ञान) हर ली। (उन्होंने कहा-) पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- इन पाँच तत्वों से यह अत्यंत अधम शरीर रचा गया है

तारा के मर्मस्पर्शी शब्दों को सुन कर रामचन्द्र बोले, “तारा! तेरा इस प्रकार शोक और विलाप करना व्यर्थ है। सारा संसार परमात्मा के द्वारा बनाये गये विधान के अनुसार चलता है। विधाता की ऐसी ही इच्छा थी, यह सोच कर तुम धैर्य धारण करो। अंगद की कोई चिन्ता मत करो। वह आज से इस राज्य का युवराज होगा। तुम्हारा पति वीर था, वह युद्ध करते हुये वीरगति को प्राप्त हुआ है; यह तुम्हारे लिये गौरव की बात है। शोक तज कर रोना बन्द करो। रोने से दिवंगत आत्मा को कष्ट पहुँचता है।”

इस प्रकार राम ने तारा को अनेक प्रकार से धैर्य बँधाया। फिर वे सुग्रीव से बोले, “हे वीर! तारा और अंगद को साथ ले जा कर अब तुम वालि के अन्तिम संस्कार की तैयारी करो। अंगद! तुम इस संस्कार के लिये घृत, चन्दन आदि ले आओ। और हे तारा! तुम भी शोक को त्याग कर बाली के लिये अर्थी की तैयारी कराओ।”

इस प्रकार रामचन्द्र जी ने सब से कह सुन कर बाली के अन्तिम संस्कार की तैयारी करवाई।

वालि की शवयात्रा में बड़े-बड़े योद्धा और किष्किन्धा निवासी रोते कलपते श्मशान घाट पहुँचे। स्त्रियों के करुणाजनक विलाप से सम्पूर्ण वातावरण शोकाकुल प्रतीत हो रही थी। नदी के तट पर जब चिता बना कर बाली का शव उस पर रखा गया तो सम्पूर्ण वातावरण एक बार फिर करुण चीत्कार से गूँज उठा। तारा पुनः बाली के शव से लिपट गई। वह चिता पर ही उससे लिपट कर विलाप किये जा रही थी। बड़ी कठिनाई से उसे को बाली के शव से पृथक किया गया। अन्त में अंगद ने चिता को अग्नि दी। जब बाली का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया तो श्री रामचन्द्र जी ने लक्ष्मण, सुग्रीव, अंगद एवं अन्य प्रमुख वानरों के साथ मिल कर उसके लिये जलांजलि दी।

राम कहा अनुजहि समुझाई। राज देहु सुग्रीवहि जाई॥
रघुपति चरन नाइ करि माथा। चले सकल प्रेरित रघुनाथा॥

श्री रामचंद्रजी ने छोटे भाई लक्ष्मण को समझाकर कहा कि तुम जाकर सुग्रीव को राज्य दे दो। श्री रघुनाथजी की प्रेरणा (आज्ञा) से सब लोग श्री रघुनाथजी के चरणों में मस्तक नवाकर चले और सुग्रीव को राजा बनाया गया ।

लछिमन तुरत बोलाए पुरजन बिप्र समाज।
राजु दीन्ह सुग्रीव कहँ अंगद कहँ जुबराज॥

लक्ष्मणजी ने तुरंत ही सब नगरवासियों को और ब्राह्मणों के समाज को बुला लिया और (उनके सामने) सुग्रीव को राज्य और अंगद को युवराज पद दिया॥

शास्त्र समझाते हैं। यह एक अनूठा संदर्भ है कि तारा ने बाली की चिता में अपने भी प्राण त्यागने का संकल्प लिया। इसका अभिप्राय यह भी हो सकता है कि सती प्रथा हमारे समाज में प्राचीन काल से चली आ रही है। हालांकि इस संदर्भ में इतना ही कहना उचित होगा कि विलाप के समय उसने जो वचन कहे वह कोई साधारण नारी नहीं बोल सकती है। उसको राजनीति तथा कूटनीति का अच्छा ज्ञान था और इसी वजह से वानरों के कहने के बावजूद उसने अंगद का राज्याभिषेक न करा कर सुग्रीव को ही राजा मनोनित किया। अपने पुत्र पर कोई आँच न आने पाये, इस कारण उसने सुग्रीव को अपना स्वामी स्वीकार कर लिया ।

किसी भी तरह की त्रुटिओं एवं भूलों के लिए क्षमा प्रार्थी हैं ।
🚩जय सिया राम🚩

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