हरिद्वार कुंभ 2021

हरिद्वार कुंभ 2021


कुंभ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है। कुंभ का पर्याय पवित्र कलश से होता है। इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्व है। कलश के मुख को भगवान विष्णु, गर्दन को रुद्र, आधार को ब्रह्मा, बीच के भाग को समस्त देवियों और अंदर के जल को संपूर्ण सागर का प्रतीक माना जाता है। यह चारों वेदों का संगम है। इस तरह कुंभ का अर्थ पूर्णतः औचित्य पूर्ण है। वास्तव में कुंभ हमारी सभ्यता का संगम है। यह आत्म जागृति का प्रतीक है। यह मानवता का अनंत प्रवाह है। यह प्रकृति और मानवता का संगम है। कुंभ ऊर्जा का स्त्रोत है। कुंभ मानव-जाति को पाप, पुण्य और प्रकाश, अंधकार का एहसास कराता है। नदी जीवन रूपी जल के अनंत प्रवाह को दर्शाती है। मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है यह तत्व हैं-अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश। इसलिए कुंभ अपने आप में एक पूर्ण सार्थकता लिए हुए है।

कुंभ भगवान विष्णु का नाम है।


कुंभ शब्द चुरादि-गणीय।

(विष्णु सहस्त्रनाम-श्लोक 87)


 कुभि (कुंभ) आच्छादन धातु से विपन्न होता है। जो आच्छान करता है, ढकता है, आवृत किए रहता है। इसलिए वह भी कुंभ है। इसे कमु कान्तै धातु से जोड़ने पर अमृत प्राप्ति की कामना का बोध होता है।इसलिए कुंभ को पेट, गर्भाशय, ब्रह्मा, विष्णु की संज्ञा दी गई है। पृथ्वी लोक में कुंभ, अर्धकुंभ पर्व के सूर्य, चन्द्रमा तथा बृहस्पति तीन ग्रह कारक हैं। सूर्य आत्मा है, चन्द्रमा मन है, बृहस्पति ज्ञान है। आत्मा अजर, अमर, नित्य तथा शान्त है, मन चंचल, ज्ञान मुक्ति कारक है। आत्मा में मन का लय होना, बुद्धि का स्थिर होना नित्य मुक्ति का हेतु है। ज्ञान की स्थिरता तभी संभव है जब बुद्धि स्थिर हो। देवी बुद्धि का कारक गुरु है। बृहस्पति का स्थिर राशियों वृष, सिंह, वृश्चिक एवं कुंभ में होना ही बुद्धि का स्थैर्य है। चन्द्रमा का सूर्य से युक्त होना अथवा अस्त होना ही मन पर आत्मा का वर्चस्व है। आत्मा एवं मन का संयुक्त होना स्वंकल्याण के पथ पर अग्रसर होना है। कुंभ, अर्ध कुंभ को हम शरीर, पेट, समुद्र, पृथ्वी, सूर्य, विष्णु के पर्यायों से सम्बद्ध करते हैं पर समुद्र ,नदी, कूप आदि सभी कुंभ के प्रतीक है। वायु के आवरण से आकाश, प्रकाश से समस्त लोको को आतृत करने के कारण सूर्य नाना प्रकार की कोशिकाओं, स्नायु तंत्रों से आवृत्त रहता है, इसलिए कुंभ है। कुंभ इच्छा है, कामवासना रुप को आतृत करने के कारण काम ब्रह्मा है। चराचर को धारण करने, उसमें प्रवृष्ट होने के कारण विष्णु स्वयं पूर्ण कुंभ है।

कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग तथा हरिद्वार में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होते हैं।खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और बृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को “कुंभ स्नान-योग” कहते हैं ।


हरिद्वार में कुंभकाल 


कुंभ पर्व एक अमृत स्नान और अमृतपान की बेला है। इसी समय गंगा की पावन धारा में अमृत का सतत प्रवाह होता है। इसी समय कुंभ स्नान का संयोग बनता है। कुंभ पर्व भारतीय जनमानस की पर्व चेतना की विराटता का द्योतक है। विशेषकर उत्तराखंड की भूमि पर तीर्थ नगरी हरिद्वार का कुंभ तो महाकुंभ कहा जाता है।


पद्मिनीनायके मेषे कुंभराशि गते गुरौ।

गंगाद्वारे भवेत् योग: कुंभनामा तदोत्तम:।। 

 

बृहस्पति कुंभ राशि एवं सूर्य राशि जब होते हैं, तब हरिद्वार में अमृत-कुंभयोग होता है। 

 

वसंते विषुवे चैव घटे देवपुरोहिते।

गंगाद्वारे च कुन्ताख्‍य: सुधामिति नरो यत:।। 

 

बसंत ऋतु में सूर्य जब मेष राशि में संक्रमण करता है एवं देव पुरोहित वृहस्पति कुंभ राशि में आते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ मेला होता है। इस योग से मानव सुधा यानी अमृत प्राप्त करता है। 

 

कुंभराशिगते जीवे यद्दिने मेषगेरवो।

हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्ति वर्ज्जनम्।।

 

जिन दिनों में बृहस्पति कुंभ राशि में एवं सूर्य मकर राशि में रहेंगे, उन्हीं दिनों हरिद्वार में कुंभ स्नान करने पर पुनर्जन्म नहीं होता।

नक्षत्रों के इस विशेष संयोग के दौरान कल-कल बहती मोक्षदायिनी पतित पावनी श्री मां गंगा का पावन जल अमृतमयी हो जाता है। विशेष नक्षत्र, विशेष परिस्थितियों में पावन गंगा के पवित्र जल के पूजन और स्नान मात्र से ही व्यक्ति बैकुंठ की प्राप्ति का हकदार बन जाता है। समस्त पापों और कष्टों का निवारण हो जाता है और आत्मा शुद्ध हो जाती है। साथ ही परमात्मा का अंतः करण में वास हो जाता है।

कुंभ महापर्वों का संबंध देवगुरु बृहस्पति और जगत आत्मा सूर्य के राशि परिवर्तन से जुड़ा है। लेकिन जिस कुंभ राशि से कुंभ पर्व मुख्य रूप से जुड़ा है उस राशि में बृहस्पति केवल हरिद्वार कुंभ में ही प्रवेश करते हैं। प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में बृहस्पति कुंभस्थ नहीं होते।

हरिद्वार में गुरु के कुंभस्थ होने के कारण माना जाता है कि चारों कुंभ नगरों में कुंभ का पहला महापर्व हरिद्वार में पड़ा था। उसी के बाद अन्य कुंभ नगरों में कुंभ शुरू हुए। शास्त्रों के मुुताबिक जिस समय चार नगरों में कुंभ कलश छलके, उस समय कलश की सुरक्षा बृहस्पति और सूर्य के जिम्मे थी। ये दोनों ग्रह राशियों के हिसाब से चारों कुंभ नगरों में कुंभ का कारण बने।


हरिद्वार कुंभ का वैशिष्ट्य


बृहस्पति को कुंभ राशि में आने का परम मुहूर्त सौभाग्य केवल हरिद्वार में प्राप्त हुआ। हरिद्वार ही एकमात्र ऐसा कुंभ नगर है जहां बृहस्पति के कुंभ और सूर्य के मेष राशि में आने पर कुंभ महापर्व और मेला लगता है। शाही स्नान होते हैं। जबकि प्रयाग में बृहस्पति के वृष और सूर्य के मकर राशि में आ जाने पर कुंभ पर्व का महायोग आता है।

इसी प्रकार उज्जैन कुंभ मेला तब होता है जब बृहस्पति का आगमन सिंह और सूर्य का प्रवेश मेष राशि में हो जाए। नासिक में भी बृहस्पति के सिंह और सूर्य के भी सिंह राशि में पर कुंभ का मेला लगता है। सूर्य जहां बारह महीनों में सभी बारह राशियों की यात्रा पूरी कर लेते हैं, वहीं बृहस्पति को एक राशि से दूसरी में जाने में बारह वर्ष लगते हैं।

यही कारण है कि कुंभ मेला एक स्थान पर बारह वर्ष बाद आता है। यहां यह भी खास है कि उज्जैन और नासिक के कुंभ मेले करीब एक वर्ष में ही होते हैं। खगोलीय गणित और राशि प्रवेश पर निर्भर कुंभ मेला केवल हरिद्वार में ही कुंभस्थ होता है। प्रयाग कुंभ को वृषस्थ, उज्जैन और नासिक कुंभ मेलों को सिंहस्थ कहते हैं। कुंभस्थ होने के कारण हरिद्वार कुंभ को ही पहला कुंभ माना जाता है।


पौराणिक मान्यताएं


पुराणों के अनुसार हिमालय के उत्तर में क्षीरसागर है, जहां देवासुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। मंथन दंड था- मंदर पर्वत, रज्जु था-‍ वासुकि तथा स्वयं विष्णु ने कूर्म रूप में मंदर को पीठ पर धारण किया था। समुद्र मंथन के समय क्रमश: पुष्पक रथ, ऐरावत हाथ, परिजात पुष्प, कौस्तुभ, सुरभि, अंत में अमृत कुंभ को लेकर स्वयं धन्वंतरि प्रकट हुए थे। उक्त कुंभ को उन्होंने इंद्र को दिया था।

इंद्र ने उसे अपने पुत्र जयंत को सौंपा। देवताओं की सलाह पर जयंत उस कुंभ को लेकर स्वर्ग की ओर दौड़ा। यह देखकर दैत्याचार्य ने क्रोधित होकर दैत्यों को आदेश दिया कि बलपूर्वक उस कुंभ को उससे छीने। देवासुर संग्राम होने लगा। 12 दिन तक युद्ध करने के बाद देवताओं का दल हार गया। इसी बीच पृथ्‍वी के कई स्थानों पर कुंभ को छिपाया गया था। जिन 4 स्थानों पर कुंभ रखा गया था, उन्हीं स्थानों पर तब से 'कुंभ योग पर्व' मनाया जा रहा है। देवताओं के 12 दिवस नरलोक (पृथ्वीलोक) में 12 वर्ष होते हैं। वहीं वजह है कि प्रति 12 वर्ष के पश्चात कुंभ में स्नान करने के लिए यह महोत्सव होता है।


देवानां द्वादशाहोभिर्मर्त्यै द्वार्दशवत्सरै:।

जायन्ते कुंभपर्वाणि तथा द्वादश संख्यया:।।


कुंभ पर्व की ऐतिहासिकता


कुंभ मेला अपनी ऐतिहासिकता के साथ ही अपनी वैभवता के लिए दुनियाभर में विख्यात है और कुंभ मेले के बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज सिर्फ भारत में ही नहीं मिलते हैं, बल्कि कई विदेशी यात्री भी कुंभ मेले के बारे में सदियों से लिखते रहे हैं। इन ऐतिहासिक किताबों को यदि खंगाला जाए तो कुंभ मेले से संबंधित कई रोचक किस्से और कहानियां मिलती है। ऐसा एक किस्से का वर्णन चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी किया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग जब भारत भ्रमण के लिए आया था, उसी दौरान भारत में कुंभ मेले का भी आयोजन हुआ था। पहली बार इतनी बड़े विशाल मेले का आयोजन देखकर ह्वेनसांग (Xuanzang) चकित रह गया था और उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि साधु संतों का इतना बड़ा विशाल धार्मिक मेला भी धरती पर आयोजित होता है।

ह्वेनसांग ने 644 ईस्वी में प्रयाग में आयोजित कुंभ मेले की यात्रा की थी। उसने जब इस मेले में जानकारी हासिल की थी तो उसे बताया गया था कि कुंभ मेले आयोजन का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। ह्वेनसांग (Xuanzang)ने लिखा कि भारत में हर तीन साल के क्रम पर हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में विशाल कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है और 12 वर्ष के अंतराल पर इन चार नगरों में कुंभ मेला लगता है।

644 ईस्वी सन में प्रयाग में आयोजित कुंभ मेले को लेकर ह्वेनसांग ने लिखा कि तत्कालीन सम्राट हर्षवर्धन कुंभ मेले को लेकर काफी उत्साहित थे और उन्होंने इसके आयोजन के लिए अपना राजकोष खोल दिया था। ह्वेनसांग ने बताया कि बीत पांच साल में जितना भी कर संग्रहण किया गया था, सम्राट उसका दान साधु संन्यासियों और तीर्थयात्रियों को देते थे। साथ ही ह्वेनसांग (Xuanzang) ने यह भी बताया कि जब कुंभ मेले का भ्रमण करके वह अपने देश चीन लौट रहा था तब सम्राट हर्षवर्धन ने उन्हें कई रत्न और स्वर्ण आभूषण देना चाहा था, लेकिन ह्वेनसांग ने इसे लेने से इनकार कर दिया था। 

 कुंभ की वैदिक प्रामाणिकता


पौराणिक विश्लेषण से यह साफ़ है कि कुंभ पर्व एवं गंगा नदी आपस में सम्बंधित हैं। गंगा प्रयाग में बहती हैं परन्तु नासिक में बहने वाली गोदावरी को भी गंगा कहा जाता है, इसे हम गोमती गंगा के नाम से भी पुकारते हैं। क्षिप्रा नदी को काशी की उत्तरी गंगा से पहचाना जाता है। यहाँ पर गंगा गंगेश्वर की आराधना की जाती है। इस तथ्य को ब्रह्म पुराण एवं स्कंद पुराण के 2 श्लोकों के माध्यम से समझाया गया है-


" विन्ध्यस्य दक्षिणे गंगा गौतमी सा निगद्यते उत्‍तरे सापि विन्ध्यस्य भगीरत्यभिधीयते । "


" एव मुक्‍त्वा गता गंगा कलया वन संस्थिता गंगेश्‍वरं तु यः पश्येत स्नात्वा शिप्राम्भासि प्रिये। "


ज्योतिषीय गणना के अनुसार कुंभ का पर्व 4 प्रकार से आयोजित किया जाता है :


1. कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है।


" पद्‍मिनी नायके मेषे कुंभ राशि गते गुरोः । गंगा द्वारे भवेद योगः कुंभ नामा तथोत्तमाः।। "


2. मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुंभ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है।


मेष राशि गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ । अमावस्या तदा योगः कुंभख्यस्तीर्थ नायके ।। "


एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुंभ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।


3. सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है।


" सिंह राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । गोदावर्या भवेत कुंभों जायते खलु मुक्‍तिदः ।। "


4 सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है।


" मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । उज्जियन्यां भवेत कुंभः सदामुक्‍ति प्रदायकः ।। "


पौराणिक ग्रंथों जैसे नारद पुराण (2/66/44), शिव पुराण (1/12/22/-23) एवं वाराह पुराण (1/71/47/48) और ब्रह्मा पुराण आदि में भी कुंभ एवं अर्द्ध कुंभ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण उपलब्ध है। कुंभ पर्व हर 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। कहा जाता है कि हरिद्वार के बाद कुंभ पर्व प्रयाग, नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। प्रयाग और हरिद्वार में मनाये जाने वाले कुंभ पर्व में एवं प्रयाग और नासिक में मनाये जाने वाले कुंभ पर्व के बीच में 3 सालों का अंतर होता है।


कुंभ तीर्थ  का महत्व 


कुंभ मेला हिंदू तीर्थ यात्रियों का एक बड़ा तीर्थ स्थान है। कुंभ को विश्व के सबसे बड़े तीर्थ आयोजन के रूप में उल्लेखित किया जाता है।

‘तरति पापादिकं यस्मात्‘॥’ 

अर्थात जिसके द्वारा मनुष्य पापादि से तर (मुक्त) जाए, उसे ‘तीर्थ’ कहते हैं।

अथर्ववेद में तीर्थों का माहात्म्य बताते हुए कहा गया है- 


‘तीर्थैस्तरन्ति प्रवति महीरिति यज्ञकृतः सुकृतो येन यन्ति॥’  

अर्थात बडे़-बडे़ यज्ञों का अनुष्ठान करनेवाले पुण्यात्माओं को जो स्थान प्राप्त होता है, शुद्ध मन से तीर्थयात्रा करनेवाले को भी वही स्थान प्राप्त होता है

महाभारत के वनपर्व में वेद व्यासजी ने तीर्थयात्रा का महत्त्व बताते हुए कहा है 


‘तीर्थाभिगमनं पुण्यं यज्ञैरपि विशिष्यते॥’  


अर्थात तीर्थयात्रा पुण्यकार्य है, यह सब यज्ञों से बढ़कर है

वामन पुराण में वर्णन आया है- 


‘तीर्थानां स्मरणं पुण्यं दर्शनं पापनाशनम्॥’ 

 अर्थात तीर्थों का स्मरण पुण्य देनेवाला, तीर्थदर्शन पापों का नाश करनेवाला और तीर्थस्नान मुक्तिकारक है।


स्कंद पुराण के काशीखंड में उल्लेख है- 

‘स्नानं मुक्तिकरं प्रोक्तमपि दुष्कृतकर्मण॥’ 


अर्थात मन के अंदर यदि दोष भरा है तो वह तीर्थस्नान से शुद्ध नहीं होता।


कुंभ के साथ ही अर्धकुंभ का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है-


चतुरा: कुंभा चतुर्धा ददामि

 (अथर्ववेद- 4/34/7)

इस प्रकार हम देखते हैं की कुंभ पर्व का महत्व सार्वकालिक है,  सार्वभौमिक है ।

कोरोना महामारी और हरिद्वार कुंभ


इतिहास साक्षी है की वैदिक काल से हमारे यहां कुंभ पर्व का आयोजन होता चला आ रहा है। परंतु किसी भी प्रकार की महामारी भारत में कभी भी दिखाई नहीं पड़ी है ।यह सब पश्चिमी सभ्यताओं और पश्चिमी देशों से ही उत्पन्न होती है जो यहां तक फैलती है ।वर्तमान में भी कोरोना महामारी इसका एक जीवंत उदाहरण है। इसी महामारी के दौरान ही हरिद्वार में कुंभ पर्व का आयोजन किया जा रहा है जिसके चलते केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा बहुत से विशेष प्रबंध किए गए हैं।

कोरोना काल में आयोजित होने जा रहे हरिद्वार महाकुंभ 2021 की तिथि निर्धारित कर दी गई है। हर बार माह तक लगने वाले कुंभ मेला, इस बार संक्रमण के खतरे को देखते हुए केवल एक माह के लिए आयोजित होगा। कोरोना की रोकथाम और केंद्र सरकार की गाइडलाइन को देखते हुए राज्य सरकार ने मेले की अवधि घटाने का निर्णय लिया है। कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सरकार द्वारा विस्तृत गाइड लाइन पहले ही जारी की जा चुकी है।

राज्य सरकार ने कुंभ मेले के लिए अब एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक की अवधि निर्धारित की है। मुख्य सचिव ओमप्रकाश की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया। जल्द ही कुंभ मेले के संबंध में राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। कोरोना संक्रमण को देखते हुए पहले कुंभ मेले की अवधि 27 फरवरी से 27 अप्रैल तक प्रस्तावित की गई थी। हालांकि इससे पहले कुंभ मेला जनवरी से शुरू होकर अप्रैल तक, चार महीने के लिए आयोजित होता था।

हरिद्वार महाकुंभ में महाशिवरात्रि 11 मार्च 2021 से शाही स्नान शुरू हो चुका है। कुल चार शाही स्नान में से अभी तीन शाही स्नान बाकी हैं। महाकुंभ का दूसरा शाही स्नान सोमवती अमावस्या (12 अप्रैल) को होगा, जबकि चौथा यानी आखिरी शाही स्नान चैत्र पूर्णिमा के दिन होगा। हरिद्वार महाकुंभ के लिए राज्य सरकार व केंद्र सरकार की ओर से दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं। गाइडलाइन के अनुसार, गंगा स्नान के लिए आने वाले लोगों को 72 घंटें पहले तक आरटीपीसीआर प्रणाली से की गई कोरोना वायरस जांच की निगेटिव रिपोर्ट दिखाना अनिवार्य है। 

  • 1. पहला शाही स्नान- 11 मार्च 2021, दिन गुरुवार, त्योहार- महाशिवरात्रि। शास्त्रों के अनुसार, पृथ्वी पर गंगा की उपस्थिति का श्रेय भगवान शिव को जाता है। यही कारण है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है।

2. दूसरा शाही स्नान- 12 अप्रैल 2021, दिन सोमवार, त्योहार- सोमवती अमावस्या। सोमवती अमावस्या पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा जल का कारक है, जल की प्राप्ति और सोमवती को अमावस्या पर अमृत माना जाता है।

3. तीसरा शाही स्नान- 14 अप्रैल 2021, दिन बुधवार, त्योहार- मेष संक्रांति और बैसाखी। इस शुभ दिन पर, नदियों का पानी अमृत में बदल जाता है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन पवित्र गंगा में एक पवित्र डुबकी कई जीवन के पापों को नष्ट कर सकती है।

4. चौथा शाही स्नान- 27 अप्रैल 2021, दिन मंगलवार, त्योहार- चैत्र पूर्णिमा। पवित्र गंगा में स्नान करने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है और इसे 'अमृत योग' के दिन के रूप में जाना जाता है।


रजिस्ट्रेशन कराना होगा अनिवार्य-


हरिद्वार महाकुंभ जाने वाले श्रद्धालुओं को राज्य सरकार के कुंभ मेला से संबंधित वेब पोर्टल पर भी पंजीकरण करना अनिवार्य होगा और पंजीकरण संबंधी ई-पास भी अपने पास रखना होगा। साथ ही आरोग्य सेतु एप को भी अपने मोबाइल में चालू रखना होगा।


गंगा स्नान और पूजन का महत्त्व


गंगा नदी हिंदुओं के लिए देवी और माता समान है। इसीलिए हिंदुओं के लिए गंगा स्नान का बहुत महत्व है। गंगा जीवन और मृत्यु दोनों से जुडी़ हुई है इसके बिना हिंदू संस्कार अधूरे हैं। गंगाजल अमृत समान है। इलाहाबाद कुंभ में गंगा स्नान, पूजन का अलग ही महत्व है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है मकर संक्राति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान, पूजन, दान एवं दर्शन करना महत्त्वपूर्ण माना गया है। गंगाजी के अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम एवं गंगा आरती बहुत लोकप्रिय हैं। गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का क्षय होता है। मान्यता है कि गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। गंगा स्नान करने से अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त होता है। अमावस्या दिन गंगा स्नान और पितरों के निमित तर्पण व पिंडदान करने से सदगति प्राप्त होती है और यही शास्त्रीय विधान भी है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि कुंभ स्थल के पवित्र जल में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप-कष्ट धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगाजी में स्नान करने से सात्विकता और पुण्यलाभ प्राप्त होता है।


गंगाजल का महत्व


अर्धकुंभ प्रयाग तथा हरिद्वार में ही क्यों होता है? इस प्रश्न के उत्तर में गंगा के पवित्र जल एवं पर्यावरण की ही प्रधानता है। हरिद्वार में गंगा, प्रयाग में गंगा।

गंगा जल को वर्षों तक रखने के बाद भी इसमें कीड़े नहीं पड़ते है और न ही दूषित होता है। हड्डियों को गला देने वाली क्षमता केवल इसी जल में है। हरिद्वार के ब्रह्मकुण्ड में लाखों कुन्तल हड्डियां डाली जाती है। महाभारत में गंगा जल को चन्द्रायण व्रत से हजार गुना अधिक गुणकारी बताया गया है।


चन्द्रायण सहस्त्रेण यश्चरेत काय शोधनम्

य: पिबेद वै यथेष्टन्तु गंगाम्भ: स विशिष्यते।।


महर्षि चरके ने  विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ 'चरक संहिता' में लिखा है-


हिमवत्प्रभवा: पथ्य: पुण्या देवर्षि सेविता:। 

(चरक-सूत्रास्था 27/210)


पवित्र एवं देवताओं तथा ऋषियों द्वारा सेवित हिमालय से निकलने वाला गंगा जल पथ्य है। 

बाणभट्ट ने अपने अष्टांग हृदयम में लिखा है-


हिमवन्मलयोदभूता: पथ्यस्ता एवं च स्थिरा:।


हिमालय से निकलने वाला गंगा जल पथ्य है और वह कभी दूषित होने वाला नहीं है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध वैज्ञानिक चक्रपाणिदत्त ने लिखा है-


यथोक्त लक्षण हिमालय-भवत्या देव गंगा पथ्यं।।


हिमालय से निकलने और स्वास्थ्य वृद्धि के लिए यथोक्त लक्षणों से युक्त होने के कारण गंगा जल पथ्य है। भण्डारकर ओरियन्टल इंस्टीट्यूट पूना में सुरक्षित भोजन कुतुल नामक हस्तलिखित ग्रन्थ में लिखा है-


शीतं स्वादु स्वच्छमत्यतं रूच्य, पथ्य पाचनं पाप हारि।

तृष्णा मोह ध्वसनं दीपनं च प्रसादते वारि भागीर थीयम्।।


गंगा जल शीतल, स्वादिष्ट, स्वच्छ, अत्यंत रुचिकर पथ्य रोगी को देने योग्य, पाचन शक्ति बढ़ाने वाला, सब पापों का हरण करने वाला, मोह का नाश करने वाला, जठराग्नि को उद्दीप्त करने वाला, क्षुधा और बुद्धि को बढ़ाने वाला है।


फ्रान्सीसी डाक्टर डी.हेरेल, प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक ट्वेन, वर्लिन जर्मनी के डा.जे.ओलिवर(1924में) डॉ.ईएफके हिमान ने (1931 में) गंगा जल का परीक्षण वर्षों तक करने के बाद उपयोग में लोकर लिखा है कि गंगाजल में औषधि के सम्पूर्ण गुण विद्यमान यथावत मिले। इसमें हर प्रकार के किटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है।

गंगा श्रद्धा आस्था के साथ-साथ जीवन धारा क्यों? वह इसलिए कि यमुना और गंगा दोनों के जल में कीटाणु नाशक क्षमता है। 1894 में हुई इण्डियन मेडिकल कांग्रेस में भारतीय नदियों के कीटाणु नामक शोध पत्र में स्पष्ट किया गया कूप जल में कीटाणु बढ़ते है, जबकि दोनों नदियों के जल में कीटाणु नष्ट हो जाते है।

अब्दुल फजल अपनी आइने अकबरी पुस्तक में लिखते है: बादशाह अकबर गंगा जल को अमृत समझते थे। वे पीने तथा भोजन में गंगा जल का उपयोग करते थे।


हरिद्वार कुंभ यात्रा 2021:एक स्वार्गिक अनुभूति


हम अक्सर सोचते रहते हैं कि दैनिक कार्यों से कभी थोड़ा सा अवकाश मिलेगा तो हम तीर्थ यात्रा को जाएंगे ।अमूमन हम तीर्थ यात्राओं को वृद्धावस्था के लिए ही छोड़ देते हैं। परंतु मेरा ऐसा मानना है कि जब भी इस प्रकार के अवसर प्राप्त हों तो उन्हें सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए ।वैसे तो सब कुछ ईश्वरेच्छा से संपन्न होता है। मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हूं कि मुझे जीवन में पहली बार कुंभ पर्व देखने का एक अविस्मरणीय अवसर प्राप्त हुआ।

इस साल हरिद्वार में लगने वाले पूर्ण कुंभ का पहला शाही स्नान 11 मार्च 2021 को महाशिवरात्रि के दिन होना था।

हम 10 मार्च को ही हरिद्वार के लिए निकल गए। गंगा किनारे पर भजन कीर्तन का जो स्वार्गिक  आनंद प्राप्त हुआ उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना संभव नहीं है। मां गंगा की कल- कल करती आवाज, अथाह जल राशि ,निरंतर गतिशीलता, अद्भुत सौंदर्य हमें बहुत कुछ सिखाता है । वास्तव में ही गंगा हमारी माँ है क्योंकि वह हम सभी को अवगुणों को, हमारी गंदगी को अपने अंदर समेट लेती है। शिवरात्रि के दिन गंगा तट पर ही गंगाजल से रुद्राभिषेक होना बहुत बड़ा सौभाग्य प्रदान करने वाला है। शिवरात्रि का दिन हो, गंगा का किनारा हो और कुंभ पर्व हो ऐसा दुर्लभ संयोग बहुत कम मिलता है। इसी के साथ विद्वान पंडितों के द्वारा सस्वर रुद्राष्टकम, शिव तांडव स्त्रोत्रम

 का पाठ हो तो इस आनंदानुभूति के बारे में क्या कहा जा सकता है।  तत्पश्चात गंगा तट पर ही हवन आदि धार्मिक अनुष्ठानों के द्वारा  जितनी आत्मिक शांति और संतुष्टि प्राप्त हुई वह किसी स्वार्गिक आनंद से कम नहीं है ।अपने अनुभव से मैं यह कहना चाहती हूं कि हम सभी को जीवन में एक बार कुंभ पर्व का भ्रमण अवश्य करना चाहिए। धन्य है हमारी सत्य सनातन धर्म संस्कृति, हमारी परंपराएं, हमारे मूल्य, हमारे पर्व आदि जो समय- समय पर आकर हम सभी को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य करते हैं। यही तो मानवीयता है, मानव धर्म है।

धन्य है भारत भूमि। सादर वंदन, अभिनदंन

मेरा भारत महान ।



संदर्भ

1.विष्णु सहस्रनाम, ब्रह्मा पुराण एवं स्कंद पुराण, नारद पुराण, शिव पुराण, वाराह पुराण, महाभारत, चरक संहिता आदि।

2. 1.0 1.1 1.2 1.3 कुंभ 2013 (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) कुंभ मेला (आधिकारिक वेबसाइट)। अभिगमन तिथि: 7 जनवरी, 2013।

3. इलाहाबाद कुंभ मेला : त्रिवेणी संगम पर ही क्यों स्नान पर्व (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 7 जनवरी, 2013।

4. हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 190 |

5. कुंभ पर्व चक्र (हिंदी) कुंभ मेला (आधिकारिक वेबसाइट)। अभिगमन तिथि: 10 जनवरी, 2013।

6. प्रयाग कुंभ मेला 2013 (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 7 जनवरी, 2013।

7. ज्योतिषीय दृष्टिकोण (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) कुंभ मेला (आधिकारिक वेबसाइट)। अभिगमन तिथि: 8 जनवरी, 2013।

8. कुंभ के अनुष्ठान (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) कुंभ मेला (आधिकारिक वेबसाइट)। अभिगमन तिथि: 8 जनवरी, 2013।

9. गंगा स्नान पर्व का महत्व (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 7 जनवरी, 2013

10.10.0 10.1 भारतीय अस्मिता का रक्षा कवच- कुंभ (हिन्दी)। 

11.प्रवचन, संत की कलम से ,कुंभ 2021 अवधेशानंदगिरि जी


लेखिका


डॉ विदुषी शर्मा, अकादमिक काउंसलर,IGNOU

OSD , (Officer on Special Duty)NIOS

(National Institute of Open Schooling)

विशेषज्ञ, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार

Email -drvidushisharma9300@gmail.com

Mobile - 9811702001





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