धन और धर्म



*धन* और *धर्म* में कौन *महान* है ?

*धन* की *रक्षा करनी* पड़ती है ।
*धर्म* हमारी *रक्षा* करता है ।

*धन दुर्गति* में ले जाता है ।
*धर्म सद्गति* में ले जाता है ।

*धन* के लिए *पाप करना* पड़ता है ।
*धर्म* में *पाप का त्याग* होता है ।

*धन* से *धर्म* नहीं होता ।
*धर्म* *आत्मा* से होता है ।

*धन* मित्रों को भी *दुश्मन* बना देता है ।
*धर्म* दुश्मन को भी *मित्र* बना देता है ।

*धन* भय को *उत्त्पन्न* करता है ।
*धर्म* भय को *समाप्त* करता है ।

*धन* रहते हुए भी *व्यक्ति दुःखी* है ।
*धर्म* से व्यक्ति *दुःख में भी सुखी* है ।

*धन* से *संकीर्णता* आती है ।
*धर्म* से *विशालता* आती है ।

*धन* इच्छा को *बढ़ाता* है ।
*धर्म* इच्छाओं को *घटाता* है ।

*धन* में *लाभ-हानी* चलती रहती है ।
*धर्म* से हर समय *फायदा ही फायदा* है ।

*धन* से कषाय *बढ़ती* है ।
*धर्म* से कषाय *शांत* होती है ।

*धन* चार गति में *भटकाता* है ।
*धर्म* चार गति को *पार* कराता है ।

*धन* से *रोग* बढ़ता है ।
*धर्म* से *जीवन स्वस्थ* बनता है ।

*धन अशाश्वत* है ।
*धर्म शाश्वत* है ।

*धन* का साथ *इसी भव* तक है ।
*धर्म परभव* में भी साथ रहता है ।


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