बसंत पंचमी

*सरस्वती देवी:--*

*बसन्त पञ्चमी ये सरस्वती का प्रगट दिन माना जाता है |*

*आर्यों ने सरस्वती नदी के तीर पर वेदों की रचना की इसलिए ज्ञानदात्री के रूप में सरस्वती देवी की मुर्ति अस्तित्व में आयी |*

*सरस्वती देवी विद्या की अधिष्ठात्री देवता मानी जाती है | किन्तु अन्य देवता और सरस्वती में बहुत बड़ा फर्क हें |*

*अन्य देवता किसी ना किसी की ‘’कुलदेवता’’ रहती हें, वैसे सरस्वती किसी भी कुल की देवता हें ऐसा नही दिखता |*

*सरस्वती का कोई भी सम्प्रदाय नही हें | और सरस्वती के मन्दिरों की संख्या भी बहुत कम हें |*

*और अन्य देवतो की अपेक्षा सरस्वती पर ग्रन्थरचना भी बहुत कम ही हें |*

*ऐसा हें तो भी सरस्वती प्रत्येक व्यक्ती का अनेकार्थो से दैवत हें | सरस्वती का वरदहस्त पाने के लिए असीम कष्टों की आवश्यकता होती हें |*

*कोई भी विद्या परिश्रम से ही प्राप्त होती हें | इसके बाद सरस्वती का वरदहस्त प्राप्त होता हें |*

*‘’ सरसःअवती ‘’ इसका अर्थ एक गती में ज्ञान देनेवाली अर्थात् गतिमती|* 

*निष्क्रिय ब्रह्मा का सक्रिय रूप, इसलिए उसे ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’ ये तीनों को गती देनेवाली शक्ती ऐसा कहा गया है  |*

वह ब्रह्मा की मानसकन्या है| 

*सरस्वती का अर्थ उज्ज्वल ऐसा है  | इसलिए वह ज्योतिर्मय ब्रह्म का प्रतीक है  |*

*श्री सरस्वती ब्रह्मा की शक्ती होने के कारण ब्रह्मदेव के सृष्टिनिर्माण के कार्य में सरस्वती का भी सहभाग है  |*

*इसलिए ब्रह्मदेव के साथ सरस्वती भी उपास्य है  | महासरस्वती देवी और सरस्वती देवी अनुक्रम से निर्गुण और सगुण दोनों स्तर पर ब्रह्मा की शक्ती बनकर उन्हें सहकार्य करती है  |*

*ब्रह्मा की शक्ती उससे एकरूप ही रहती है| इसलिए वह ब्रह्मा की पत्नी भी मानी जाती है |*

*अपने निर्मिती के प्रेम में पड़ने के कारण ही शायद ब्रह्मा की उपासना नही की जाती |*

*मूलतः सरस्वती पंजाब में बहनेवाली नदी, उसके प्रवाह की तुलना अस्खलित वाणी के साथ की जाती है |*

*यही से सरस्वती को वाणी की स्फुर्तिदेवता और विज्ञान तथा साहित्य की अधिष्ठात्री देवता माना गया है |*

*ऋग्वेद में सरस्वती को देवताओं की रानी कहा गया है |*

*सरस्वती का उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद, पारशी धर्मग्रन्थ अवेस्ता, उपनिषदों मे, पुराणों में मिलता है |*

*उपनिषदों में सरस्वती की वाणी के साथ एकरूपता मानी गयी है | और वाणी मीठी होने के लिये उसकी प्रार्थना की गयी है |*

*पुराणों में कहीं सरस्वती को ब्रह्मदेव की पत्नी तो कही पर कन्या माना गया है |*

*सरस्वती का वर्णन शुभ्रवर्ण, शुभ्रवस्त्रधारिणी, अलंकारविभूषित, चतुर्भूज, पुंडरिक [ शुभ्र कमल ], माला, वीणा, कमण्डलू धारण करनेवाली ऐसा है |*

*पुस्तक और वीणा ये उसके प्रमुख चिन्ह है |*

*इसका अर्थ ये है की – सरस्वती कला, संगीत और साहित्य की देवता है |*

*_सरस्वती के पैर में जो पायल है वह कला का प्रतीक है,_*

*_हाथ में जो वीणा है वह संगीत का प्रतीक है,_*

*_पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है |_*

*वह कहीं पर भी कलंकित नही है क्यों की वह शुभ्र है |*

*_उसके पास जो हंस है वह सद्सद्विवेक बुध्दी का प्रतीक है |_*

*_कितना भी विद्वान क्यों ना हो अगर उसकी सद्सद्विवेक बुध्दी जागृत नही होगी तो वह विद्वत्ता विध्वंसक बन सकती है |_*

*महाभारत में ‘’सरस्वती गीता’’ है, और यहाँ पर सरस्वती ने पर्यावरण रक्षण के लिये ‘’ अग्निहोत्र ‘’ का महत्त्व बताया है |*

*प्रत्येक ग्रन्थारंभ में श्री गणेश को नमन करने के बाद सरस्वती नमन की परंपरा है और ये क्रम हमारे सब संतों ने पालन किया है |*

ऐसी ये देवता सरस्वती का आज प्रगट दिन है | जो हम बसन्त पञ्चमी के नाम से जानते है | 

वैसे सरस्वती ये दीर्घ लेखो का विषय है, लेकिन आज इतना ही पर्याप्त है |

जय श्री कृष्णा

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