अष्टावक्र : सम्पूर्ण वयक्तित्व
आज हम बात करते हैं ऋषि अष्टावक्र के बारे में, अष्टावक्र गीता के बारे में कि किस प्रकार अष्टावक्र जी का जन्म हुआ, उनके शरीर में 8 विकार कैसे आए? और किस तरह से उन्होंने शास्त्रार्थ में अनेक ऋषियों को पराजित किया।उनका एक- एक प्रश्न एवं एक - एक उत्तर प्रत्युत्तर बहुत ही गूढ़ एवं सारगर्भित है तथा अपने आप में ही विलक्षण है। इसके साथ हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे ऋषि मुनि कितने विद्वान थे, एवं उनके द्वारा जो शास्त्रार्थ होता था, जो तर्क दिए जाते थे वह कितने यथार्थ एवं शाश्वत होते थे। यह पूरी ही कथा बहुत ही सुंदर एवं रोचक है। महाराजा जनक के गुरु अष्टावक्र जी एक: एक सम्पूर्ण प्रस्तुति,,,, अष्टावक्र आठ अंगों से टेढ़े-मेढ़े पैदा होने वाले ऋषि थे। शरीर से जितने विचित्र थे, ज्ञान से उतने ही विलक्षण। उनके पिता कहोड़ ऋषि थे जो उछालक के शिष्य थे और उनके दामाद भी। कहोड़ अपनी पत्नी सुजाता के साथ उछालक के ही आश्रम में रहते थे। ऋषि कहोड़ वेदपाठी पण्डित थे। वे रोज रातभर बैठ कर वेद पाठ किया करते थे। उनकी पत्नी सुजाता गर्भवती हुई। गर्भ से बालक जब कुछ बड़ा हुआ तो एक रात को गर्भ के भीतर से ही बोला, हे