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महाभारत में वर्णित विभिन्न शंख

महाभारत में वर्णित प्रसिद्ध शंख शंख का महत्त्व हम सभी जानते हैं। कहते हैं कि जहाँ तक शंख की ध्वनि जाती है वहाँ तक कोई नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती। प्राचीन काल में शंख ना सिर्फ पवित्रता का प्रतीक था बल्कि इसे शौर्य का द्योतक भी माना जाता था। प्रत्येक योद्धा के पास अपना शंख होता था और किसी भी युद्ध अथवा पवित्र कार्य का आरम्भ शंखनाद से किया जाता था। महाभारत में भी हर योद्धा के पास अपना शंख था और कुछ के नाम भी महाभारत में वर्णित हैं। आइये कुछ प्रसिद्ध शंखों के बारे में जानें। - पाञ्चजन्य: ये श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध शंख था। जब श्रीकृष्ण और बलराम ने महर्षि सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा समाप्त की तब उन्होंने गुरुदक्षिणा के रूप में अपने मृत पुत्र को माँगा। तब दोनों भाई समुद्र के अंदर गए जहाँ श्रीकृष्ण ने शंखासुर नामक असुर का वध किया। तब उसके मरने के बाद उसका शंख (खोल) शेष रह गया जो श्रीकृष्ण ने अपने पास रख लिया। वही पाञ्चजन्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस बारे में विस्तृत लेख बाद में धर्मसंसार पर प्रकाशित किया जाएगा। - गंगनाभ: ये गंगापुत्र भीष्म का प्रसिद्ध शंख था जो उन्हें उनकी माता गंगा से

आरती "ओम जय जगदीश हरे"....के रचयिता

मैनें कुछ लोगों से पूछा कि क्या उन्हें पता है कि प्रसिद्ध आरती "ओम् जय जगदीश हरे" के रचयिता कौन हैं?*   *एक ने जवाब दिया कि हर आरती तो पौराणिक काल से गाई जाती है!* *एक ने इस आरती को वेदों का एक भाग बताया!* *और एक ने कहा कि सम्भवत: इसके रचयिता अभिनेता-निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार हैं!* *"ओम् जय जगदीश हरे", आरती आज हर हिन्दू घर में गाई जाती है! इस आरती की तर्ज पर अन्य देवी देवताओं की आरतियाँ बन चुकी है और गाई जाती है!* *परंतु इस मूल आरती के रचयिता के बारे में काफी कम लोगों को पता है!* *इस आरती के रचयिता थे पं. श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धाराम फिल्लौरी.* *पं. श्रद्धाराम शर्मा का जन्म पंजाब के जिले जालंधर में स्थित फिल्लौर शहर में हुआ था.* *वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे!* *उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था.* *बचपन से ही उन्हें ज्यौतिष और साहित्य के विषय में गहरी रूचि थी.* *उन्होनें वैसे तो किसी प्रकार की शिक्षा हासिल नहीं की थी परंतु उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढ

सत्य सनातन धर्म

सभी को नमस्कार आज एक ऐसी पोस्ट मिली है जिसे पढ़कर हम सभी को अपने हिंदुस्तानी होने पर गर्व महसूस होगा। इस पोस्ट में जो भी लिखा है वह सत्य है। सबसे  बड़ी विडंबना यह है कि जिन  शास्त्रों का ज्ञान हमें होना चाहिए ,जिस संस्कृति का, जिस संस्कृत का ज्ञान हमें होना चाहिए वह विदेशियों द्वारा हम तक पहुंच रहा है। हमारे ही ग्रंथ  पढ़कर, उन पर शोध करके वे अनेकानेक प्रयोग कर रहे हैं और हम उनकी विद्वत्ता का, उनके परिश्रम का लोहा मान रहे हैं। जबकि परोक्ष में सत्य कुछ और है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने यह सब कुछ कितने हजार साल पहले ही लिख दिया था तो उन्होंने कितना परिश्रम किया होगा? हम सभी के लिए, मानवता के लिए। कृपया विचार करें एवं अपने ज्ञान पर, अपने देश पर, अपने धर्म पर, अपनी संस्कृति पर गर्व करने का प्रयत्न करें। अपने आने वाली पीढ़ी को भी हिंदू संस्कृति को प्रणाम करना और उन्हें सच्चाई से अवगत कराने का प्रयत्न करें ताकि वे हिंदुस्तान को, उसकी सच्चाई को जान सके और ह्रदय से यह आत्मसात कर सके कि "मेरा भारत महान"🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 अधपकी इंग्लिश के साथ अपने आप को मॉर्डन समझ रहे हैँ ?😊 महर्षि अगस्त्

पर्वाधिराज पर्युषण

हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित तीज, त्यौहार, रस्मे ,मान्यताएं, रीति रिवाज बहुत ही वैज्ञानिक और अपने आप में अनूठे रहे हैं। उन्होंने विज्ञान को धर्म के साथ जोड़ दिया ताकि धर्म की बात आए तो लोग थोड़े से भयभीत हो और इन रस्मो, रीति-रिवाजों का पालन करें जिससे न केवल उनके शरीर की, आत्मा की, मन की, चित्त की अपितु पर्यावरण की भी शुद्धि और इन सभी का कल्याण संभव हो सके जैसे पीपल की पूजा करना, तुलसी की पूजा करना, उपवास करना इत्यादि जो अपने आप में बहुत वैज्ञानिक माने जाते हैं। इसी प्रकार का एक अलग सा त्योहार भी है जिसकी जानकारी आप सभी के बीच साझा कर रही हूं। आशा है आपको भी अच्छी लगेगी। *पर्वाधिराज पर्यूषण* पर्व पर्युषण परम, समझे जो तेरा मरम , हो जाए भव पार... जैन धर्म की शान तू, जिनागम की जान तू, हो जाए भव पार... पर्युषण पर्व जैन धर्म मे पर्वाधिराज कहे गए हैं । क्योंकि ये मन के उल्लास का पर्व नहीं है, ये तन की विलासिता का भी पर्व नहीं है अपितु ये आत्म कल्याण का पर्व है। बहुत विस्तार में जाने की अपेक्षा संक्षेप में ही अपनी  बात कहूंगी क्योकि अधिक मात्रा में रखा हुआ दूध जल्दी खराब हो जाता है

एक विचार

एक  अनुभव, एक विचार..... जीवन की सच्चाईयां इतिहास का हिस्सा होती है। बहुत सी घटनाएं ऐसी होती है जो एक शिक्षा बनकर कर लोगों के सामने आती है ।जीवन के अनुभव समय सीमा से परे होते हैं।हम एक बार यह सोचे कि हमारी जितनी भी लोकोक्तियां हैं वे अनुभवों के आधार पर अशिक्षित लोगों द्वारा बनाई गई है और वह हर युग में उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी तब थी। एक ऐसी ही घटना का यहां उल्लेख करना चाहूंगी जो जीवन की कठिन परिस्थितियों को झेलने का हौसला प्रदान करती है। यह आज की परिस्थितियों में अधिक प्रासंगिक है क्योंकि इसमें बच्चों की परवरिश से संबंधित एक बहुत ही बड़ी शिक्षा है कि हमें बच्चों को सामाजिक बनाना चाहिए केवल पढ़ाई में हरदम अव्वल रहना बहुत बड़ी बात नहीं है। उसे समाज में रहना है, समाज के लोगों के साथ जीवन जीना है तो उसे यह सब भी आना ही चाहिए । इसलिए असफलता भी सफलता के लिए आवश्यक है। गड़बड़ कहाँ हुई : एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। अब ऐसे लड़के आम तौर  पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन IIT चेन्नई में हो गया। वहां से B Tech किया औ

श्रावण मास

श्रावण मास का शुभारंभ हो चुका है। सभी लोग इस मास  में भगवान शंकर की भक्ति बहुत ही शुद्ध चित्त और शांत मन से करते हैं। इस मास में अमरनाथ जी की यात्रा राखी पूर्णिमा के दिन समाप्त होती है एवं बर्फ के शिवलिंग के दर्शन भी पूर्ण हो जाते हैं। आस्था और विश्वास का संगम है श्रावण मास। इस मास में भक्ति अपने चरम पर होती है तथा कावड़ यात्रा भी आरंभ हो जाती है या यूं कहें कि आज से आरंभ हो गई है। आप सभी को श्रावण मास की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। सभी के लिए यह श्रावण मास तथा आने वाले सभी दिन मंगलकारी हो, यही प्रार्थना करती हूं। श्रावण मास के महत्व तथा व्रत की महिमा और विधि-विधान की चर्चा प्रस्तुत आलेख में की गई है। कृपया समय निकाल कर पढ़ने का कष्ट करें ताकि हमारा आचरण, हमारी बुद्धि और हमारा चित्त भी इस मास की तरह पवित्र हो जाए । जय शिव शंकर श्रावण मास ( भोलेनाथ के भक्तों का त्योहार )  श्रावण शब्द श्रवण से बना है जिसका अर्थ है सुनना। अर्थात सुनकर धर्म को  समझना। वेदों को श्रुति कहा जाता है अर्थात उस ज्ञान को ईश्वर से सुनकर  ऋषियों ने लोगों को सुनाया था। यह महीना भक्तिभाव और संत्संग के लिए होता  है। जि