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चारों जुग परिताप तुम्हारा "

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 " #चारों जुग परिताप तुम्हारा " हम सब हनुमान चालीसा पढ़ते हैं, जिसमें तुलसीदासजी गाते हैं : - चारों जुग परताप तुम्हारा,  है परसिद्ध जगत उजियारा॥ संकट कटै मिटै सब पीरा,  जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥  अंतकाल रघुवरपुर जाई,  जहां जन्म हरिभक्त कहाई॥  और देवता चित्त ना धरई,  हनुमत सेई सर्व सुख करई॥ चारों युग में हनुमानजी के ही परताप से जगत में उजियारा है। हनुमान को छोड़कर और किसी देवी-देवता में चित्त धरने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आज भी हनुमानजी हमारे बीच इस धरती पर सशरीर मौजूद हैं। हनुमान इस कलियुग में सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात हैं। कलियुग में हनुमान की भक्ति ही लोगों को दुख और संकट से बचाने में सक्षम है।  बहुतेरे किसी बाबा, देवी-देवता, ज्योतिष और तांत्रिकों के चक्कर में भटकते रहते हैं, क्योंकि वे हनुमान की भक्ति-शक्ति को नहीं पहचानते। ऐसे भटके हुए लोगों का राम ही भला करे।  मारुति नंदन सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग में कब-कब कहां-कहां और किस-किस स्वरूप में किन लोगों के समक्ष प्रकट हुए, आइए इसी बिंदु पर चर्चा करते हैं !  सतयुग := आप सोच रहे होंगे हनुमान तो

वैदिक साहित्य और संस्कृति

आज हम बात करते हैं वैदिक साहित्य और संस्कृति की। हिंदू धर्म और भारतीय सभ्यता संस्कृति पूरे विश्व में पूजनीय, अनुकरणीय एवं अग्रगण्य है क्योंकि यह पूरी तरह प्रामाणिक,  सार्वकालिक,सार्वभौमिक ,सर्व कल्याणकारी है । यूं ही नहीं पूरी दुनिया में भारत को 'जगतगुरु' कहा जाता है और यह उक्ति ऐसे ही नहीं बनी है कि ......... कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।  इसका प्रमाण निम्न है वैदिक साहित्य और संस्कृति 1.विषय-प्रवेश : भारतीय संस्कृति की महत्ता- भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में कई दृष्टियों से विशेष महत्त्व रखती है। यह संसार की प्राचीनतम संस्कृतियों में से है। मोहनजोदड़ों की खुदाई के बाद से यह मिस्र मेसोपोटेमिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं के समकालीन समझी जाने लगी है। प्राचीनता के साथ इसकी दूसरी विशेषता अमरता है। चीनी संस्कृति के अतिरिक्त पुरानी दुनिया की अन्य सभी-मेसोपोटेमिया की सुमेरियन, असीरियन, बेबीलोनियन और खाल्दी प्रभृति तथा मिस्र ईरान, यूनान और रोम की-संस्कृतियाँ काल के कराल गाल में समा चुकी हैं, कुछ ध्वंसावशेष ही उनकी गौरव-गाथा गाने के लिए बचे हैं; किन्तु भारतीय संस्कृति कई हजार