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पर्वाधिराज पर्युषण

हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित तीज, त्यौहार, रस्मे ,मान्यताएं, रीति रिवाज बहुत ही वैज्ञानिक और अपने आप में अनूठे रहे हैं। उन्होंने विज्ञान को धर्म के साथ जोड़ दिया ताकि धर्म की बात आए तो लोग थोड़े से भयभीत हो और इन रस्मो, रीति-रिवाजों का पालन करें जिससे न केवल उनके शरीर की, आत्मा की, मन की, चित्त की अपितु पर्यावरण की भी शुद्धि और इन सभी का कल्याण संभव हो सके जैसे पीपल की पूजा करना, तुलसी की पूजा करना, उपवास करना इत्यादि जो अपने आप में बहुत वैज्ञानिक माने जाते हैं। इसी प्रकार का एक अलग सा त्योहार भी है जिसकी जानकारी आप सभी के बीच साझा कर रही हूं। आशा है आपको भी अच्छी लगेगी। *पर्वाधिराज पर्यूषण* पर्व पर्युषण परम, समझे जो तेरा मरम , हो जाए भव पार... जैन धर्म की शान तू, जिनागम की जान तू, हो जाए भव पार... पर्युषण पर्व जैन धर्म मे पर्वाधिराज कहे गए हैं । क्योंकि ये मन के उल्लास का पर्व नहीं है, ये तन की विलासिता का भी पर्व नहीं है अपितु ये आत्म कल्याण का पर्व है। बहुत विस्तार में जाने की अपेक्षा संक्षेप में ही अपनी  बात कहूंगी क्योकि अधिक मात्रा में रखा हुआ दूध जल्दी खराब हो जाता है