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Showing posts from November, 2021

हवन में बांस निषेध: कारण

🕉️ *बांस की लकड़ी को क्यों नहीं जलाया जाता है ?* *जानिए इसके पीछे धार्मिक कारण है या वैज्ञानिक कारण ?* हम अक्सर शुभ (जैसे हवन अथवा पूजन) और अशुभ (दाह संस्कार) कामों के लिए विभिन्न प्रकार के लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बांस की लकड़ी को जलता हुआ देखा है। नहीं ना ? भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार, *'हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। यहां तक की हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं।'* हिन्दू धर्मानुसार बांस जलाने से पितृदोष लगता है वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे। *जानिए इसका वैज्ञानिक कारण।* बांस में सीसा (लेड) व भारी धातु प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। लेड जलने पर लेड ऑक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है।  हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं। लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता मे भी नही जला सकते, उस

पिप्पलाद की उत्पत्ति कथा

श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।   एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा- नारद- बालक तुम कौन हो ? बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ । नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ? बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।    तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि  हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी

छठ पर्व

*छठ : वनस्पति विज्ञान का भी पर्व*  कार्तिक मास पूरा ही प्रकृति में वनस्पति, औषध, कृषि और उसके उत्पाद के ज्ञान की धारा लिए है। अन्नकूट के मूल में जो धारणा रही, वह इस ऋतु में उत्पादित धान्य और शाक के सेवन आरंभ करने की भी है। अन्न बलि दिए बिना खाया नहीं जाता, इसी में भूतबलि से लेकर देव बलि तक जुड़े और फिर गोवर्धन पूजा का दिन देवालय देवालय अन्नकूट हो गया।  छठ पर्व इस प्रसंग में विशिष्ट है कि कुछ फल इसी दिन दिखते है। डलिए भर भर कर फल निवेदित किए जाते हैं, सूर्य को निवेदित करने के पीछे वही भाव है जो कभी मिस्र और यूनान में भी रहा। छठ तिथि का ध्यान ही फल मय हुआ क्योंकि छह की संख्या छह रस की मानक है। भोजन, स्वाद और रस सब षट् रस हैं। इस समय जो फल होते हैं, वो बिना चढ़ाए महिलाएं खाती नहीं है।  बांस के डलिए भरे फलों में शाक सहित रसदार फल भी होते हैं : केला, अनार, संतरा, नाशपाती, नारियल, टाभा, शकर कंदी, अदरक, हल्दी और काला धान जिसे साठी कहते हैं और जिसका चावल लाल होता है, अक्षत के रूप में प्रयोग होता है। श्रीफल, सिंघाड़ा, नींबू, मूली, पानी फल अन्नानास... सबके सब ऋतु उत्पाद। ईख का तोरण द्वार और बांस

सूर्य षष्टी

*छठ : वनस्पति विज्ञान का भी पर्व*  कार्तिक मास पूरा ही प्रकृति में वनस्पति, औषध, कृषि और उसके उत्पाद के ज्ञान की धारा लिए है। अन्नकूट के मूल में जो धारणा रही, वह इस ऋतु में उत्पादित धान्य और शाक के सेवन आरंभ करने की भी है। अन्न बलि दिए बिना खाया नहीं जाता, इसी में भूतबलि से लेकर देव बलि तक जुड़े और फिर गोवर्धन पूजा का दिन देवालय देवालय अन्नकूट हो गया।  छठ पर्व इस प्रसंग में विशिष्ट है कि कुछ फल इसी दिन दिखते है। डलिए भर भर कर फल निवेदित किए जाते हैं, सूर्य को निवेदित करने के पीछे वही भाव है जो कभी मिस्र और यूनान में भी रहा। छठ तिथि का ध्यान ही फल मय हुआ क्योंकि छह की संख्या छह रस की मानक है। भोजन, स्वाद और रस सब षट् रस हैं। इस समय जो फल होते हैं, वो बिना चढ़ाए महिलाएं खाती नहीं है।  बांस के डलिए भरे फलों में शाक सहित रसदार फल भी होते हैं : केला, अनार, संतरा, नाशपाती, नारियल, टाभा, शकर कंदी, अदरक, हल्दी और काला धान जिसे साठी कहते हैं और जिसका चावल लाल होता है, अक्षत के रूप में प्रयोग होता है। श्रीफल, सिंघाड़ा, नींबू, मूली, पानी फल अन्नानास... सबके सब ऋतु उत्पाद। ईख का तोरण द्वार और बांस

धनतेरस का मूल

*धनतेरस:--* *धनतेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है।* *धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था।*  *भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है।* *इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं।*  *दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।* *धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है।*  *संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है।* *भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा को