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Showing posts from October, 2021

माँ का आँचल

माँ का पल्लू      इसके साथ ही ... यह गरम बर्तन को     चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को        पकड़ने के काम भी आता था.         पल्लू की बात ही निराली थी.            पल्लू पर तो बहुत कुछ               लिखा जा सकता है.  पल्लू ... बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने,     गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी            इस्तेमाल किया जाता था.    माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए             तौलिया के रूप में भी            इस्तेमाल कर लेती थी.          खाना खाने के बाद       पल्लू से  मुँह साफ करने का        अपना ही आनंद होता था.       कभी आँख मे दर्द होने पर ...     माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर,        फूँक मारकर, गरम करके          आँख में लगा देतीं थी,    दर्द उसी समय गायब हो जाता था. माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए     उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू         चादर का काम करता था.      जब भी कोई अंजान घर पर आता,            तो बच्चा उसको    माँ के पल्लू की ओट ले कर देखता था.    जब भी बच्चे को किसी बात पर      शर्म आती, वो पल्लू से अपना       मुँह ढक कर छुप जाता था.     जब बच्चों को बाहर जाना होता,    

सत्य सनातन धर्म

*एक माँ* अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने *विदेश में रहने वाले बेटे* से विडियो चैट करते वक्त *पूछ बैठी-* *"बेटा! कुछ पूजा-पाठ भी करते हो या नहीं?"* *बेटा बोला-* *"माँ, मैं एक जीव वैज्ञानिक हूँ। मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम* कर रहा हूँ। *विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन.. क्या आपने उसके बारे में सुना भी है?"* *उसकी माँ मुस्कुराई* और *बोली.....* *"मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ बेटा.. उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में सनातन-धर्म के लिए बहुत पुरानी खबर है।"* “हो सकता है माँ!” बेटे ने भी *व्यंग्यपूर्वक* कहा। *“यदि तुम कुछ समझदार हो, तो इसे सुनो..” उसकी माँ ने प्रतिकार किया।* *“क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है?* *विष्णु के दस अवतार ?”* बेटे ने सहमति में कहा... *"हाँ! पर दशावतार का मेरी रिसर्च से क्या लेना-देना?"* *माँ फिर बोली-* *"लेना-देना है..* *मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हो ?"* *“पहला अवतार था 'मत्स्य', यानि मछली।* ऐसा इसलिए कि *जीवन पानी में आरम्भ हुआ। यह बात सही है या नहीं?”* ब

वर्ण कर्म से अथवा जन्म से?

वर्ण कर्म से अथवा जन्म से? जब से धर्म का राजनीतिकरण हुआ है तब से यह बड़ा ही ज्वलंत प्रश्न बना हुआ है। आर्यसमाज आदि मत की बात ही क्या करें सनातनी भी इस पर एकमत नहीं होते। धर्म सम्राट स्वामी करपात्रीजी का विचार था कि कर्मणा वर्ण मानने पर दिनभर में ही अनेकबार वर्ण बदलते रहेंगे।  फिर व्यवस्था क्या होगी? वे जन्म के आधार पर ही वर्ण को मानने के पक्षधर थे। दूसरी ओर कुछ विद्वानों के विचारों में वर्ण कर्म के आधार पर हैं। उनके विचारों के आधार भी शास्त्र ही हैं। यथा, वज्रसूचिकोपनिषद के अनुसार देखने पर ब्राह्मण वर्ण ही कर्म के आधार पर प्रतीत होता है। इस लेख में हम इसी विषय पर विचार करेंगे। तत्रैतदात्मनो मनोऽवच्छेदेन ज्ञानानामुत्थानप्रतिबन्धका धर्मा उपसन्ना ज्ञानव्याघातः पाप्मा। क्रियोत्थानप्रतिबन्धका धर्माः प्राणावच्छेदेनोपसन्नाः क्रियाव्याघातः पाप्मा। अर्थोपलब्धिप्रतिबन्धका धर्मा वागवच्छेदेनोपासन्ना अर्थव्याघातः पाप्मा। तेषां चायमप्रतिबन्धो वीर्यम्। तत् त्रिविधम्-ब्रह्म, क्षत्रम्, विडिति। मन सम्पूर्ण ज्ञानों का, प्राण सब क्रियाओं का और वाक् रूप सब पदार्थों का उत्पादक है। बल के अनंत भेद हैं, उनमें