Posts

Showing posts from September, 2018

मीरा की भक्ति में दांपत्य का अलौकिक स्वरूप

मीरा की भक्ति में दांपत्य का अलौकिक स्वरूप   शोधसार मीराबाई अपने आप में एक संपूर्ण ग्रंथ है जो समग्रता लिए हुए है प्रेम की, करुणा की, समर्पण की, वैराग्य की, भक्ति की, चेतना की, दर्शन की, एकांत की, त्याग की, आत्म सम्मान की, समाजोत्थान की, आत्मोत्थान की, आत्म परंपरा की, निर्लिप्तता की, विश्वास की, तेजस्विता की, निरंतरता की, स्थितप्रज्ञता की, समता की और अनंत की। इससे अधिक और क्या कहा जा सकता है? मीरा बाई का चरित्र ऐसा है कि जिसके जीवन के हर मोड़ पर, जीवन के हर पहलू पर शोध की अनेकानेक संभावनाएं प्रस्तुत है। उनका संपूर्ण चरित्र ऐसा है जो इतने वैविध्य से परिपूर्ण है, इतनी विशेषताओं से पूर्ण है कि यह समकालीन ना होकर, तत्कालिक ना होकर सर्वकालिक है Timeless है।यानि  इनकी चारित्रिक विशेषताएं उस काल में भी उतनी ही प्रासंगिक थी जितनी आज के युग में कही जा सकती हैं ।बल्कि यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज के युग में मीराबाई को सब समझना, समझाना अधिक महत्वपूर्ण है ।संगोष्ठी के सभी उपविषय एक दूसरे से संबंधित हैं और अन्योन्याश्रित भी।यह मीराबाई के चरित्र के विभिन्न बिंदु कहे जा सकते हैं जिन