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Showing posts from March, 2018

जनेऊ का महत्व

जनेऊ का महत्त्व जनेऊ को लेकर लोगों में कई भ्रांतियां मौजूद है । लोग जनेऊ को धर्म से जोड़ते हैं जबकि सच तो कुछ और ही है| तो आइए जानें कि सच क्या है ? जनेऊ पहनने से आदमी को लकवा से सुरक्षा मिल जाती है। क्योंकि आदमी को बताया गया है कि जनेऊ धारण करने वाले को लघुशंका करते समय दाँत पर दाँत बैठा कर रहना चाहिए अन्यथा अधर्म होता है । दरअसल इसके पीछे साइंस का गहरा रह्स्य छिपा है । दाँत पर दाँत बैठा कर रहने से आदमी को लकवा नहीं मारता। आदमी को दो जनेऊ धारण कराया जाता है, एक पुरुष को बताता है कि उसे दो लोगों का भार या ज़िम्मेदारी वहन करना है, एक पत्नी पक्ष का और दूसरा अपने पक्ष का अर्थात् पति पक्ष का । अब एक एक जनेऊ में 9 – 9 धागे होते हैं जो हमें बताते हैं कि हम पर पत्नी और पत्नी पक्ष के 9 – 9 ग्रहों का भार ये ऋण है उसे वहन करना है। अब इन 9 – 9 धांगों के अंदर से 1 – 1 धागे निकालकर देंखें तो इसमें 27 – 27 धागे होते हैं। अर्थात् हमें पत्नी और पति पक्ष के 27 – 27 नक्षत्रों का भी भार या ऋण वहन करना है। अब अगर अंक विद्या के आधार पर देंखे तो 27+9 = 36 होता है, जिसको एकल अंक बनाने पर 36 = 3+6 = 9 आ

हमारी भारतीय संस्कृति

हमारी भारतीय संस्कृति हमारी भारतीय परंपरा, हमारे रीति रिवाज, हमारे मूल्य जिनके पीछे एक बहुत ही ताकतवर, प्रामाणिक विज्ञान काम कर रहा है। इसके बारे में आइए कुछ जानकारी प्राप्त करते हैं एवं अपने भारतीय होने पर गर्व करते हैं आज भले हम अंग्रेजों के कलेंडर का अनुसरण कर रहे हों, परन्तु हमारा अपना वैदिक कलेंडर सबसे उत्तम है जो ऋतुओं (मौसम) के अनुसार चलता है l हमारे वैदिक मासों के नाम ...1. चैत्र 2. वैशाख 3. ज्येष्ठ 4. आषाढ़ 5. श्रावण 6. भाद्रपद 7. अश्विन 8. कार्तिक 9. मार्गशीर्ष 10. पौष 11. माघ 12. फाल्गुन चैत्र मास या महीना ही हमारा प्रथम मास होता है, जिस दिन ये मास आरम्भ होता है, उसे ही वैदिक नव-वर्ष मानते हैं l चैत्र मास अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च-अप्रैल में आता है, चैत्र के बाद वैशाख मास आता है जो अप्रैल-मई के मध्य में आता है, ऐसे ही बाकी महीने आते हैं l फाल्गुन मास हमारा अंतिम मास है जो फरवरी-मार्च में आता है, फाल्गुन की अंतिम तिथि से वर्ष की सम्पति हो जाती है, फिर अगला वर्ष चैत्र मास का पुन: तिथियों का आरम्भ होता है जिससे नव-वर्ष आरम्भ होता है l हमारे समस्त वैदिक मास (

परीक्षा के दिनों का तनाव कुछ बातें कुछ सुझाव कुछ सुझाव

परीक्षा के दिनों का तनाव, कुछ बातें, कुछ सुझाव। परिचय-- आजकल का समय है स्कूल स्तर पर वार्षिक परीक्षाओं का। जिसे देखो वही एक  तरह के तनाव में है। चाहे वह बच्चे हो ,अध्यापक हो, या फिर अभिभावक ।क्योंकि यह वह समय है जब आप सबकी भी वार्षिक परीक्षा होती है, और इसका परिणाम भी शैक्षिक स्तर पर बहुत ही  मायने भी रखता है। इसलिए हमें इसे गंभीरता से तो लेना ही चाहिए, परंतु इतना भी नहीं  कि सिर्फ यही बाकी रह जाए। यह बात हम सब जानते ही हैं कि "अति सर्वत्र वर्जयेत"। एक शिक्षक और एक अभिभावक होने के नाते मैं यह कहना चाहती हूं कि केवल नंबर Marks मार्क्स से ही अपने बच्चों की प्रतिभा का आकलन ना करे। जिंदगी बहुत बड़ी है। हमें अपने बच्चों को ज्यादा तनाव नहीं देना चाहिए कि--- "आपने  इतने पर्सेंट नंबर लाने ही हैं चाहे कुछ भी हो जाए'। हर बच्चे की अपनी क्षमता है, काबिलियत है। हमें उस क्षमता के अनुसार ही उन बच्चों को अभिप्रेरित करना चाहिए। यह बात कटु सत्य है कि हम अभिभावक अपने बच्चों को इतना तनाव दे देते हैं कि उन्हें परीक्षाओं से आसान "मौत" नजर आने लगती है ।चाहे वह खुद की