श्री राम

🕉️🙏भगवान श्री राम का विराट व्यक्तित्व🙏🕉️

👉🕉️आदिकाव्य रामायण के बालकांड के १८वें सर्ग में महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है- ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ... अर्थात् चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौशल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवंदित जगदीश्वर श्री राम को जन्म दिया। 

👉🕉️रामायण में राम को सत्य, सनातन, अनादि, आराध्य, आदर्श, प्रेरणा, प्रतीक, मर्यादा पुरुषोत्तम, दया, क्षमा, सदाचार, श्रद्धा,विश्वास, जीवन, जिजीविषा, धर्म, नीति, सामाजिक चेतना, धार्मिक चेतना, सांस्कृतिक चेतना, भारतीयता का उद्घोष, शासन की आदर्श संकल्पना, आदर्श पिता, पुत्र, राजा, शिष्य, मित्र, तारक, पालक, संहारक, नेतृत्वकर्ता, शौर्यवान, लोक भावना की संजीवनी, अलौकिक ज्योतिपुंज आदि अनेक रूपों में व्याख्यायित किया गया है। 

👉🕉️रामायण में लिखा है कि सर्वप्रथम आदि कवि वाल्मीकि ने इस अनंत सत्ता के प्रति विद्या विशारद नारद मुनि के समक्ष जिज्ञासा व्यक्त कि - को न्वस्मिन्... अर्थात् हे मुने! इस समय इस संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्य वक्ता, दृढ़ प्रतिज्ञ, सदाचार संयुक्त, समस्त प्राणियों का हित साधक, विद्वान, सामथ्र्यशाली, प्रियदर्शन,मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कांतिमान, किसी की भी निंदा न करने वाला कौन है ? तब नारद मुनि ने कहा- इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनै:  श्रुत:... अर्थात्  इक्ष्वाकु के वंश में उत्पन्न हुए एक ऐसे पुरुष हैं, जो लोगों में राम नाम से विख्यात हैं। वे ही मन को वश में रखने वाले, महाबलवान, कांतिमान, धैर्यवान और जितेंद्रिय हैं। वे बुद्धिमान, नीतिज्ञ, वक्ता, शोभायमान तथा शत्रु संहारक हैं। 

👉🕉️ऐसे अनंत रूप रूपाय के विषय में जानकर आदिकवि वाल्मीकि ने आदिकाव्य रामायण की रचना की। रामायण में वर्णित और भिन्न-भिन्न रूपों में कथा- कहानियों में जीवंत होते राम भारतवर्ष की सनातन परंपरा और जीवन के अंग बनते चले गए। राम भारतीय लोक जीवन एवं अध्यात्म की रीढ़ हैं, भारतीय सांस्कृतिक चेतना के आदि पुरुष हैं। रामचरितमानस में भी अनेक रूपों में राम रूप का विवेचन- विश्लेषण एवं व्याख्या करने के उपरांत भी अंत में गोस्वामी तुलसीदास अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए लिखते हैं-
राम सरूप तुम्हार बचन अगोचर... अबिगत अकथ अपार नेति नेति निगम कह।। अर्थात् हे राम! आपका स्वरूप वाणी के अगोचर, बुद्धि से परे, अव्यक्त,अकथनीय और अपार है। वेद निरंतर उसका नेति नेति कहकर वर्णन करते हैं।

👉🕉️ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस ऐसे कालखंड में सामने आता है जब श्रद्धा- विश्वास विखंडित हो रहे थे, सामान्य व्यक्ति को जीवन रक्षा का कोई संबल नहीं दिखाई दे रहा था, लोक में मर्यादा और आदर्शों के लिए कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। गोस्वामी जी ने लोक अनुभव से समझने का प्रयास किया कि लोक अवलंबन कहां और कैसे हो ? उन्होंने पाया कि तमाम निराशा, अवसाद, संकट एवं जडता में भी जनमानस ईश्वरीय सत्ता में विश्वास करता है। ऐतिहासिक क्रम में विचार करने पर भी हम पाते हैं कि भारतीय चेतना में रचे बसे विराट रूप राम विदेशी शासकों के अत्याचारों के दौर में विस्मृति में तो गए, धर्म स्थलों का विध्वंस तो किया गया, आदि नगरी एवं प्रभु श्री राम की जन्म स्थली अयोध्या का विध्वंस कर उसे मस्जिद में बदला गया, किंतु राम और राम तत्व जनचेतना में निरंतर बने रहे। सैकड़ों वर्ष बाद भारत भूमि पर पुन: अयोध्या में  श्री राम रूप की विराटता स्थापित हो रही है, न केवल भारतवर्ष अपितु समूचा विश्व राम रूप की विराटता को समझने के लिए लालायित है। 

👉🕉️आज ज्ञान- विज्ञान एवं आधुनिकता की दौड़ और होड़ में जीवन आदर्श एवं जीवन मूल्य पीछे छूट रहे हैं, ऐसे में आवश्यकता है राम रूप की विराटता को पुन: समझने की। काम, क्रोध, मद, लोभ, ईष्र्या, द्वेष मनुष्य के साथ सदा से रहे हैं, किंतु इनसे छुटकारा पाए बिना जीवन में सुख की कल्पना नहीं की जा सकती। इनसे छुटकारे का एकमात्र साधन राम रूप का चिंतन वंदन ही है। राम के व्यक्तित्व में त्याग, तप, भक्ति, वैराग्य, स्नेह, मैत्री, एकनिष्ठता, आदर्श,अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का साहस, निस्वार्थता, प्रतिकूलता में अनुकूलता, आत्म नियंत्रण, कर्तव्य पालन, उत्साह, धर्म, सदाचार, जितेंद्रियता आदि अनेक ऐसे गुण अथवा विशेषताएं हैं जिनका अनुशीलन करते हुए सामान्य व्यक्ति भी इस भव सागर अथवा सांसारिक परेशानियों से छुटकारा पा सकता है। 

👉🕉️राम का विराट व्यक्तित्व भारत के प्रभात का प्रथम स्वर है, भारत की भोर की गूंज है। राम सत्य, सनातन, आदर्श, मर्यादा, सौंदर्य एवं उदारता की प्रतिमूर्ति हैं।

👉🕉️ गोस्वामी जी ने लिखा है- ऐसो को उदार जग माही, बिन सेवा जो दरवे दीन पर, राम सरिस कोउ नाही...आज आपाधापी, भागदौड़ एवं स्वार्थों के चलते मानवता तरह तरह की परेशानियों से जूझ रही है, स्त्री अस्मिता हाशिए पर है, भाई भाई का दुश्मन बना हुआ है, पड़ोसी पड़ोसी के साथ स्वार्थ भाव से संबंध रख रहा है, एक देश दूसरे देश की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए हिंसा पर उतारू है, जाति एवं संप्रदायों की श्रेष्ठता प्रदर्शन करने के लिए सद्भाव बिगड़ रहे हैं, पारिवारिक मूल्यों में विघटन का दौर है, राजनीति नीतिगत क्षरण की शिकार होती जा रही है, राष्ट्रीयता संकुचित स्वार्थों में घिर रही है, ऐसे में राम रूप की विराटता को समझकर सुखमय जीवन की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। 

👉🕉️राम किसी व्यक्ति, जाति, संप्रदाय अथवा देश के नहीं हैं अपितु उनका व्यक्तित्व, उनके गुण, उनका रूप समूची मानवता के लिए वंदनीय है। आइए आज श्री राम नवमी के पावन अवसर पर राम रूप की विराटता एवं सर्वव्यापकता को समझने का प्रयास करें।

Comments

Popular posts from this blog

भारतीय काव्यशास्त्र

रामचरितमानस में चित्रित भारतीय संस्कृति।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी विस्तार और चुनौतियां