सनातन वैदिक नववर्ष*

*#सनातन वैदिक नववर्ष*

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नववर्ष का प्राचीन एवं *ऐतिहासिक महत्व -*

(आओ जानें कैसे मनायें नववर्ष)

*चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,*
विक्रमी संवत् २०७८
सृष्टि संवत् १९६०८५३१२३ वर्ष
दिनांक - *१३ अप्रैल मंगलवार २०२१ ई.*

#कैसे मनायें नववर्ष -

१) प्रातःकाल उठ सूर्य दर्शन करें 
२) सन्ध्या करें ईश्वर को पीछले वर्ष का धन्यवाद करें नववर्ष अच्छा जाये यह प्रार्थना करें।
३) घर पर ओ३म् पताका फहरायें।
३) यज्ञ करें नव संवत्सर के मन्त्रों से आहुति दें।
५) बालकों को नववर्ष का महत्व बतायें
६) अपने दुकान प्रतिष्ठान को सजायें
६) विगत वर्ष का आय-व्यय को देखें
७) नये खाते पर ओ३म् और गायत्री मन्त्र लिखें 
८) शोभा यात्रा निकालें, लोगों को जागरुक करें।
९) राहगीरों में मीठा शर्बत वितरित करें 
८) अपने चाहने वालों को नववर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित करें।
९) वेद एवं संस्कृत पढने वाले विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करें।

*#सनातन प्रकल्प -*
       *१.सृष्टि संवत्*
       *२.मनुष्य उत्पत्ति संवत्*
       *३.वेद संवत्*
       *४.देववाणी भाषा संवत्*
        *५.सम्पूर्ण प्राणी उत्पत्ति संवत्*
       
*#ऐतिहासिक प्रकल्प -*
   *१.विक्रम संवत्*
   *२.शक संवत्*
   *३.आर्य सम्राट विक्रमादित्य जन्मदिवस*
   *४.युधिष्ठिर राज्याभिषेक दिवस*
   *६.आर्यसमाज स्थापना दिवस*
  
   चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नव वर्ष प्रारंभ होता है। इसी दिन सूर्योदय के साथ सृष्टि का प्रारंभ परमात्मा ने किया था। अर्थात् इस दिन सृष्टि प्रारंभ हुई थी तब से यह गणना चली आ रही है। 
        ‎ यह नववर्ष किसी जाति, वर्ग, देश, संप्रदाय का नहीं है अपितु यह मानव मात्र का नववर्ष है। यह पर्व विशुद्ध रुप से भौगोलिक पर्व है। क्योकि प्राकृतिक दृष्टि से भी वृक्ष वनस्पति फूल पत्तियों में भी नयापन दिखाई देता है। *वृक्षों में नई-नई कोपलें आती हैं। वसंत ऋतु का वर्चस्व चारों ओर दिखाई देता है। मनुष्य के शरीर में नया रक्त बनता है। हर जगह परिवर्तन एवं नयापन दिखाई पडता है। रवि की नई फसल घर में आने से कृषक के साथ संपूर्ण समाज प्रसन्नचित होता है।* वैश्य व्यापारी वर्ग का भी इकोनॉमिक दृष्टि से मार्च महीना इण्डिंग (समापन) माना जाता है। इससे यह पता चलता है कि जनवरी साल का पहला महीना नहीं है पहला महीना तो चैत्र है जो लगभग मार्च-अप्रैल में पड़ता है। *१ जनवरी में नया जैसा कुछ नहीं होता किंतु अभी *चैत्र माह में देखिए नई ऋतु, नई फसल, नई पवन, नई खुशबू, नई चेतना, नया रक्त, नई उमंग, नया खाता, नया संवत्सर, नया माह, नया दिन हर जगह नवीनता है। यह नवीनता हमें नई उर्जा प्रदान करती है।* 
        ‎   नव वर्ष को शास्त्रीय भाषा में *नवसंवत्सर (संवत्सरेष्टि) कहते हैं। इस समय सूर्य मेष राशि से गुजरता है इसलिए इसे *"मेष संक्रांति"भी* कहते हैं।
        ‎प्राचीन काल में नव-वर्ष को वर्ष के सबसे बड़े उत्सव के रूप में मनाते थे। यह रीत आजकल भी दिखाई देती है जैसे महाराष्ट्र में *गुडीपाडवा* के रुप में मनाया जाता है तथा बंगाल में पइला पहला वैशाख और गुजरात आदि अनेक प्रांतों में इसके विभिन्न रूप हैं।

*#नववर्ष का प्राचीन एवं ऐतिहासिक व ज्योतिष महत्व -*

*१.आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के* दिन ही परम पिता परमात्मा ने *१९६०८५३१२३* वर्ष पूर्व यौवनावस्था प्राप्त मानव की प्रथम पीढ़ी को इस पृथ्वी माता के गर्भ से जन्म दिया था। इस कारण यह *"मानव सृष्टि संवत्"* है। 
२. इसी दिन परमात्मा ने अग्नि वायु आदित्य अंगिरा चार ऋषियों को समस्त ज्ञान विज्ञान का मूल रूप में संदेश क्रमशः *ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अथर्ववेद के रूप में दिया था*। इस कारण इस वर्ष को ही *वेद संवत्* भी कहते हैं। 
*३.आज के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त कर वैदिक धर्म की ध्वजा फहराई थी।*
४. *आज ही से कली संवत् तथा भारतीय विक्रम संवत् युधिष्ठिर संवत् प्रारंभ होता है।* 
५. आज ही के शुभ दिन विश्व वंद्य अद्वितीय वेद द्रष्टा महर्षि दयानन्द सरस्वती ने संसार में वेद धर्म के माध्यम से सब के कल्याणार्थ "आर्य समाज" की स्थापना की थी। इसी भावना को ऋषि ने आर्य समाज के छठे नियम में अभिव्यक्त करते हुए लिखा *"संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य* उद्देश्य हैअर्थात शारीरिक आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना"
         महानुभावों! इन सब कारणों से यह संवत् केवल भारतीय या किसी पंथ विशेष के मानने वालों का नहीं अपितु संपूर्ण विश्व मानवों के लिए है। आइए! हम सार्वभौम संवत् को निम्न प्रकार से उत्साह पूर्वक  मनाएं -
१. यह संवत् मानव संवत् है इस कारण  हम सब स्वयं को एक परमात्मा की संतान समझकर मानव मात्र से प्रेम करना सीखें। जन्मना ऊंच-नीच की भावना, सांप्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रीयता, संकीर्णता आदि भेदभाव को पाप मानकर विश्वबंधुत्व एवं प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव जगाएं। अमानवीयता व दानवता का नाश तथा मानवता की रक्षा का व्रत लें। 
२. *आज वेद संवत् भी प्रारंभ है*।इस कारण हम सब अनेक मत पंथों के जाल से निकलकर संपूर्ण भूमंडल पर एक वेद धर्म को अपनाकर प्रभु कार्य के ही पथिक बनें। हम भिन्न-भिन्न समयों पर मानवों से चलाए पंथों के जाल में न फसकर मानव को मानव से दूर न करें। जिस वेद धर्म का लगभग २ अरब वर्ष से सुराज्य इस भूमंडल पर रहा उस समय (महाभारत से पूर्व तक) संपूर्ण विश्व त्रिविध तापों से मुक्त होकर मानव सुखी समृद्धि व आनंदित था। किसी मजहब का नाम मात्र तक ना था। इसलिए उस वैदिक युग को वापस लाने हेतु सर्वात्मना समर्पण का व्रत लें। स्मरण रहे धर्म मानव मात्र का एक ही है, वह है वैदिक धर्म। 
३. *वैदिक धर्म के प्रतिपालक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की* विजय दिवस पर हम आज उस महापुरुष की स्मृति में उनके आदर्शों को अपनाकर ईश्वर भक्त, आर्य संस्कृति के रक्षक, वेद भक्त, सच्चे वेदज्ञ गुरु भक्त, मित्र व भातृवत्सल, दुष्ट संहारक, वीर, साहसी, आर्य पुरुष व प्राणी मात्र के प्रिय बने। रावण की भोगवादी सभ्यता के पोषक ना बनें। 
४. *आज राष्ट्रीय संवत् पर महाराज युधिष्ठिर विक्रमादित्य* आदि की स्मृति में अपने प्यारे आर्यावर्त भारत देश की एकता अखंडता एवं समृद्धि की रक्षा का व्रत लें। राष्ट्रीय स्वाभिमान का संचार करते हुए देश की संपत्ति की सुरक्षा संरक्षा के व्रति बनें। जर्जरीभूत होते एवं जलते उजड़ते देश में इमानदारी, प्राचीन सांस्कृतिक गौरव, सत्यनिष्ठा, देशभक्ति, कर्तव्यपरायणता व वीरता का संचार करें। 
५. आज आर्य समाज स्थापना दिवस होने के कारण "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" वेद के आदेशानुसार सच्चे अर्थों में आर्य बनें एवं संसार को आर्य बनाए न की नामधारी आर्य। आर्य शब्द का अर्थ है- सत्य विज्ञान  न्याय से युक्त वैदिक अर्थात ईश्वरीय मर्यादाओं का पूर्ण पालक, सत्याग्रही, न्यायकारी, दयालु, निश्छल, परोपकारी, मानवतावादी व्यक्ति। इस दिवस पर हम ऐसा ही बनने का व्रत लें तभी सच्चे अर्थों में आर्य (श्रेष्ठ मानव) कहलाने योग्य होंगे। आर्यत्व आत्मा व अंतःकरण का विषय है। न कि कथन मात्र का।
       आइये ! संसार भर के प्यारे मित्रों विचारिये कि क्या नव वर्ष सब को मनाना योग्य नहीं है ? तब आइए जागीये तथा अपने धर्म व कर्तव्य को स्मरण करके अपने अपने दोषों को दूर करने तथा सत्य गुण ग्रहण करने का व्रत लेकर उपर्युक्त पांच विधियों से नव वर्ष का स्वागत घर में यज्ञ करके करें, घरों के ऊपर ओम का ध्वज लगाएं, रात्रि में घी के दीपक जलाएं। परमात्मा हम सब मानवों   को ऐसी ही सुमति व शक्ति प्रदान करें। इसी के साथ ही मैं *वैशनु शर्मा* नव वर्ष के पावन अवसर पर आप को नव वर्ष की बहुत-बहुत बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएं प्रेषित कर रहा हूं। यह नववर्ष आपके जीवन को सुख-समृद्धि ऐश्वर्य से भरने वाला हो। 
       इन्हीं शुभकामनाओं के साथ व्यस्त रहें, स्वस्थ रहें, मस्त रहें।🙏🙏🌻🌻🌻🌻
*🌻🌻🌻🌻

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डॉ विदुषी शर्मा

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