पर्वाधिराज पर्युषण

हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित तीज, त्यौहार, रस्मे ,मान्यताएं, रीति रिवाज बहुत ही वैज्ञानिक और अपने आप में अनूठे रहे हैं। उन्होंने विज्ञान को धर्म के साथ जोड़ दिया ताकि धर्म की बात आए तो लोग थोड़े से भयभीत हो और इन रस्मो, रीति-रिवाजों का पालन करें जिससे न केवल उनके शरीर की, आत्मा की, मन की, चित्त की अपितु पर्यावरण की भी शुद्धि और इन सभी का कल्याण संभव हो सके जैसे पीपल की पूजा करना, तुलसी की पूजा करना, उपवास करना इत्यादि जो अपने आप में बहुत वैज्ञानिक माने जाते हैं। इसी प्रकार का एक अलग सा त्योहार भी है जिसकी जानकारी आप सभी के बीच साझा कर रही हूं। आशा है आपको भी अच्छी लगेगी।

*पर्वाधिराज पर्यूषण*

पर्व पर्युषण परम,
समझे जो तेरा मरम ,
हो जाए भव पार...
जैन धर्म की शान तू,
जिनागम की जान तू,
हो जाए भव पार...

पर्युषण पर्व जैन धर्म मे पर्वाधिराज कहे गए हैं ।
क्योंकि ये मन के उल्लास का पर्व नहीं है, ये तन की विलासिता का भी पर्व नहीं है अपितु ये आत्म कल्याण का पर्व है। बहुत विस्तार में जाने की अपेक्षा संक्षेप में ही अपनी  बात कहूंगी क्योकि अधिक मात्रा में रखा हुआ दूध जल्दी खराब हो जाता है और उसमें से निकला हुआ पका हुआ तत्व घी बहुत समय तक सुरक्षित और पौष्टिक होता है।  अतः  सिर्फ सार तत्व ही जानने योग्य है।
पर्युषण पर्व क्या है। आत्मा के मूल गुणों को परिष्कृत कर के सहेजना और मन मे प्रवेश कर चुके विकारों को दूर कर आत्मा की पवित्रता को पुनः मार्जन करना ही पर्युषण पर्व का सार तत्व है।पर्युषण के दस दिनों में धीरज के साथ एक एक धर्म को पालते हुए उसकी आराधना करते हुए हम दस धर्म को पालते हैं जो इस प्रकार हैं--- उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव ,सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन, और ब्रम्हचर्य ये दस धर्म होते हैं जिसके पालन से इंसान मोक्ष प्राप्त कर सकता है, मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।उत्तम  विशेषण हर धर्म के आगे लग जाने से उस धर्म की विशुद्धता और गुण परिमार्जित स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। कलदिनांक 3 सेप्टेम्बर से पर्वाधिराज पर्युषण प्रारम्भ हो रहे हैं। पहला दिन  उत्तम क्षमा  धर्म है ,इसलिये आज इस धर्म को समझते हैं । अतः अब उत्तम क्षमा के विषय मे ही बात करते हैं।
उत्तम क्षमा का अर्थ है किसी के द्वारा भी अपने प्रति की गई किसी गलती, किसी अप्रिय कार्य या किसी अनहोनी को कर  देने पर भी क्रोध न करना। उसे क्षमा कर देना।
पूजा में लिखा गया है।------

गाली सुन मन खेद न आनो
गुण को अवगुण कहे अयानो
कही है अयानो वस्तु छीने
बांध मार बहु विधि करे
घर तें निकारे, तन विदारे
बैर जो न तहाँ धरे
तें कर्म पूरब किये खोटे
सहे क्यों नहीं जीयरा
अति क्रोध अग्नि
जलाए प्राणी
साम्य जल ले सीयरा....

अर्थात  किसी ने आपको गाली दी, आपके गुणों को अवगुण कह निंदा की, आपकी वस्तु छीन ली, आपको बांधा, मारा, फिर घर से भी निकाल दिया,आपके तन को चोट पहुंचाई, फिर भी आपको उत्तम क्षमा को धारण कर के उससे बैर नहीं करना चाहिये, क्रोध नहीं करना चाहिये, उसे ये सोचकर क्षमा कर देना चाहिये कि हमने पूर्व में जो खोटे कर्म किये ये उसी का परिणाम है।साम्य भाव रखते हुए अपने क्रोध की अग्नि को शांत कर परीषह सहना चाहिये।

बताया गया है कि जिसने अपने क्रोध को जीत लिया उसका फिर सृष्टि में कोई भी दुश्मन नहीं होता।
यहाँ एक दृष्टांत प्रस्तुत है...
एक जुलाहा था उसने बड़ी मेहनत से एक सुंदर धोती बुनी थी। उसे लेकर बाजार में बेचने गया। वह बहुत गुणी था ।उसका सहपाठी एक रईस  उससे बहुत ईर्ष्या रखता था क्योंकि उसके अच्छे गुणों के कारण सभी उसे बहुत प्यार करते थे। बाजार में वह  भी आया। उसने वह धोती उठा कर पूछा कि
"यह कितने की है"?
"8 रुपए की"जुलाहे ने कहा
रईस ने उसके दो टुकड़े कर दिये
फिर पूछा
"अब कितने की"?
"4 रुपए की"
फिर उसके 2 टुकड़े करता जाता और पूछता जाता
"अब कितने की"
"2 रुपए"
"1 रुपए"
"50 पैसे"
"25  पैसे"
धोती के टुकड़े टुकड़े हो गए  तब रईस ने अट्टहास करते हुए कहा
"मुझे नहीं चाहिये"
जुलाहा बोला
"कोई बात नहीं अब ये धोती किसी के काम की नहीं पर मैं इसकी बत्तियां बना कर दीपक जलाने के काम ले लूंगा"इतना सुनते ही रईस शर्म से पानी पानी होकर सिर झुका कर मुँह छुपा कर पश्चाताप करने लगा रोने लगा।और क्षमा मांगने लगा
जुलाहे ने तो पहले ही क्षमा कर दिया था
पर जब तक रईस का मान तिरोहित नहीं हो जाता तब तक जुलाहे के क्षमा का फल सिर्फ जुलाहे को ही मिलता परंतु  रईस के पश्चाताप और क्षमा मांगने से उसके भी विकार नष्ट हो गए।
ये है उत्तम क्षमा धर्म

*उत्तम क्षमा गहो रे भाई
इह भव जस पर भव सुख दाई*।।

संकलन, विश्लेषण,
डॉ विदुषी शर्मा

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