सत्य सनातन धर्म

सभी को नमस्कार
आज एक ऐसी पोस्ट मिली है जिसे पढ़कर हम सभी को अपने हिंदुस्तानी होने पर गर्व महसूस होगा। इस पोस्ट में जो भी लिखा है वह सत्य है। सबसे  बड़ी विडंबना यह है कि जिन  शास्त्रों का ज्ञान हमें होना चाहिए ,जिस संस्कृति का, जिस संस्कृत का ज्ञान हमें होना चाहिए वह विदेशियों द्वारा हम तक पहुंच रहा है। हमारे ही ग्रंथ  पढ़कर, उन पर शोध करके वे अनेकानेक प्रयोग कर रहे हैं और हम उनकी विद्वत्ता का, उनके परिश्रम का लोहा मान रहे हैं। जबकि परोक्ष में सत्य कुछ और है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने यह सब कुछ कितने हजार साल पहले ही लिख दिया था तो उन्होंने कितना परिश्रम किया होगा? हम सभी के लिए, मानवता के लिए। कृपया विचार करें एवं अपने ज्ञान पर, अपने देश पर, अपने धर्म पर, अपनी संस्कृति पर गर्व करने का प्रयत्न करें। अपने आने वाली पीढ़ी को भी हिंदू संस्कृति को प्रणाम करना और उन्हें सच्चाई से अवगत कराने का प्रयत्न करें ताकि वे हिंदुस्तान को, उसकी सच्चाई को जान सके और ह्रदय से यह आत्मसात कर सके कि "मेरा भारत महान"🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

अधपकी इंग्लिश के साथ अपने
आप को मॉर्डन समझ रहे हैँ ?😊

महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे।
इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है।

ये वशिष्ठ मुनि(राजा दशरथ के राजकुल
गुरु)के बड़े भाई थे।

वेदों से लेकर पुराणों में इनकी महानता
की अनेक बार चर्चा की गई है।

इन्होने अगस्त्य संहिता नामक ग्रन्थ की
रचना की जिसमे इन्होँने हर प्रकार का
ज्ञान समाहित किया।

इन्हें त्रेता युग में भगवान श्री राम से मिलने
का सोभाग्य प्राप्त हुआ उस समय श्री राम
वनवास काल में थे।

इसका विस्तृत वर्णन श्री वाल्मीकि कृत
रामायण में मिलता है।

इनका आश्रम आज भी महाराष्ट्र के
नासिक की एक पहाड़ी पर स्थित है।

राव साहब कृष्णाजी वझे ने १८९१ में
पूना से इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की।

भारत में विज्ञान संबंधी ग्रंथों की खोज
के दौरान उन्हें उज्जैन में दामोदर त्र्यम्बक
जोशी के पास अगस्त्य संहिता के कुछ
पन्ने मिले।

इस संहिता के पन्नों में उल्लिखित
वर्णन को पढ़कर नागपुर में संस्कृत
के विभागाध्यक्ष रहे डा. एम.सी. सहस्रबुद्धे
को आभास हुआ कि यह वर्णन डेनियल
सेल से मिलता-जुलता है।

अत: उन्होंने नागपुर में इंजीनियरिंग के
प्राध्यापक श्री पी.पी. होले को वह दिया
और उसे जांचने को कहा।

श्री अगस्त्य ने अगस्त्य संहिता में विद्युत
उत्पादन से सम्बंधित सूत्रों में लिखा :

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय:
पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो
मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥
-अगस्त्य संहिता

अर्थात् एक मिट्टी का पात्र(Earthen pot)
लें,उसमें ताम्र पट्टिका (copper sheet)
डालें तथा शिखिग्रीवा डालें,फिर बीच में
गीली काष्ठ पांसु(wet saw dust)लगायें,
ऊपर पारा(mercury‌)तथा दस्ट लोष्ट
(Zinc)डालें,फिर तारों को मिलाएंगे तो,
उससे मित्रावरुणशक्ति (बिजली)
का उदय होगा।

अब थोड़ी सी हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हुई।😊

उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले तथा
उनके मित्र ने तैयारी चालू की तो शेष सामग्री
तो ध्यान में आ गई,परन्तु शिखिग्रीवा समझ
में नहीं आया।

संस्कृत कोष में देखने पर ध्यान में आया
कि शिखिग्रीवा याने मोर की गर्दन।

अत: वे और उनके मित्र बाग गए तथा
वहां के प्रमुख से पूछा, लक्या आप बता
सकते हैं,आपके बाग में मोर कब मरेगा,
तो उसने नाराज होकर कहा क्यों ?

तब उन्होंने कहा, एक प्रयोग के लिए
उसकी गर्दन की आवश्यकता है।

यह सुनकर उसने कहा ठीक है।
आप एक अर्जी दे जाइये।
इसके कुछ दिन बाद एक आयुर्वेदाचार्य
से बात हो रही थी।

उनको यह सारा घटनाक्रम सुनाया तो
वे हंसने लगे और उन्होंने कहा,
"यहां शिखिग्रीवा का अर्थ मोर की गरदन
नहीं अपितु उसकी गरदन के रंग जैसा
पदार्थ कॉपरसल्फेट(blue vitriol)
(नीलाथोथा)है।

यह जानकारी मिलते ही समस्या हल
हो गई और फिर इस आधार पर एक
सेल बनाया और डिजिटल मल्टीमीटर
द्वारा उसको नापा।

परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा
23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई।

प्रयोग सफल होने की सूचना डा.एम.सी.
सहस्रबुद्धे को दी गई।

इस सेल का प्रदर्शन ७ अगस्त, १९९० को
स्वदेशी विज्ञान संशोधन संस्था(नागपुर)के
चौथे वार्षिक सर्वसाधारण सभा में अन्य
विद्वानों के सामने हुआ।

आगे श्री अगस्त्य जी लिखते है :

अनने जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥

सौ कुंभों की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे,
तो पानी अपने रूप को बदल कर प्राण वायु
(Oxygen)तथा उदान वायु (Hydrogen)
में परिवर्तित हो जाएगा।

आगे लिखते है:
वायुबन्धकवस्त्रेण
निबद्धो यानमस्तके
उदान : स्वलघुत्वे
बिभर्त्याकाशयानकम्‌।
(अगस्त्य संहिता शिल्प शास्त्र सार)

उदान वायु (H2) को वायु प्रतिबन्धक
वस्त्र(गुब्बारा)में रोका जाए तो यह विमान
विद्या में काम आता है।

राव साहब वझे, जिन्होंने भारतीय
वैज्ञानिक ग्रंथ और प्रयोगों को ढूंढ़ने में
अपना जीवन लगाया,उन्होंने अगस्त्य
संहिता एवं अन्य ग्रंथों में पाया कि विद्युत
भिन्न-भिन्न प्रकार से उत्पन्न होती हैं।

इस आधार पर उसके भिन्न-भिन्न
नाम रखे गयें है:

(१)तड़ित्‌-रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न।

(२)सौदामिनी-रत्नों के घर्षण से उत्पन्न।

(३)विद्युत-बादलों के द्वारा उत्पन्न।

(४) शतकुंभी-सौ सेलों या कुंभों
से उत्पन्न।

(५)हृदनि-हृद या स्टोर की हुई बिजली।

(६)अशनि-चुम्बकीय दण्ड से उत्पन्न।

अगस्त्य संहिता में विद्युत्‌ का उपयोग
इलेक्ट्रोप्लेटिंग(Electroplating)के
लिए करने का भी विवरण मिलता है।

उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना
या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि
निकाली।

अत: महर्षि अगस्त्य को कुंभोद्भव
(Battery Bone) कहते हैं।

आगे लिखा है:

कृत्रिमस्वर्णरजतलेप:
सत्कृतिरुच्यते।
-शुक्र नीति

यवक्षारमयोधानौ
सुशक्तजलसन्निधो॥
आच्छादयति तत्ताम्रं
स्वर्णेन रजतेन वा।
सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं
शातकुंभमिति स्मृतम्‌॥
५ (अगस्त्य संहिता)

अर्थात्‌ कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप
को सत्कृति कहा जाता है।

लोहे के पात्र में सुशक्त जल अर्थात तेजाब
का घोल इसका सानिध्य पाते ही यवक्षार
(सोने या चांदी का नाइट्रेट)ताम्र को स्वर्ण
या रजत से ढंक लेता है।

स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ
अथवा स्वर्ण कहा जाता है।

उपरोक्त विधि का वर्णन एक विदेशी
लेखक David Hatcher Childress
ने अपनी पुस्तक"Technology of the
Gods: The Incredible Sciences
of the Ancients" में भी लिखा है।

अब दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे ग्रंथों
को विदेशियों ने हम से भी अधिक पढ़ा है।

इसीलिए दौड़ में आगे निकल गये और
सारा श्रेय भी ले गये।

और इंडिया के सेकुलर यो यो करते हुए
अधपकी इंग्लिश के साथ अपने आप को
मॉर्डन समझ रहे हैँ।

आज हम विभवान्तर की इकाई वोल्ट
तथा धारा की एम्पियर लिखते है जो
क्रमश: वैज्ञानिक Alessandro Volta
तथा André-Marie Ampère के नाम
पर रखी गयी है,जबकि इकाई अगस्त्य
होनी चाहिए थी।
#साभार💐
#अतुल्य_वैदिक_भारत💐

जयति पुण्य सनातन संस्कृति💐
जयति पुण्य भूमि भारत💐
जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रं💐

महर्षि अगस्त्य को समग्र
सनातनियों का सादर प्रणाम💐

सदा सर्वदासुमंगल💐
हर हर महादेव💐
जयभवानी💐
जयश्रीराम💐

संकलन, विश्लेषण
डॉ विदुषी शर्मा

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