भविष्य की भाषा और वैश्विक चुनौतियां

भविष्य की भाषा और वैश्विक चुनौतियां

परिचय----

भाषा वह साधन है जो अपने जज्बात, अपनी भावनाएं, अपने सपने, अपनी नीतियां, अपने फैसले, अपनी सृजनात्मकता, अपने ज्ञान, नियम व संभावनाएं, अपनी जरूरतें, अपनी इच्छाएं, अपनी जिंदगी के कुछ अनकहे, अनछुए पहलू इन सब को समेट कर या तो सबके सामने लिखित रूप में प्रकट कर दी जाती है   या मौखिक रूप में  जिनमें से कुछ मूक भाषा की परिधि में भी आते हैं जैसे आंखों की भाषा, इशारों की भाषा , इन सब को शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन कार्य है।( इनमें से कुछ ऐसा भी लिखित हो सकता है जो सदा के लिए कुछ डायरी के पन्नों में ही दफन हो  जाते हैं जिसे  एकांत में स्वयं के ही दिल को बहलाने का कार्य करते हैं।)

इसके बाद भाषा का औपचारिक लिखित रूप प्राप्त होता है जिससे साहित्य का निर्माण होता है जो विषय विविधता पर आधारित होकर हमारी सभ्यता एवं संस्कृति को सहेज कर रखता है तथा आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित स्थानांतरित करता है। समय के साथ - साथ इसमें और अधिक विस्तार होता जाता है तथा यह आवश्यक भी है क्योंकि परिवर्तन और परिवर्धन  प्रकृति का नियम है ।
हमारी हिंदी भविष्य की भाषा है क्योंकि विश्व के डेढ़ सौ से अधिक देशों में दो करोड़ से  अधिक प्रवासी  भारतीयों का बोलबाला है तथा अधिकार प्रवासी भारतीय आर्थिक रुप से संपन्न है। हिंदी को विश्व भाषा बनाने के लिए प्रवासी भारतीय एवं प्रवासी हिंदी साहित्य का बहुत बड़ा हाथ है। 1999 में  मिशन ट्रांसलेशन शिखर बैठक में टोकियो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होजुमी तनाका ने जो भाषण दिए थे उनके अनुसार विश्व में चीनी भाषाई आंकड़े प्रस्तुत किये थे उनमें चीनी भाषा  बोलने वालों का स्थान प्रथम और हिंदी का द्वितीय तथा अंग्रेजी को तृतीय स्थान प्राप्त है, क्योंकि हिंदी केवल एक भाषा ही नहीं है। हिंदी है प्रत्येक हिंदुस्तानी का गर्व , हिंदी है प्रत्येक हिंदुस्तानी की पहचान, हिंदी है हिंदुस्तान का ताज। हिंदी भाषा का इतना परिचय यद्यपि काफी है ,परंतु हिंदी के ज्ञान ,उसकी अभिव्यक्ति, उसका इतिहास, उसकी सरलता , उसकी सहजता, उसकी परिपक्वता, उसकी मिठास और गहराई और भी न जाने क्या - क्या जिन्हें शब्दों में वर्णित करना आसान कृत्य नहीं है।
इन सब के बारे में हम विस्तार से जानने का प्रयत्न करेंगे क्योंकि "पूर्णता" किसी भी विषय पर प्राप्त करना अपने आप में एक लक्ष्य है । हम केवल अपने सार्थक प्रयास करेंगे।

भविष्य की भाषा हिंदी और इसका विस्तार----

वास्तव में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति, भारतीय साहित्य जितना अधिक प्रचारित-प्रसारित है, वृहद है ,अनूठा है ,विविध है उतना किसी और देश का संभव हो ही नहीं सकता। हमारे भारतीय साहित्य में जितने वेद, पुराण, श्रुतियां, स्मृतियां, महाकाव्य आदि की उपलब्धता है वह किसी अन्य सभ्यता के पास हो, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती ।अभी हमने सिर्फ साहित्य की बात कीइसलिए की है क्योंकि साहित्य की वैश्विक स्तर पर उपलब्धता प्राप्त करने का एक महान हेतु बनी है "हिंदी"। क्योंकि इसी साहित्य को आम पाठक वृंद की पहुंच एवं समझ तक सरलता से  बनाए रखने के लिए हिंदी भाषा का अत्यधिक प्रयोग किया गया है। वैसे हिंदी साहित्य में भी ना तो ग्रंथों की कमी है और ना ही विविधता की। प्रत्येक विषय पर( जैसे राजनीति, अर्थ ,काम आदि पर) प्रत्येक रस पर (जैसे वीर श्रृंगार, वात्सल्य आदि पर) प्रत्येक विधा पर ( जैसे दोहा,  सौरठा,कविता, कहानी, नाटक, एकांकी आदि) पर प्रत्येक भाव पक्ष पर या भावना पर( जैसे वीरता, भक्ति, प्रेम, आदि) पर प्रचुर मात्रा में साहित्य, पूर्ण  प्रामाणिकता के साथ उपलब्ध है। हिंदी साहित्य के इतिहास का वर्गीकरण ही इन्हीं भाव पक्षो की प्रधानता को लेकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा किया गया है जैसे वीरगाथाकाल ,रीतिकाल ,भक्तिकाल आदि। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिंदी भाषा में ज्ञान है ,प्रेम है ,करुणा है ,मित्रता है ,भावाभिव्यक्ति की चरम सीमा है, काव्य सौष्ठव है, छंद अलंकार के साथ सौंदर्यात्मकता है, और इन सब के साथ - साथ है हिंदी भाषा का जो सबसे महत्वपूर्ण गुण, और वह है इसकी सरलता और आसानी से उपलब्धता । क्योंकि भाषा संबंधी यह गुण तो अन्य भाषाओं में भी हैं परंतु और वे भाषाएँ भी सरल कही जा सकती है। परंतु हिंदी जितनी नहीं, क्योंकि भारत में प्रत्येक राज्य में हिंदी बोलने वालों की एक विशेष जनसंख्या उपलब्ध है। और  उत्तर भारत जैसे हरियाणा, पंजाब ,उत्तर प्रदेश ,हिमाचल प्रदेश को लगभग पूर्णतया ही हिंदी भाषी क्षेत्र है। इसलिए हिंदी की महत्ता में और इजाफा हो जाता है।
इसकी अखंडता और प्रगाढ़ हो जाती है जब हिंदी की सरलता के साथ - साथ हिंदी की आसान पहुंच, उपलब्धता भी जुड़ जाती है   जो इसके वैश्विक रूप को आलंबन देती है ।

हिंदी और वैश्विक चुनोतियाँ---

  आज के युग में वैश्वीकरण हर स्तर पर आवश्यक है। जैसा कि हम पूर्व में भी कह चुके हैं ।मानव संवेदनशील प्राणी है और साहित्य एक ऐसा साधन है जो मानवीय संवेदना को पठन-पाठन ,श्रवण एवं लेखन के द्वारा आलंबन प्रदान करता है। इस पर भी हिंदी साहित्य की तो बात ही कुछ और है ।इसकी अनेक विधाएं जैसे कहानी, आलेख, संस्मरण, नाटक, रिपोतार्ज, एकांकी आदि सबकी अपनी विशिष्टताएं हैं। हिंदी साहित्य में विभिन्न रस (जैसे करुण, रौद्र, वात्सल्य, वीर, आदि) अलंकार ( जैसे अनुप्रास, भ्रांति, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, उपमा, आदि) छंद ( जैसे वर्णिक छंद, मात्रिक छंद, दोहा, सोरठा, चौपाई आदि) इन सब की इतनी  विविधता है, इतना सौंदर्य है, इतना आनन्द है, कि मानव अपने आप को भूल जाता है ,वो अपनी भावनाओं के साथ कहीं दूर अदृश्य संसार मे ही चला जाता है। परंतु आज का वर्तमान युग यांत्रिक अधिक होता जा रहा है। मानवीय संवेदनाएं जैसे स्पर्श, बातचीत,आलिंगन, रिश्ते, एहसास, भावनाएं सिमटती जा रही हैं।इन सब को देखते हुए हिंदी के द्वारा इन्हें पुनः जीवित करना ,पुनः इन सबको सशक्त करना, एक कठिन कार्य है ,परंतु असंभव नहीं। आज जबकि हर जगह नई तकनीक का ही बोल बाला है एवं कुछ समय पहले तक केवल अंग्रेजी में ही सब प्रकार के तकनीकी  कार्य होते थे ।परंतु आज आधुनिकता के साथ - साथ हिंदी ने भी कोमलता और सौम्यता के साथ अपना स्थान लेना आरंभ कर दिया है ।कंप्यूटर, मोबाइल फोन में भी हिंदी टाइपिंग, गूगल हिंदी आदि ऐप्स(Apps) प्रस्तुत है जो हिंदी को वर्तमान की भाषा बनाते हैं। आज हिंदी प्रेमी युवा भी हिंदी में न केवल संदेश भेजते हैं अपितु हिंदी में ही मोबाइल पर भी कार्य  भी करते हैं।

वैश्वीकरण और Google ---

वैश्वीकरण का पर्याय में आने जाने वाले Google पर हिंदी उपस्थित है। यानी वैश्वीकरण प्राप्त करने की ओर अग्रसर। आज हिंदी में भी वह तमाम सामग्री ,लगभग सभी विषयों से सम्बंधित साहित्य सब कुछ हिंदी भाषा में भी उपलब्ध है। यह  वैश्वीकरण  की ओर एक सशक्त , सार्थक कदम है।

भाषा के वैश्विक संदर्भ की विशेषताएँ---

आखिर, वे कौन सी विशेषताएँ हैं जो किसी भाषा को वैश्विक संदर्भ प्रदान करती हैं। ऐसा करके हम हिंदी के विश्व संदर्भ का वस्तुपरक विश्लेषण कर सकते हैं। जब हम हिंदी को विश्व भाषा में रूपांतरित होते हुए देख रहे हैं और यथावसर उसे विश्वभाषा की संज्ञा प्रदान कर रहे हैं, तब यह जरूरी हो जाता है कि हम सर्वप्रथम विश्वभाषा का स्वरूप विश्लेषण कर लें। संक्षेप में विश्वभाषा के निम्नलिखित लक्षण निर्मित किए जा सकते हैं:-

1 उसके बोलने-जानने तथा चाहने वाले भारी तादाद में हों और वे विश्व के अनेक देशों में फैले हों।

2 उस भाषा में साहित्य-सृजन की प्रदीर्घ परंपरा हो और प्राय: सभी विधाएँ वैविध्यपूर्ण एवं समृद्ध हों। उस भाषा में सृजित कम-से-कम एक विधा का साहित्य विश्वस्तरीय हो।

3 उसकी शब्द-संपदा विपुल एवं विराट हो तथा वह विश्व की अन्यान्य बडी भाषाओं से विचार-विनिमय करते हुए एक -दूसरे को प्रेरित -प्रभावित करने में सक्षम हो।

4 उसकी शाब्दी एवं आर्थी संरचना तथा लिपि सरल, सुबोध एवं वैज्ञानिक हो। उसका पठन-पाठन और लेखन सहज-संभाव्य हो। उसमें निरंतर परिष्कार और परिवर्तन की गुंजाइश हो।

5 उसमें ज्ञान-विज्ञान के तमाम अनुशासनों में वाङमय सृजित एवं प्रकाशित हो तथा नए विषयों पर सामग्री तैयार करने की क्षमता हो।

6 वह नवीनतम वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों के साथ अपने-आपको पुरस्कृत एवं समायोजित करने की क्षमता से युक्त हो।

7 वह अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संदर्भों, सामाजिक संरचनाओं, सांस्कृतिक चिंताओं तथा आर्थिक विनिमय की संवाहक हो।

8 वह जनसंचार माध्यमों में बडे पैमाने पर देश-विदेश में प्रयुक्त हो रही हो।

 9 उसका साहित्य अनुवाद के माध्यम से विश्व की दूसरी महत्त्वपूर्ण भाषाओं में पहुँच रहा हो।

 10 उसमें मानवीय और यांत्रिक अनुवाद की आधारभूत तथा विकसित सुविधा हो जिससे वह बहुभाषिक कम्प्यूटर की दुनिया में अपने समग्र सूचना स्रोत तथा प्रक्रिया सामग्री (सॉफ्टवेयर) के साथ उपलब्ध हो।

11 साथ ही, वह इतनी समर्थ हो कि वर्तमान प्रौद्योगिकीय उपलब्धियों मसलन ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट तथा एस.एम.एस. एवं वेब जगत में प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी सक्रिय उपस्थिति का अहसास करा सके ।

12 उसमें उच्चकोटि की पारिभाषिक शब्दावली हो तथा वह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की नवीनतम आविष्कृतियों को अभिव्यक्त करते हुए मनुष्य की बदलती जरूरतों एवं आकांक्षाओं को वाणी देने में समर्थ हो।

13 वह विश्व चेतना की संवाहिका हो। वह स्थानीय आग्रहों से मुक्त विश्व दृष्टि सम्पन्न कृतिकारों की भाषा हो, जो विश्वस्तरीय समस्याओं की समझ और उसके निराकरण का मार्ग जानते हों।
 
हिंदी में उपरोक्त सभी गुण विद्यमान हैं।

वैश्विक संदर्भ में हिंदी का  सामर्थ्य---

जब हम उपर्युक्त प्रतिमानों पर हिंदी का परीक्षण करते हैं तो पाते हैं कि वह न्यूनाधिक मात्रा में प्राय: सभी निष्कर्षों पर खरी उतरती है। आज वह विश्व के सभी महाद्वीपों तथा महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों- जिनकी संख्या लगभग एक सौ चालीस है- में किसी न किसी रूप में प्रयुक्त होती है। वह विश्व के विराट फलक पर नवल चित्र के समान प्रकट हो रही है। आज वह बोलने वालों की संख्या के आधार पर चीनी के बाद विश्व की दूसरी सबसे बडी भाषा बन गई है। इस बात को सर्वप्रथम सन १९९९ में "मशीन ट्रांसलेशन समिट' अर्थात् यांत्रिक अनुवाद नामक संगोष्ठी में टोकियो विश्वविद्यालय के प्रो. होजुमि तनाका ने भाषाई आँकडे पेश करके सिद्ध किया है। उनके द्वारा प्रस्तुत आँकडों के अनुसार विश्वभर में चीनी भाषा बोलने वालों का स्थान प्रथम और हिंदी का द्वितीय है। अंग्रेजी तो तीसरे क्रमांक पर पहुँच गई है। इसी क्रम में कुछ ऐसे विद्वान अनुसंधित्सु भी सक्रिय हैं जो हिंदी को चीनी के ऊपर अर्थात् प्रथम क्रमांक पर दिखाने के लिए प्रयत्नशील हैं। डॉ. जयन्ती प्रसाद नौटियाल ने भाषा शोध अध्ययन २००५ के हवाले से लिखा है कि, विश्व में हिंदी जानने वालों की संख्या एक अरब दो करोड पच्चीस लाख दस हजार तीन सौ बावन है। इस मोर्चे पर हिंदी का बडे ही सबल तरीके से उन्नयन करना होगा। उसके पक्ष में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आज अंग्रेजी के बाद वह विश्व के सबसे ज्यादा देशों में व्यवहृत होती है।

समर्थ भाषा और वैज्ञानिक लिपि ---

यदि हम इन आँकडों पर विश्वास करें तो संख्याबल के आधार पर हिंदी विश्वभाषा है। हाँ, यह जरूर संभव है कि यह मातृभाषा न होकर दूसरी, तीसरी अथवा चौथी भाषा भी हो सकती है। हिंदी में साहित्य-सृजन की परंपरा भी बारह सौ साल पुरानी है। वह ८वीं शताब्दी से लेकर वर्तमान २१वीं शताब्दी तक गंगा की अनाहत-अविरल धारा की भाँति प्रवाहमान है। उसका काव्य साहित्य तो संस्कृत के बाद विश्व के श्रेष्ठतम साहित्य की क्षमता रखता है। उसमें लिखित उपन्यास एवं समालोचना भी विश्वस्तरीय है। उसकी शब्द संपदा विपुल है। आज हिंदी में विश्व का महत्त्वपूर्ण साहित्य अनुसृजनात्मक लेखन के रूप में उपलब्ध है और उसके साहित्य का उत्तमांश भी विश्व की दूसरी भाषाओं में अनुवाद के माध्यम से जा रहा है।

जहाँ तक देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता का सवाल है तो वह सर्वमान्य है। देवनागरी में लिखी जाने वाली भाषाएँ उच्चारण पर आधारित हैं।

मीडिया और वेब पर  हिंदी---

यह सत्य है कि हिंदी में अंग्रेजी के स्तर की विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित पुस्तकें नहीं हैं। उसमें ज्ञान विज्ञान से संबंधित विषयों पर उच्चस्तरीय सामग्री की दरकार है। विगत कुछ वर्षों से इस दिशा में उचित प्रयास हो रहे हैं। अभी हाल ही में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा हिंदी माध्यम में एम.बी.ए.का पाठ¬क्रम आरंभ किया गया। इसी तरह "इकोनामिक टाइम्स' तथा "बिजनेस स्टैंडर्ड' जैसे अखबार हिंदी में प्रकाशित होकर उसमें निहित संभावनाओं का उद्घोष कर रहे हैं। पिछले कई वर्षों में यह भी देखने में आया कि "स्टार न्यूज' जैसे चैनल जो अंग्रेजी में आरंभ हुए थे वे विशुद्ध बाजारीय दबाव के चलते पूर्णत: हिंदी चैनल में रूपांतरित हो गए। साथ ही, "ई.एस.पी.एन' तथा "स्टार स्पोर्ट्स' जैसे खेल चैनल भी हिंदी में कमेंट्री देने लगे हैं। हिंदी को वैश्विक संदर्भ देने में उपग्रह-चैनलों, विज्ञापन एजेंसियों, बहुराष्ट्रीय निगमों तथा यांत्रिक सुविधाओं का विशेष योगदान है। वह जनसंचार-माध्यमों की सबसे प्रिय एवं अनुकूल भाषा बनकर निखरी है।
  
वैश्विक स्तर पर हिंदी का विकास---

आज विश्व में सबसे ज्यादा पढे जानेवाले समाचार पत्रों में आधे से अधिक हिन्दी के हैं। इसका आशय यही है कि पढा-लिखा वर्ग भी हिन्दी के महत्त्व को समझ रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि आज भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया, मॉरीशस,चीन,जापान,कोरिया, मध्य एशिया, खाडी देशों, अफ्रीका, यूरोप, कनाडा तथा अमेरिका तक हिंदी कार्यक्रम उपग्रह चैनलों के जरिए प्रसारित हो रहे हैं और भारी तादाद में उन्हें दर्शक भी मिल रहे हैं। आज मॉरीशस में हिंदी सात चैनलों के माध्यम से धूम मचाए हुए है। विगत कुछ वर्षों में एफ.एम. रेडियो के विकास से हिंदी कार्यक्रमों का नया श्रोता वर्ग पैदा हो गया है। हिंदी अब नई प्रौद्योगिकी के रथ पर आरूढ होकर विश्वव्यापी बन रही है। उसे ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट, एस.एम.एस. एवं वेब जगत में बडी सहजता से पाया जा सकता है। इंटरनेट जैसे वैश्विक माध्यम के कारण हिंदी के अखबार एवं पत्रिकाएँ दूसरे देशों में भी विविध साइट्स पर उपलब्ध हैं।

माइक्रोसाफ्ट, गूगल, सन, याहू, आईबीएम तथा ओरेकल जैसी विश्वस्तरीय कंपनियाँ अत्यंत व्यापक बाजार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिंदी प्रयोग को बढावा दे रही हैं। संक्षेप में, यह स्थापित सत्य है कि अंग्रेजी के दबाव के बावजूद हिंदी बहुत ही तीव्र गति से विश्वमन के सुख-दु:ख, आशा-आकांक्षा की संवाहक बनने की दिशा में अग्रसर है। आज विश्व के दर्जनों देशों में हिंदी की पत्रिकाएँ निकल रही हैं तथा अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, आस्ट्रिया जैसे विकसित देशों में हिंदी के कृति रचनाकार अपनी सृजनात्मकता द्वारा उदारतापूर्वक विश्व मन का संस्पर्श कर रहे हैं। हिंदी के शब्दकोश तथा विश्वकोश निर्मित करने में भी विदेशी विद्वान सहायता कर रहे हैं। 

राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में हिंदी---

जहाँ तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक विनिमय के क्षेत्र में हिंदी के अनुप्रयोग का सवाल है तो यह देखने में आया है कि हमारे देश के नेताओं ने समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में भाषण देकर उसकी उपयोगिता का उद्घोष किया है। यदि अटल बिहारी वाजपेयी तथा पी.वी.नरसिंहराव ,विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में दिया गया वक्तव्य स्मरणीय है ,तो श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्र मंडल देशों की बैठक तथा चन्द्रशेखर द्वारा दक्षेस शिखर सम्मेलन के अवसर पर हिंदी में दिए गए भाषण भी उल्लेखनीय हैं। यह भी सर्वविदित है कि यूनेस्को के बहुत सारे कार्य हिंदी में सम्पन्न होते हैं। हिंदी को वैश्विक संदर्भ और ख्याति प्रदान करने में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा विदेशों में स्थापित भारतीय विद्यापीठों की केन्द्रीय भूमिका रही है जो विश्व के अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों में फैली हुई है। इन विश्वविद्यालयों में शोध स्तर पर हिन्दी अध्ययन- अध्यापन की सुविधा है जिसका सर्वाधिक लाभ विदेशी अध्येताओं को मिल रहा है। 

वैश्विकरण  तथा  हिंदी : गुण और परिमाण---

वर्तमान समय भारत और हिंदी के तीव्र एवं सर्वोन्मुखी विकास का द्योतन कर रहा है और हम सब से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि हम जहाँ भी हैं, जिस क्षेत्र में भी कार्यरत हैं वहाँ ईमानदारी से हिंदी और देश के विकास में हाथ बँटाएँ। सारांश यह कि हिंदी विश्व भाषा बनने की दिशा में उत्तरोत्तर अग्रसर है।
हिंदी गुण और परिमाण में समृद्ध भाषा है। आज हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में जितने रचनाकार सृजन कर रहे हैं उतने बहुत सारी भाषाओं के बोलने वाले भी नहीं हैं। केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में ही दो सौ से अधिक हिंदी साहित्यकार सक्रिय हैं जिनकी पुस्तकें छप चुकी हैं। यदि अमेरिका से "विश्वा', हिंदी जगत तथा श्रेष्ठतम वैज्ञानिक पत्रिका "विज्ञान प्रकाश' हिंदी की दीपशिखा को जलाए हुए हैं तो मॉरीशस से विश्व हिंदी समाचार, सौरभ, वसंत जैसी पत्रिकाएँ हिंदी के सार्वभौम विस्तार को प्रामाणिकता प्रदान कर रही हैं। संयुक्त अरब इमारात से वेब पर प्रकाशित होने वाले हिंदी पत्रिकाएँ अभिव्यक्ति और अनुभूति पिछले ग्यारह से भी अधिक वर्षों से लोकमानस को तृप्त कर रही हैं और दिन पर दिन इनके पाठकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।

सरकारी सहयोग---

हिंदी प्रवासी साहित्य के द्वारा  वैश्वीकरण को प्राप्त करने हेतु  सरकारी सहयोग  अत्यंत आवश्यक है । इसके बिना  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई भी कार्य सफलता को प्राप्त नहीं कर सकता । वर्तमान सरकार हिंदी भाषा हिंदी भाषा में न केवल स्वयं कार्य कर रही है अपितु ऐसा करने की प्रेरणा भी दे रही है। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज जी द्वारा यू एन( यूनाइटेड नेशनस)में दिया गया हिंदी में भाषण और हाल ही में यूएन में प्रस्तावित हिंदी भाषा के लिए चार करोड़ रुपए का बजट हिंदी भाषा के उत्थान के लिए मील का पत्थर है ।

भारत ,वैश्वीकरण और प्रवासी  हिंदी साहित्य---

वैश्वीकरण हर स्तर पर प्राप्त करना अत्यावश्यक है। हमारी हिंदी चाहे वह प्रवासी हो या अप्रवासी, हिंदी केवल हिंदी है। यह अत्यंत प्रभाव कारी सिद्ध हो सकती है क्योंकि वैश्वीकरण को भावनात्मक स्तर पर जागरूक करना आज प्रत्येक हिंदुस्तानी का लक्ष्य होना चाहिए।  हिंदी के लिए हमारे विचार, हमारी संवेदनाएं, हमारी निष्ठा ,हमारी परंपराएं, हमारे रीति- रिवाज, हमारी संस्कृति, हमारी विरासत हमारा धर्म, हमारी नैतिकता, हमारी सामाजिकता, हमारी भावनाएं, हमारी राष्ट्र भक्ति आदि सब कुछ हिंदी से जुड़ी है। हिंदी  निरंतर  ही प्रगतिशील रही  है ।वैश्वीकरण को प्राप्त करने के लिए हिंदी अत्यावश्यक है। प्रवासी स्तर पर भी  हिंदी की यही भूमिका है। यह  इन सभी संप्रत्यों का प्रचार- प्रसार हर स्तर पर करती रही है,  और आगे भी करती रहेगी ।अब आवश्यकता है हिंदी को अत्यधिक प्रचारित-प्रसारित, पुष्पित-पल्लवित करने की ताकि हमारी आने वाली पीढियां भी हिंदी  को गर्व के साथ  आपना सकें। इसके लिए सभी को छोटे से छोटे स्तर पर भी सार्थक  सहयोग प्रदान करना होगा। इसी के साथ - साथ राजनीतिक आश्रय भी आवश्यक है ,तभी हम वैश्विकरण की इस  चुनौती को स्वीकार कर सकेंगे तथा अपना लक्ष्य हासिल कर सकेंगे।

निष्कर्ष---

  निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि वैश्वीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए   हिंदी को अत्यधिक कार्य करना होगा ।प्रवासी हिंदी साहित्य, हिंदी साहित्य एवं हम हिंदुस्तानियों को मिलकर हिंदी के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध होना होगा जिस प्रकार विदेशों में हिंदी को सम्मान की दृष्टि से देखा जा रहा है, हिंदुस्तान में भी हिंदी को  उतना ही सम्मान मिले,  जितने सम्मान की वह हकदार है।
आज जरूरत इस बात की है कि हम विधि, विज्ञान, वाणिज्य तथा नवीनतम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पाठ¬सामग्री उपलब्ध कराने में तेजी लाएँ। इसके लिए समवेत प्रयास की जरूरत है। यह तभी संभव है जब लोग अपने दायित्वबोध को गहराइयों तक महसूस करेंगे और सुदृढ़ इच्छाशक्ति के साथ संकल्पित होंगे। आज समय की माँग है कि हम सब मिलकर हिंदी के विकास की यात्रा में शामिल हों ताकि तमाम निकषों एवं प्रतिमानों पर कसे जाने के लिये हिंदी को सही मायने में विश्व भाषा की गरिमा प्रदान कर सकें। क्योंकि

" भाषा  केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं होती, यह अपने देश की संस्कृति की आत्मा होती है"
इसलिए हम सब भारतवासी  साहित्य (चाहे वह प्रवासी हो या अप्रवासी) से संबंधित वैश्वीकरण की चुनौती को सहर्ष स्वीकार करें एवं  अपने यथासंभव सार्थक प्रयत्नों के द्वारा उसे सफलता का अमलीजामा पहनाने का प्रयास करें। अपनी मातृभूमि के प्रति, अपनी मातृभाषा के प्रति, हिंदी के प्रति, यही हमारी सच्ची निष्ठा का परिचायक होगा।

             जय हिंद , जय भारत।

संदर्भ

1 हिंदी का प्रवासी साहित्य एक: सर्वेक्षण- डॉ कमल किशोर गोयनका ।

2 साहित्य में प्रवासी भारतीय :समाज के विविध पक्ष --सुषम बेदी ।

3 वतन से दूर  --'अभिव्यक्ति'  पत्रिका।

4 दिशांतर --  'अनुभूति' पत्रिका ।

  5 UK में हिंदी के उद्भव और विकास।

6 तेजेंद्र शर्मा का लेख ।

7  जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में दिसंबर 2016 में प्रकाशित लेख - 'हम प्रवासी'।

8 वर्तमान साहित्य --'प्रवासी हिंदी लेखन तथा भारतीय हिंदी'   -----कुंवर पाल, सिंह नमिता सिंह।
9 प्रवासी भारतीय हिंदी साहित्य: विमलेश कांति वर्मा।
10 इंटरनेट साइट्स

11 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में देवनागरी---
श्री जीवन नायक ।

12  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में हिंदी ---
प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद ।

13 भारत की राजभाषा नीति ---
श्री कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ।

14 भारत की राजभाषा नीति और उसका कार्यान्वयन ---
श्री देवेंद्र चरण ।

15  हिंदी का अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य ---
श्री बच्चन प्रसाद सिंह।

16  हिंदी साहित्य का इतिहास।
17  देवनागरी हिंदी।
  18 विश्व स्तर पर हिन्दी।

लेखिका
डॉ विदुषी शर्मा

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