नव वर्ष


आज 31 दिसंबर है यानि कैलेंडर वर्ष का आखरी दिन और बीते वर्ष का भी आखिरी दिन। हमारा हिंदू नव वर्ष वासंतिक नवरात्रि शुक्ल प्रतिपदा को होता है। परंतु आजकल परंपरा यही है कि हम भी 1 जनवरी को ही नववर्ष मना रहे हैं, जमाने के साथ चलना भी पड़ता है। परंतु अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को भी अपनी मान्यताओं को, रीति-रिवाजों को भी भूलना नहीं चाहिए और हमें अपने युवा पीढ़ी को भी इसकी जानकारी देते रहना चाहिए भले ही हम उनके साथ यह नववर्ष बनाएं, परंतु उन्हें कम से कम इस बात का ज्ञान तो अवश्य होना चाहिए।
खुशी के लिए कोई भी बहाना कभी भी खराब नहीं होता। खुश रहना बहुत अच्छी बात है, खुशियां बांटना उससे भी अच्छी बात है ।इसलिए खुशियां बांटते हुए ही हम भी सभी की तरह 1 जनवरी 2019 का खुली बाहों से स्वागत करते हैं, एवं ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि जो दुखदाई पल 2018 में आए वह चाहे किसी के भी जीवन में हो, वह दोबारा कभी ना आए। हमारी संस्कृति "सर्वे भवंतु सुखिन:" की रही है। अतः यही भावना मैं सभी धरती वासियों के लिए करती हूं क्योंकि "वसुधैव कुटुंबकम" भी हमारा मूल्य है, हमारी पहचान है। इसलिए सभी के लिए यह नव वर्ष मंगलमय हो, सुखमय हो।
शुभमस्तु।



जनवरी इन्सान को सपने दिखाती है, उम्मीद जगाती है, जोश दिलाती है, अभिप्रेरित करती है, जिंदगी को नया नजरिया देती है, ख्वाब देती है, नई उम्मीदें देती है,  और दिसंबर अनुभव देता है, सीख देता है, और गलतियों को ना दोहराने का पाठ पढ़ाता है।


कितना अजीब है ना,
*दिसंबर और जनवरी का रिश्ता?*
जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा...

दोनों काफ़ी नाज़ुक है
दोनो मे गहराई है,
दोनों वक़्त के राही है,
दोनों ने ठोकर खायी है...

यूँ तो दोनों का है
वही चेहरा-वही रंग,
उतनी ही तारीखें और
उतनी ही ठंड...
पर पहचान अलग है दोनों की
अलग है अंदाज़ और
अलग हैं ढंग...

एक अन्त है,
एक शुरुआत
जैसे रात से सुबह,
और सुबह से रात...

एक मे याद है
दूसरे मे आस,
एक को है तजुर्बा,
दूसरे को विश्वास...

दोनों जुड़े हुए है ऐसे
धागे के दो छोर के जैसे,
पर देखो दूर रहकर भी
साथ निभाते है कैसे...

जो दिसंबर छोड़ के जाता है
उसे जनवरी अपनाता है,
और जो जनवरी के वादे है
उन्हें दिसम्बर निभाता है...

कैसे जनवरी से
दिसम्बर के सफर मे
११ महीने लग जाते है...
लेकिन दिसम्बर से जनवरी बस
१ पल मे पहुंच जाते है!!

जब ये दूर जाते है
तो हाल बदल देते है,
और जब पास आते है
तो साल बदल देते है...

देखने मे ये साल के महज़
दो महीने ही तो लगते है,
लेकिन...
सब कुछ बिखेरने और समेटने
का वो कायदा भी रखते है...

दोनों ने मिलकर ही तो
बाकी महीनों को बांध रखा है,
.
अपनी जुदाई को
दुनिया के लिए
एक त्यौहार बना रखा है..!



डॉ विदुषी शर्मा

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