आ अब लौट चलें

अपनी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए, व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये।
आपस में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़, पद व पैसे के घमंड को थोड़ी देर छोड़कर इस पर भी विचार करें :-

० यदि मातृनवमी थी तो मदर्स डे क्यों लाया गया?
० यदि कौमुदी महोत्सव था तो वेलेंटाइन डे क्यों लाया गया?
० यदि गुरुपूर्णिमा थी तो टीचर्स डे क्यों लाया गया?
० यदि धन्वन्तरि जयन्ती थी तो डाक्टर्स डे क्यों लाया गया?
० यदि विश्वकर्मा जयंती थी तो प्रद्यौगिकी दिवस क्यों लाया?
० यदि सन्तान सप्तमी थी तो चिल्ड्रन्स डे क्यों लाया गया?
० यदि नवरात्रि और कंजिका भोज था तो डॉटर्स डे क्यों लाया?
० रक्षाबंधन है तो सिस्टर्स डे क्यों?
० भाईदूज है ब्रदर्स डे क्यों?
० आंवला नवमी, तुलसी विवाह मनाने वाले हिंदुओं को एनवायरमेंट डे की क्या आवश्यकता?
० केवल इतना ही नहीं ---- नारद जयन्ती ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है।
० पितृपक्ष 7 पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है।
० नवरात्रि को स्त्री के नवरूप दिवस के रूप में स्मरण कीजिये।

     सनातन पर्वों को अवश्य मनाईये।
     संस्कृति विस्मरण और रूपांतरण के लिए छोटी चीजें, अश्रेष्ठ संस्कृति लायी गयी।
     नव संवत्सर को अप्रैल फूल डे घोषित कर एक जनवरी हैप्पी न्यू ईयर कर दिया गया! उन्होंने अपनी नदियों, पहाड़ों, झीलों को बचाया, केवल भारत की नदियों को नष्ट करने के लिए ताकत झोंकी। अमेज़न, टेम्स, वोल्गा, दजला, मिसिसिपी, मिसौरी सुरक्षित हैं तो गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, नर्मदा, गोदावरी क्यों नहीं?"
     अब पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करना ही होगा। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो वे ही हमें वेद, शास्त्र, संस्कृत भी पढ़ाने आ जाएंगे! 
     
     जीवन में भारतीय पंचांग अपनाना चाहिए जिससे भारत अपने पर्वों, त्यौहारों से लेकर मौसम की भी अनेक जानकारियां सहज रूप से जान व समझ लेता है।

     उत्सव और पर्व  सनातन धर्म की शक्ति हैं

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