कोई भी यात्रा अपने आप में अनोखी ही होती है और इसके साथ यह भी उसके चित्र भी पास में हो तो वह अविस्मरणीय बन जाती है। मेरी खजुराहो की यात्रा भी इस संदर्भ में सत्य प्रतीत होती है। खजुराहो के मंदिर अपने आप में ही अपनी मिसाल हैं। इनके बारे में क्या कहा जा सकता है जो मेरे अनुभव है वह आप सबके साथ साझा करना चाहती हूं। सभी मंदिरों के बारे में एक साथ बताने की बजाय मैं एक एक मंदिर की विशेषता और उसके बारे में कुछ स्मृतियां आपके साथ बांटना चाहती हूं। प्रस्तुत चित्र मंतेश्वर महादेव मंदिर का है। यहां पर प्रात:काल सभी भक्तजन पूजा करने आते हैं जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि खजुराहो में मंदिर सूर्योदय के समय खुलते हैं और सूर्यास्त पर बंद हो जाते हैं। प्रस्तुत मंदिर में लगभग 18 फुट लंबा शिवलिंग एक बहुत बड़े चबूतरे पर स्थित है। मैंने अभी तक कि अपनी जिंदगी में इतना बड़ा शिवलिंग नहीं देखा है। अद्भुत, अद्वितीय और आकर्षक भगवान शिव का प्रतीक शिवलिंग अनंतता, विशालता लिए हुए हैं जिसे देख कर आत्मिक शांति और एक सात्विक ऊर्जा का संचार हुआ। वहां पर पंडित जी ने बताया कि यह शिवलिंग फुट कुल 18 फुट का है जिसमें 9 फुट ऊपर और 9 फुट नीचे है ।शिवलिंग के नीचे एक बहुमूल्य मणि चंदेल वंश के राजाओं के द्वारा दबाई गई है कि वह मणि सुरक्षित रह सके। शायद उस मणि का यह प्रभाव है कि अभी तक यह शिवलिंग कहीं से खंडित नहीं नजर आता। बहुत ही सुंदर नजारा ।मैं अपने आप को भाग्यशाली समझती हूं कि मैं यहां पहुंचकर इस शिवलिंग के दर्शन कर पाई, आप भी कीजिए।जय शिव शंकर।
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साहित्य और मीडिया : वर्तमान संदर्भ में शोध सारांश---- साहित्य क्या है ? इसकी हमारे समाज में क्या उपयोगिता है ?और हमारे समाज के लिए यह क्या भूमिका निभा सकता है ?इसके बारे में शायद ...
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