श्री राम चरित मानस चिंतन
रामचरित मानस चिंतन.........
श्री रामचरित मानस में शिव भक्त श्री रावण के मन की बात जो उन्होंने न केवल स्वयं के मोक्ष के लिए सोची अपितु सारी राक्षस जाति के शुभ कल्याण के लिए भी इस पर विचार किया ।
यथा .........
*🐚सुर रंजन भंजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥*
*🐚तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥*
*भावार्थ:-रावण ने विचार किया कि देवताओं को आनंद देने वाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है, तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा और प्रभु के बाण (के आघात) से प्राण छोड़कर भवसागर से तर जाऊँगा॥*
जय सियाराम
संकलन कर्ता
डॉ विदुषी शर्मा
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