एक माँ की जाति?
एक माँ की जाति?
तरस आता है मुझे उन लोगों पर जो एक मां से उसकी जाति पूछते हैं ?एक मां जो चारों जातियों का निर्वाह एक साथ करती है, उसके लिए कितना भी नमन किया जाए वह कम है। इसीलिए तो हर किसी के ऋण से उऋण हुआ जा सकता है, परंतु एक मां के ऋण से कभी भी उऋण नहीं हुआ जा सकता क्योंकि,
एक मां है जो खुद मिट कर बच्चों को बनाती है ,
क्योंकि पत्थर पर पिस कर ही तो हिना रंग लाती है।
इसीलिए इस संदर्भ में एक छोटा सा वक्तव्य प्रस्तुत है कि किस तरह से लोग एक मां से उसकी जाति पूछते हैं और जवाब में किस तरह से एक माँ ( एक स्त्री) जवाब देती है।
उसने पूछा तेरी जाति क्या है?
मैंने भी पूछा : एक मां की या एक महिला की ..?
उसने कहा - चल दोनों की बता ..
और कुटिल मुस्कान बिखेरी ।
मैंने भी पूरे धैर्य से बताया.......
एक महिला जब माँ बनती है तो वो जाति विहीन हो जाती है..
उसने फिर आश्चर्य चकित होकर पूछा - वो कैसे..?
मैंने कहा .....
जब एक मां अपने बच्चे का लालन पालन करती है,
अपने बच्चे की गंदगी साफ करती है ,
तो वो शूद्र हो जाती है..
वो ही बच्चा बड़ा होता है तो मां बाहरी नकारात्मक ताकतों से उसकी रक्षा करती है, तो वो क्षत्रिय हो जाती है..
जब बच्चा और बड़ा होता है, तो मां उसे शिक्षित करती है,
तब वो ब्राह्मण हो जाती है..
और अंत में जब बच्चा और बड़ा होता है तो मां
उसके आय और व्यय में उसका उचित मार्गदर्शन कर
अपना वैश्य धर्म निभाती है ..
तो हुई ना एक महिला या मां जाति विहीन..
मेरा उत्तर सुनकर वो अवाक् रह गया । उसकी आँखों में
मेरे या हम महिलाओं या माँओं के लिए सम्मान व आदर का भाव था और मुझे अपने मां और महिला होनेपर पर गर्व का अनुभव हो रहा था।
क्योंकि
हमें निज धर्म पर चलना सिखाती रोज माता,
सदा शुद्ध आचरण करना सिखाती रोज माता,
स्वकर्म हितकर है बताती रोज़ माता
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र चारों धर्म निभाती एक माता।
इस प्रकार हम देखते हैं कि एक मां का रोल, एक मां की भूमिका प्रत्येक बच्चे के जीवन में अति महत्वपूर्ण है और वह बच्चे जीवन में कुछ न कुछ कर गुजरते हैं जिनका मार्गदर्शन उनकी माता करती है ,उन्हें उत्साह देती है। इतिहास भरा पड़ा है ऐसी घटनाओं से। यदि हम देखते हैं तो हम पाते हैं कि जो भी महान पुरुष हुए हैं उनके बचपन में जो मानस पटल पर उनकी माताओं ने किसी भी माध्यम से शौर्य, त्याग, धैर्य, ममता, देश प्रेम इत्यादि की भावनाओं को अंकित किया उन्होंने आगे जाकर अपने जीवन में, अपने पुरुषार्थ के द्वारा इसे चरितार्थ किया, और इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों से अंकित किया ।
इसलिए प्रत्येक मनुष्य के जीवन में मां का स्थान सर्वोच्च है, सर्वोत्कृष्ट है, अविस्मरणीय है, अवर्णनीय है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सभी माताओं का सम्मान करना चाहिए, सभी स्त्री जाति का सम्मान करना चाहिए। यही संदेश इस कथा के माध्यम से मैं देना चाहती हूं और यह कहना चाहती हूं कि एक मां की कोई जाति नहीं होती मां सिर्फ "मां" होती है, और मां होना अपने आप में बड़े गर्व की बात है। अपने आप में एक पूर्णता का एहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। इस सृजन शक्ति के लिए उस ईश्वर का धन्यवाद कि हमें उसने मां बनने का गौरव प्रदान किया है।
धन्यवाद
लेखिका
डॉ विदुषी शर्मा
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